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बहुप्रतीक्षित...
रविवार
आज ‘हिन्दुस्तान’ दैनिक में प्रकाशित कविता की कुछ पंक्तियाँ ब्लोगर मित्रों को सप्रेम....
आज 20 दिसम्बर’09 को हिन्दुस्तान दैनिक (रीमिक्स) पटना, मुजफ्फरपुर एवं भागलपुर संस्करण में प्रकाशित अपनी कविता ‘अफसोस के लिए कुछ शब्द’ की कुछ पंक्तियाँ ब्लोगर मित्रों को सादर भेंट कर रहा हूँ.... प्रतिक्रिया अपेक्षित ।
...... हमें बातें करनी थी पत्तियों से
और इकट्ठा करना था तितलियों के लिए
ढेर सारा पराग
..... ........
हमें रहना था अनार में दाने की तरह
मेंहदी में रंग
और गन्ने में रस बनकर
हमें यादों में बसना था लोगों के
मटरगश्ती भरे दिनों सा
और दौड़ना था लहू बनकर
सबों की नब्ज में
अफसोस कि हम ऐसा
कुछ नहीं कर पाये...
जैसा करना था हमें..।
-अरविन्द श्रीवास्तव,अशेष मार्ग, मधेपुरा,मो-०९४३१० ८०८६२.
‘जनपथ’ ने जारी किए पाब्लो नेरूदा, लैंग्स्टन ह्यूज, सनन्त तांती और के. सच्चिदानंदन की अनुवादित कविताओं के चार अंक
समय चेतना की मासिक पत्रिका ‘जनपथ’ ने अपने चार अंक- अगस्त से नवम्बर 09 के लिए समकालीन कविता जगत से विश्व प्रसिद्ध हस्तियों यथा पाब्लो नेरूदा की - जब मैं जडों के बीच रहता हूँ, लैंग्स्टन ह्यूज की- आँखें दुनिया की तरफ देखती हैं, सनन्त तांती की - नींद में भी कभी बारिश होती है और के.सच्चिदानंदन की- कविता का गिरना शीर्षक से अनुदित कविताओं के अंक जारी किये हैं। इन अनुदित कविताओं में समकालीन प्रखर भावधारा का जीवंत स्वरूप दृष्टिगोचर होता है। ये अंक पठनीय मननीय एवं संग्रहनीय हैं। संपादक: अनन्त कुमार सिंह,सेन्ट्रल को-आपरेटिव बैंक, मंगल पाण्डेय पथ, भोजपुर, आरा-८०२३०१ e.mail: janpathpatrika@gmail.com मो.- 09431847568.
‘जब मैं जड़ों के बीच रहता हूँ’ पाब्लो नेरूदा की कविताएँ-
-पाब्लो नेरूदा सही माने में एक अंतर्राष्ट्रीय कवि थे। उन्होंने अपने देश और समाज के आम आदमी और उसके संघर्षों से जिस तरह से अपने को जोडा और जिस तरह से उसकी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी, उसी ने उसे दुनिया भर की मुक्तिकामी जनता की प्रेरणा का स्रोत बना दिया। उनका जन्म 1904 में चीली में हुआ था। एक कवि कके रूप में उनके महत्व को हम इस बात से भी समझ सकते हैं कि 1964 में जब सात्र्र को नोबल पुरस्कार देने की घोषणा हुई तो उन्होंने उसे ठुकरा दिया और इसके लिए जो कारण बताए, उसमें से एक यह था कि यह नेरूदा को मिलना चाहिए था। बाद में नेरूदा को 1971 में यह पुरस्कार मिला। वे दो बार भारत आये थे। प्रसिद्ध आलोचका डाॅ. नामवर सिंह ने नेरूदा को सच्चा लोकहृदय कवि कहा है और लिखा है कि उन्होंने ‘ कविता को सही मायनो में लोकहृदय और लोककंठ में प्रतिष्ठित किया’। 1973 में नेरूदा का निधन हो गया। प्रस्तुत है उनकी ‘और कुछ नहीं’ कविता-
मैंने सच के साथ यह करार किया था
कि दुनिया में फिर भर दूँगा रौशनी
मैं दूसरों की तरह बनना चाहता था
ऐसा कभी नहीं हुआ था कि संघर्षों में मैं नहीं रहा
और अब मैं वहाँ हूँ जहाँ चाहता था
अपनी खोई निर्जनता के बीच
इस पथरीले आगोश में मुझे नींद नहीं आती
मेरी नीरवता के बीच धुसता चला आता है समुद्र
- अनुवाद: राम कृष्ण पाण्डेय
'आँखें दुनिया की तरफ देखती है' - लैंग्स्टन ह्यूज
लैग्स्टन ह्यूज का अश्वेत अमरीकी कवियों में महत्वपूर्ण स्थान है। वे कथाकार और नाटककार भी थे। अपनी रचनाओं में उन्होंने अमरीका की अश्वेत जनता के दुःखों, संघर्षों और उनकी आशाओं-आकांक्षाओं को आवाज दी और उसके जीवन की सच्ची तस्वीर पेश की। उनकी कविताओं का मुख्य विषय मेहनतकश आदमी रहा है, उनकी कविताओं में अमरीका की सारी शोषित-पीडि.त और श्रमजीवी जनता की कथा-व्यथा का अनुभव किया जा सकता है। प्रस्तुत है उनकी ‘दमन’ शीर्षक कविता-
अब सपने उपलब्ध नहीं हैं
स्वप्नदर्शियों के लिए
न ही गीत गायकों को
कहीं-कहीं अंधेरी रात
और ठंडे लोहे का ही शासन है
पर सपनों की वापसी होगी
और गीतों की भी
तोड. दो
इनके कैदखानों को
- अनुवादः राम कृष्ण पाण्डेय
’नींद में भी कभी बारिश होती है
सनन्त तांती का जन्म 4 नव.,1952 को कालीनगर, असम के एक निर्धण चाय श्रमिक परिवार में हुआ, इन्होंने शिलांग में पढ.ाई की । मूलरूप से उडि.या कवि फिर बंगला माध्ययम से शिक्षा प्राप्त की फिर असमिया भाषा में कविताई कर असमिया के लोकप्रिय कवि का सम्मान प्राप्त किया उनकी ‘वह’ शीर्षक कविता-
वह अब मेरे सीने में सोया रहता है चैबीस
घंटों मुझ पर शासन करता है। मेरे श्रम की फसल
बाँटता है। मेरी रक्तनली से स्नायुतंत्र तक
उसका अबाध विचरण। मेरे फेफडे. के बीच-बीच में
शून्य में उछाल वह मग्न होता है खेल में। मेरा
हृदय कुरेद कुरेदकर वह एक यंत्रणा की नदी को
तरफ मुझे खदेड.कर ले जाता है।
निरंतर मेरा लहू चूस रहा वह मेरे भीतर का
प्रेम बाहर का करुण आवरण।
अनुवादः दिनकर कुमार
कविता का गिरनाः
मलयालम में यात्रा कविता लिखे जाने की परमपरा रही है। पणिक्कर के बाद के. सच्चिदानंदन ने काफी संख्या में यात्रा कविताएँ लिखी है। इनके दो संकलन ‘पल कोलम, पल कालम’(कई दुनिया, कई समयद्ध और ‘मुनू यात्रा’(तीन यात्राएँ) प्रकाशित हैं। ‘कवियों की भाषा’ शीर्षक कविता की बानगी देखें-
दुनिया भर में
कवियों की एक ही भाषा है
पत्ते तोते व
छिपकिलियों-सा
वे एक ही घोड़े पर सवार हैं
एक ही सपने की रोटी को बाँट रहे हैं
एक ही चषक से खट्टा पी रहे हैं
खुद की जनता को प्यार करने के कारण वह
सभी जनता से प्यार करते हैं
खुद की जमीन में जड़ें गाड.कर
सभी आकाश में पुष्पित हो रहे हैं
एक ही वेद में न टिकने के कारण
सभी का सच जानते हैं
अनुवाद-संतोष अलेक्स
लेबल:
जनपथ
मंगलवार
मैथिली कथा गोष्ठी ‘सगर राति दीप जरय’ का 68 वाँ आयोजन
मैथिली की त्रैमासिक कथा गोष्ठी ‘सगर राति दीप जरय’ का 68 वाँ आयोजन ‘कथा विप्लव-2’ के नाम से 5 दिसम्बर 09 को सुपौल के व्यपार संध में होगा । इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्तर के मैथिली कथाकार अपनी-अपनी कहानियों का पाठ करेंगे एवं विद्वान समीक्षकों द्वारा इनकी कहानियों पर चर्चा-परिचर्चा की जायेगी।
‘विप्लव फाउण्डेशन’ एवं प्रलेस सुपौल के संयुक्त बैनर तले आयोजित यह कथा गोष्ठी रात भर चलेगी। ज्ञातव्य है कि प्रत्येक तीन माह पर आयोजित होने वाली यह गोष्ठी 1990 से प्रारम्भ हो कर पिछले 19 वर्षों से अनवरत आयोजित हो रही है और इस प्रकार यह आयोजन भारतीय भाषा साहित्य में एक इतिहास रच रही है। इस आयोजन में भारत एवं दूसरे देशों के रचनाकारों की भी सहभागिता होती है। 68 वें आयोजन के संयोजक - अरविन्द ठाकुर ने बताया कि सुपौल में इस कथा गोष्ठी का तीसरा आयोजन है इसमें सम्मलित होने वाले संभावित कथाकारों में - साहित्य अकादमी से पुरस्कृत विभूति आनन्द एवं प्रदीप बिहारी, सहित रामानंद झा रमण , अजित कुमार आजाद, अरविन्द अक्कु राजाराम राठौर, रामाकान्त राय ‘रमा’ एवं परमानन्द प्रभाकर आदि होंगे, इस अवसर पर पुस्तक-पत्रिकाओं की प्रदर्शनी एवं लाकार्पण का भी आयोजन है। कार्यक्रम संयोजक- अरविन्द ठाकुर, सुपौल, मोबाइल- 09431091548
शुक्रवार
साहित्य से क्यों ओझल होता जा रहा ग्राम्यांचल? साहिती सारिका का ताजा अंक

साहिती सारिका का ताजा अंक (जुलाई-दिसम्बर)
यह इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि गीतकार मार्कण्डेय प्रवासी और नवगीतकार सत्यनारायण के कविता और आलोचना पर बेवाक विचार पाठकों को सोचने पर विवश कर देते हैं । सत्यनारायण ने आलोचना के दायित्वों को रेखांकित करते हुए उनकी, कवि और पाठकों को लांछित करने की मानसिकता पर प्रहार किया है। उनके विचार हैं कि आखिर आलोचक के राजतन्त्र में पाठक का लोकतन्त्र कोई मायने रखता है या नहीं ? अंक में कथाओं का चयन अच्छा है। कविताएं सधी हुई। कृष्ण मोहन मिश्र की ‘कालिदास की पर्यावरण दृष्टि’ एवं प्रफुल्ल कुमार ‘मौन’ के लोकदेवी देवताओं का संसार’ ज्ञानवर्द्धन से पूर्ण हैं। अनिरूद्ध सिन्हा ने गजल के सौन्दर्यात्मक यथार्थ के बहाने, दुष्यंत कुमार के बाद रूप-रस की परिधि से बाहर आये गजलकारों की बानगी पेश कर समकालीन यर्थाथ से रूबरू कराया है। प्रभावपूर्ण है अशोक आलोक की दो पंक्तियां-
किसी का जिस्म किसी का लिबास रखता है
अजीब शख्स है जीने की आस रखता है
अंक में प्रकाशित रामदरश मिश्र की डायरी, कुमार विमल के संस्मरण, से. रा. यात्री एवं संतोष दीक्षित की कहानी पठनीय एवं रोचकता से पूर्ण हैं।
साहिती सारिका, सम्पादकः अजय कुमार मिश्र, समकालीन जनमत परिसर, सिन्हा लाइब्रेरी रोड, पटना-1 मोबाइल- 09431012792.
रविवार
कविता कभी मरेगी नहीं, अपनी भूमिका खुद तय करेगी- अरुण कमल
’अफसोस के लिए कुछ शब्द’ का लोकार्पण समारोह
प्रगतिशील लेखक संध, पटना इकाई द्वारा आयोजित लोकार्पण सह कवि-सम्मेलन समारोह में बहुचर्चित कवि अरुण कमल ने कहा कि पुस्तक के लेखक अरविन्द श्रीवास्तव ने इस समय हो रहे हर बुरे कार्यों की आलोचना की है । अरविन्द ने कई नए तथा अछूते विषयों पर कविताएँ लिखी हैं। इनकी कविताएँ अद्भुत, अनुठी तथा मार्मिक होती है। अरुण कमल ने आगे कहा कि अरविन्द श्रीवास्तव छोटी तथा मामूली चीजों पर लिखते हुए इन चीजों को महत्वपूर्ण बना देते हैं। संग्रह की कविता जातिवादी और साम्प्रदायिक हिंसा का जोरदार मुखालफत करती है। बाजार आज हमारे जीवन को खोखला बनाता जा रहा है । इसका विरोध भी अरविन्द श्रीवास्तव ने अपनी कविताओं मे जरिये किया है। कवि शहंशाह आलम ने कहा कि संग्रह की कविताएं हमारे जटिल और कुटिल समय का बयान है। ये कविताएं ऐसे वक्तव्य की तरह है, जो सीधे अंदर तक जाकर वार करती है।
अध्यक्षीय भाषण में डा. व्रजकुमार पाण्डेय ने कहा कि हम जो लिखते हैं राजनीति और सामाजिक विज्ञान पर तो गद्य में लिखते हैं। कवि ने अपने विचार को कविता के जरिये ढाला है। जीवन में आ रहे बदलावों पर अरविन्द की कविताएं सार्थक बयान करती है। बिहार विधान परिषद् के सदस्य वासुदेव सिंह ने अपने विचारों को रखते हुए कहा कि ‘अफसोस के लिए कुछ शब्द’ की कविताएं हमारे जीवन की कविताएं हैं। राजेन्द्र राजन ने कहा कि अरविन्द श्रीवास्तव की कविताएं जिस तरह से हस्तक्षेप करती है, काबिले तारीफ है।इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन में कवि अरुण शीतांश, अरविन्द ठाकुर, राजकिशोर राजन, रामलोचन सिंह, मुसाफिर बैठा सहित अन्य कवियों ने कविता पाठ किया। प्रस्तुत हैं पुस्तक में प्रकाशित एक कविता के अंश
हमे सभी के लिए बनना था और
शामिल होना था सभी में
हमें बातें करनी थीं पत्तियों से
और तितलियों के लिए इकट्ठा करना था
ढेर सारा पराग
हमें रहना था अनार में दाने की तरह
मेंहदी में रंग
और गन्ने में रस बनकर
हमें यादों में बसना था लोगों के
मटरगश्ती भरे दिनों सा
और दौड.ना था लहू बनकर
सबों की नब्ज में
लेकिन अफसोस कि हम ऐसा
कुछ नहीं कर पाये
जैसा करना था हमें ।
- तस्वीर सह समाचार- ’प्रभात खबर’ पटना २ नव. ०९
लेबल:
लोकार्पण प्रलेस
सोमवार
पटना में प्रलेस का लोकार्पण सह कवि-सम्मेलन कार्यक्रम
हकार...
प्रगतिशील लेखक संघ
पटना इकाई
कविवर कन्हैया कक्ष, केदार भवन (जनशक्ति परिसर), अमरनाथ रोड, पटना-800 001
लोकार्पण सह कवि-सम्मेलन
लोकार्पणः पुस्तक ‘अफसोस के लिए कुछ शब्द‘
लेखक- अरविन्द श्रीवास्तव
लोकार्पणकर्ता: अरुण कमल
अध्यक्षताः डा.खगेन्द्र ठाकुर
मुख्य अतिथिः व्रजकुमार पाण्डेय,
राजेन्द्र राजन,राजीव कुमार
आमंत्रित कविः योगेन्द्र कृष्णा, शहंशाह आलम, पूनम सिंह, रश्मि रेखा, राकेश रंजन,सैयद जावेद हसन, अरूण शीतांश, प्रमोद कुमार सिंह, अरविन्द ठाकुर, उपेन्द्र चैहान, मनोज कुमार झा, सतीश नूतन, अरुण हरलीवाल, मुसाफिर बैठा, श्यामल श्रीवास्तव, राहुल झा।
दिनांक: 1 नवम्बर, 2009 / समय: 2 बजे अपराहन (रविवार)
स्थान: माध्यमिक शिक्षक संघ भवन, जमाल रोड, पटना
आप सादर आमंत्रित हैं -
निवेदक
प्रगतिशील लेखक संध, पटना
मोबाइल- 9835417537
लेबल:
पटना प्रलेस
गुरुवार
सोवियत साम्यवादी सत्ता दरकने के दंश कहाँ है प्रगति प्रकाशन! रादुगा प्रकाशन!
सोवियत साम्यवादी सत्ता दरकने के लगभग बीस वर्ष हो चुके हैं। इस अन्तराल में जो सांस्कृतिक रिक्तता भारत और भारत सदृश्य विकासशील राष्ट्रों में आयी है, उसे खुलकर नहीं तो अन्दर ही अन्दर एक मुकम्मल पीढ़ी महसूस रही है। कहाँ है सस्ते साहित्य का जखीरा! साहित्य ही क्यों अध्ययन की तमाम विधाओं मसलन् इतिहास, राजनीति और दर्शन सहित भौतिकी, रसायन और बनस्पिति शास्त्र की, बच्चों के लिए चटकदार रंगीन पुस्तकें, सामयिक पत्रिकाएं आदि आदि। ये सारी सामग्री महज वैचारिक खुराक ही नहीं थी, वरन् मानव जीवन के सहज विकास के सहायक तत्व थे। प्रगति प्रकाशन, रादुगा प्रकाशन, पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस, रेडियो मास्को, इस्कस और प्राव्दा, इजवेस्तिया व नोवस्ती प्रेस एजेंसी जैसे, सोवियत साम्यवादी व्यवस्था के सहयोगी अंग क्यों न रहे हों, धरती पर अन्य ‘व्यवस्था’ मे जन जागरण का यह माद्दा, उत्साह और जुनून नहीं रहा है। थोड़ी देर के लिए यदि हम अलेक्सान्द्र पुश्किल और लियो तालस्तोय को मात्र रूस का ही लेखक माने तो कौन सा देश अपने लेखकों के लिए उनकी रचनाओं को प्रकाशित व अनुवाद कर विश्व के जन जन तक पहुँचाने का बीडा़ उठाता है, निःशुल्क या बिल्कुल अल्पमूल्य में। धरती को कचड़ा घर बनाने के अलावे सम्पन्न मुल्कों ने और क्या किया है इस पृथ्वी के लिए ? संहार के नये इल्म तलाशने, सभ्यता की सुरक्षा, सुख और विलासिता के लिए मोबाइल.........मैट्रो, मिसाइल......., बौद्धिक-वैचारिक, सांस्कृतिक शून्यता और खोखले मस्तिष्क पर समृद्धि व कथित सुरक्षा का मुलम्मा।
दुनिया के तमाम लेखक और लेखक संगठनों को अपनी सरकार और हुक्काम पर दबाव बनानी चाहिए कि जिस तरह हवा, पानी, धूप और चांदनी पर सभी का हक है, ठीक वैसे ही साहित्य पर!
-अरविन्द श्रीवास्तव, मधेपुरा
मोबाइल- 09431080862.
लेबल:
सोवियत साम्यवादी सत्ता
मंगलवार
’राइफल’ एक छोटी कविता
राइफलें
जो किसी पत्ते की खड़खड़ाहट
कि दिशा में
तड़-तड़ा उठी थीं
और किसी संकट को टाल देने की
विजय मुद्रा में
चाहता था राइफलधारी मुस्कुराना
जिसे बड़े ही ध्यान से
देख रहा था
पत्ते की ओट से
एक चूहा !
-अरविन्द श्रीवास्तव, मधेपुरा
लेबल:
राइफल
गुरुवार
एक खामोश कवि की अग्नि-ऋचाएँ
नई पीढ़ी. के कवियों में राकेश प्रियदर्शी ने अपनी काव्यात्मक सोच और धार की बदौलत समकालीन कविता जगत में अपनी पहचान कायम की है। उनकी नवीनतम कृति ‘इच्छाओं की पृथ्वी के रंग’ में एक संवेदनशील दृष्टि के साथ मानवीय चिंताओं के प्रति बेचैनी और छटपटाहट स्पष्ट दिखती है। सभ्यता के पैर में पड़ी हजारों वर्षों की बेड़ी वह आनन फानन में खोलना चाहते हैं। पुस्तक में प्रकाशित इनकी कविताओं के बिंव-चित्र, जीवंत काव्य विन्यास, काव्य विधा पर इनकी पकड. को आश्वस्त प्रदान करते हैं। गहन सूक्ष्मता संजोए इनकी कविताओं का बहुरंगी फलक पाठकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करते हैं। प्रस्तुत है उनकी पुस्तक ‘इच्छाओ की पृथ्वी के रंग’ की कुछ बानगी-
लिहाजा मुझे फांसी दी जानी चाहिए,
कि मेरी रूह से सच की बू आती है
लिहाजा मुझे काल कोठरी में कैद
कर देना चाहिए
कि मेरे शब्द गर्म होकर आग उगलते हैं
लिहाजा मुझे रस्सी से बांधकर पथरीली
सड.कों पर घसीटा जाना चाहिए
कि आज भी मै उतना ही वफादार हूँ
जितना एक पालतू कुत्ता
.......
‘गुलाम हाजिर है’ शीर्षक कविता
वह नदी की आँखों में डूबकर
सागर की गहराई नापना चाहता था
और आसमान की अतल ऊंचाईयों में
कल्पना के परों से उड़ान भरना चाहता था,
पर वह नदी तो कब से सूखी पड़ी थी,
बालू, पत्थर और रेत से भरी थी
2.
वह कैसी नदी थी जिसमें स्वच्छ जल न था,
न धाराएं थी, न प्रवाह दिखता था,
वहां सिर्फ आग ही आग थी
....
‘नदी’ शीर्षक कविता
लेखक सम्पर्कः पटना, मोबाइल-09835465634
शनिवार
नामवर सिंह ने किया बिहार प्रलेस कार्यालय का उद्घाटन
25.09.2009 बिहार प्रगतिशील लेखक संध के लिए एक महत्वपूर्ण दिवस रहा जब वरिष्ठ आलोचक व प्रलेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष नामवर सिंह ने पटना स्थित केदार भवन, जनशक्ति परिसर, अमरनाथ रोड में प्रलेस कार्यालय का उद्घाटन किया । कार्यालय कक्ष का नाम ‘कविवर कन्हैया कक्ष’ रखा गया। इस अवसर पर प्रलेस से जुड़े पदाधिकारी , साहित्यकार-लेखकों में - खगेन्द्र ठाकुर, ब्रज कुमार पाण्डेय, राजेन्द्र राजन, अरुण कमल, कर्मेन्दु शिशिर, हृषिकेश सुलभ, संतोष दीक्षित, शहंशाह आलम, अरविन्द श्रीवास्तव सहित अनेक रचनाकर्मियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करायी। नामवर सिंह ने कहा कि
यह कार्यालय होने से बिहार की रचनात्मक सक्रियता बढेगी।
लेबल:
प्रलेस
बुधवार
डा.नामवर सिंह करेंगे बिहार प्रलेस राज्य कार्यालय का उद्घाटन

बिहार प्रगतिशील लेखक संध का राज्य कार्यालय ( अमरनाथ रोड, जनशक्ति भवन के पीछे, पटना ) का उद्घाटन प्रसिद्ध आलोचक एवं प्रगतिशील लेखक संध के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा.नामवर सिंह 25 सितम्बर 09 को 12 बजे करेंगे। स्मरणीय है कि अबतक बिहार प्रलेस का राज्य कार्यालय पटना में बी. एम. दास रोड स्थित मैत्री शांति भवन में चल रहा था।
‘‘ हम हर एक सूबे में, हर एक जवान मे, ऐसी परिषदें स्थापित करना चाहते हैं, जिसमें हर एक भाषा में हम अपना संदेश पहुँचा सकें। यह समझना भूल होगी कि यह हमारी कोई नयी कल्पना है। नहीं, देश के साहित्य-सेवियों के हृदयों में सामुदायिक भावनाएँ विद्यमान हैं। भारत की हर एक भाषा में इस विचार के बीज प्रकृति और परिस्थिति ने पहले से बो रखे हैं, जगह-जगह उसके अंकुए भी निकलने लगे हैं। उसको सींचना एवं उसके लक्ष्य को पुष्ट करना हमारा उदेश्य है।’’
- प्रलेस के प्रथम सम्मेलन (1936) में सभापति आसन से दिये गये प्रेमचंद के भाषण का अंश ।
तस्वीर में डा.नामवर सिंह के साथ अरविन्द श्रीवास्तव, मधेपुरा
लेबल:
नामवर सिंह
शनिवार
चर्चा में..

वक्त बूँदों के उत्सव का था
बूँदें इठला रही थी
गा रही थीं बूँदें झूम - झूम कर
थिरक रही थीं
पूरे सवाब में
दरख्तों के पोर - पोर को
छुआ बूँदों ने
माटी ने छक कर स्वाद चखा
बूँदों का
रात कहर बन आयी थी बूँदे
सबेरे चर्चा में बारिश थीं
बूँदें नहीं !
- अरविन्द श्रीवास्तव.
जनपथ के कुछ शब्द

’जनपथ’ समय-चेतना का मासिक आयोजन. संपादक- अनंत कुमार सिंह. मो.-09431847568
यीशु व
सोक्रेटेस
भले लोग थे
फिर भी मारे गये
मुझे भला नहीं बनना।
- मलयालम कविता
तुम्हारी आग के खिलाफ हमने पानी का खासा इंतजाम किया है.....
- शीन हयात, कथाकार
मुझे यह भी लगा कि दिल्ली सारी रचनाषीलता को सोख लेने वाली जगह है। आपका सारा समय दौड.-भाग में खत्म हो जाता हैं और यदि आप संपादन या पत्रिका से जु़डे हैं तो दूसरे की रचनाओं में ही खप जाते हैं । आप अपना खुद का कोई भी क्रिएटिव काम नहीं कर सकते । सभा-गोष्ठियों में मिलते हैं तो औपचारिक भेंट से आगे बात नहीं बढ. पाती। यहाँ बड़े-बड़े प्रकाशक हैं या बल्कि कहिए कि प्रकाशक-व्यवसाय ही केंद्रित है। यहाँ से ही सारे पद - पीठ, पुरस्कार, .फेलोशिप, विदेश यात्राएँ आदि तय होते हैं। लेकिन यहीं सारे घपलों की जड. है। इसलिए यहाँ के लोगों की जिन्दगी जुगाड. करने में ही जाया हो जाती है। मुझे बार-बार जाने क्यों लगता है कि सृजन -कर्म तो सुदूर अँचलों में ही संभव है।
- संजीव, कार्यकारी संपादक:’हंस’
कवि बार-बार जन्म लेता है कविता में। पुनर्जन्म पर विश्वास न करने वाले भी कविता में जन्म लेना चाहते हैं।कोई कवि सृष्टि को पूरी तरह पा न सका कभी। इसलिए हमें लौटना है उस ठिए पर,जो हर बार नया जन्म लेता है ,नए लोगों के साथ । उसके गर्भ में पलता है नित नया विचार। हमें वहाँ तक पहूँचना है। हम पहूँचेंगे साथी !
-लीलाधर मंडलोई, वरिष्ठ कवि
प्रस्तुति: अरविन्द श्रीवास्तव, अशेष मार्ग, मधेपुरा
रविवार
पश्चिम से-
सोमवार
कोसी: प्रलय के एक वर्ष-

आज ही के दिन १८ अगस्त २००८ को कोसी के कहर ने हजारों लोगों की जानें ली, लाखों बेघर, तवाह और बर्बाद हुए , क्षण भर में राजा रंक बन गए | उत्तर बिहार के मधेपुरा, अररिया, पुर्णिया, सुपौल, कटिहार, सहरसा जिले में महज एक वर्ष पहले बरबादी का जो मंजर दिखा वह किसी भी सभ्य प्राणी के लिए रूह कंपा देने वाला था। बाढ़, भूख, बेरोजगारी सहित इस वर्ष सुखाड़ से पीड़ित लाखों लोग पलायन कर दिल्ली, पंजाब और महाराष्ट्र सदृश्य राज्यों को आबाद करने में जुटे है, क्षेत्र की बदहाली पर चंद घोषणाओं के साथ हर तरफ चुप्पी है...। कोसी की यह विभीषिका मानवीय त्रासदी थी या कुदरत का कहर ...... बहरहाल केंद्र सरकार द्वारा इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जाना और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिले राहत - सहयोग पर आभार प्रकट किया जा रहा है वाबजूद इसके यह क्षेत्र सुरक्षित है इस बात की पक्की गारंटी नहीं दी जा सकती... इसमें कई पेंच है...|
आज इस खंड प्रलय के एक वर्ष बीत गए | जनशब्द इस प्रलय की वेदी पर दिवंगत हुए प्राणों को श्रद्धाश्रु निवेदित करता है | कोसी और इसके 'व्यवस्थापक' इस विशाल भूभाग को फिर से हराभरा करने में पुरजोर ताकत से जुटे रहेंगे, इसी उम्मीद के साथ .....|
-अरविन्द श्रीवास्तव, मधेपुरा
बुधवार
हबीब तनवीर के अवदान पर बिहार प्रलेस की गोष्ठी
हबीब तनवीर ने भारतीय रंगमंच का चेहरा ही बदल डाला। वह एक रंगयोद्धा की तरह जीते रहे। उन्होनें अपने नाटकों के जरिए एक नया और भिन्न परिवेश को रखा एवं प्रगतिशील सांस्कृतिक आन्दोलन को सक्रिय भी किया। ये बातें रंगकर्मी जावेद अख्तर ने पटना के मैत्री-शांति भवन में बिहार प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा २ अगस्त को ’हबीब तनवीर का अवदान’ विषयक गोष्ठी में कही। आलोचक खगेन्द्र ठाकुर, डा. ब्रज कुमार पाण्डेय एवं राजेन्द्र राजन ने भी भारतीय रंगमंच को आबाद करने में हबीब साहब के अवदान को रेखांकित किया। बिहार प्रलेस की इस मह्त्वपूर्ण बैठक मे कथाकार अभय(सासाराम) कवि शहंशाह आलम(मुंगेर) अरविन्द श्रीवास्तव(मधेपुरा), पूनम सिंह(मुजफ्फरपुर), अरुण शीतांश(आरा) दीपक कुमार राय(बक्सर)और अरविन्द ठाकुर(सुपौल) ने भी अपने-अपने विचार रखे।
तस्वीर में हबीब साहब के साथ अरविंद श्रीवास्तव
लेबल:
प्रलेस
शुक्रवार
सृजन पथ का नया अंक-
सृजन पथ-7 (कविता अंक) नयी साज-सज्जा व आकर्षक कलेवर में उपलब्ध है। डा.परमानन्द श्रीवास्तव, नरेन्द्र पुण्डरीक एवं योगेन्द्र कृष्णा ने अपने विचारों में आधुनिक हिन्दी कविता की गतिविधियों का गहन परिवेक्षण किया है। आज की कविता को समाज के साथ तादात्म स्थापित करने में कोई कठिनाई नहीं होती। उनकी प्रतिभा युग निर्माणकारी तत्वों को सँजो कर युग जीवन के सत्यों को उदघाटित करने में अपने आपको कृतकार्य समझती है। चंद कथित घोषणाओं के बावजूद कविता का भविष्य उज्ज्वल है। कवि केवल अपने स्वधर्मी लोगों के लिये नहीं लिखता- बल्कि सम्पूर्ण मानव जाति के लिये लिखता है और अपनी रचना को सबके लिये प्रेषणीय बनाने का उत्साह लेकर आगे बढ़ता है। कवि स्वंय अपने रचनाशील व्यक्तित्व की गरिमा और दायित्व को पहचानता है, आज सच्चे अर्थों में कवि हीं जनमानस का प्रतिनिधित्व करता है।
अनामिका, कमलेश्वर साहू, नीलोत्पल, मोहन कुमार डहेरिया, सुरेश उजाला, उत्तिमा केशरी, रमेश प्रजापति, कंचन शर्मा की कविताएँ बेहतरीन बन पड़ी है।
मैत्रेयी पुष्पा के विषय में रंजना श्रीवास्तव एवं मधुलिका के आलेख एवं रचना जी का संपादकीय बड़ा प्रभावोत्पादक है। ऎसे सुन्दर अंक के लिये धन्यवाद।
सृजन पथ-7 (कविता अंक) सं.- रंजना श्रीवास्तव, श्रीपल्ली, लेन न.-२, पी.ओ. सिलीगुड़ी बाजार(प- बं.) पिन- 734 005, मोबाइल-09933946886. e.mail-ranjananishant@yahoo.co.in
बुधवार
तानाशाह
मंगलवार
जनकवि बाबा नागार्जुन के जन्मदिवस पर
एक छोटी-सी, साहित्यिक यात्रा...
जनकवि बाबा नागार्जुन के जन्मदिवस पर दरभंगा से मिले आमंत्रण के क्रम में पटना से कवि शहंशाह आलम के साथ मुजफ्फरपुर पहुँचा, वहां प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा कवयित्री पूनम सिंह के आवास पर हमलोगों के सम्मान में काव्य-संध्या का आयोजन रखा गया जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ आलोचक डा


दूसरे दिन दरभंगा के ऎतिहासिक राज मैदान में, जहाँ पुस्तक मेले का भी आयोजन था, अपराह्न ३ बजे बाबा नागार्जुन को समर्पित संगोष्ठी एवं कविगोष्ठी का आयोजन रखा गया मुख्य वक्ताः डा.रामाकान्त मिश्र (दरभंगा) एवं डा. अरुण कुमार (राँची) ने बाबा नागार्जुन के साहित्यिक सफ़र पर मह्त्वपूर्ण व्याख्यान दिये फ़िर कविगोष्ठी में आमंत्रित कवियों- शहंशाह आलम(पटना), पूनम सिंह, रश्मि रेखा, रमेश ॠतम्भर, पुष्पागुप्त (मुजफ्फरपुर) अरविन्द श्रीवास्तव(मधेपुरा) अरुण नारायण(पटना) ने काव्य-पाठ किया. तीन घंटे तक चले आयोजन का समापन शोभाकान्तजी ने धन्यवाद ज्ञापन से किया ।
प्रस्तुति -अरविन्द श्रीवास्तव, मधेपुरा
सोमवार
अलविदा हबीब तनवीर…
शनिवार
‘परिकथा’ का यह अंक…

परिकथा, अंक- मई-जून,(संपादक-शंकर, 96,बेसमेंट, फेज III इरोज गार्डन, सूरजकुंड रोड, नई दिल्ली-110044 मोबाइल-09431336275) इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि किसी साहित्यिक पत्रिका के लिए बीस अंकों का लंबा सफर तय करना, आज दुस्साहसिक कदम-सा है। हम इसे साहित्य के लिये मुट्ठी भर प्रतिबद्ध लोगों का जुनून भी कह सकते हैं, अमूमन साहित्यिक पत्रिकाएं आर्थिक दंश के आगे दो-चार अंकों में ही कराह उठती है, हम परिकथा के लिये लंबी आयु की मंगलकामनाएं कर सकते हैं…।
दूसरी बात यह कि पत्रिका के साथ – डा नामवर सिंह और असग़र वजाहत सदृश्य साहित्यिक व्यक्तित्वों का जु्ड़ना भी परिकथा को ‘एक जरुरी पत्रिका’ बना देती है।
और अंत में, परिकथा का यह अंक मेरे लिये इसलिए भी मह्त्वपूर्ण है कि इस अंक का आवरण चित्र (मुख्य पृष्ठ) मैने बनाया है…।
प्रतिक्रिया अपेक्षित
अरविन्द श्रीवास्तव, अशेष मार्ग, मधेपुरा-852113(बिहार) मो-094310 80862
सोमवार
शहंशाह ने दिया तोहफ़ा
अभी सप्ताह भर पटना में रहा, छोटी सी मुलाकात में शहंशाह आलम ने अपनी नयी पुस्तक ‘अ

खेल-खेल में
ईजाद नहीं हुआ होगा
सायकिल का
लेकिन खेल-खेल में
सीख जाते हैं
सायकिल चलाना लड़के
दो
हमारे शरीर की तरह
पंचभूतों से ही बनी लगती है
यह सायकिल
सोचता हूँ भर जी सोचता हूँ
सायकिल सिर्फ़ सायकिल क्यों है
क्यों नहीं है
एक संपूर्ण देह
जिसमें कि
एक बेचैन आत्मा
वास कर रही है।
शुक्रवार
पटना से आयीं दो पुस्तकें
जहाँ देश के कुछ बड़े नगर बतौर साहित्यिक मंडी में तब्दील हो रहे हैं, बिहार की राजधानी अपनी उर्वर साहित्यिक परंपरा का निर्वाह करते हुए मंडीकरण की होड़ से खुद को बचाए रखा है। यहां से अभी प्रकाशित दो पुस्तकें क्रमश: बुतों के शहर में (कविता संग्रह) और दोआतशा (कहानी संग्रह) अपनी साज-सज्जा, छपाई व कलेवर में विश्व मानक से कम नहीं है।
दोआतशा (कहानी संग्रह), लेखक- सैयद जावेद हसन
कथाकार व संपादक सैयद जावेद हसन ने इस संग्रह में गुजरात दंगों के पहले और बाद राजनीतिक चालबाजियों को बेनकाव किया है, संग्रह की पहली कहानी 'सुलगते सफर में' तथा दूसरी कहानी 'छरहरी सी वो लड़की' , दोनों कहानियां गुजरात दगे के इर्दगिर्द घूमती है, कहानी को हकीकत मानने में बहस की गुंजाईश से इंकार नहीं किया जा सकता, लेखक का मकसद भी ऐसा ही दिखता है।
सहज शब्दों मे लिखी गयी मानवीय सवेदनाओं को स्पर्श करती इस संग्रह में प्रकाशित कविताएं समय की चाक पर रची गयी है, जिसे नजरअंदाज
करना मुश्किल है, बेहद! " बुतों के शहर में" की कुछ पंक्तियां -
हम अखबार के फलक पर रेंगते रहे
स्याह तस्वीरों की धूल साफ करते हुए
तस्वीरें सामने थी-
एक हंसता खिलखिलाता बच्चा
दादा की अंगुली पकड़
स्कूल जा रहा था
अंगुली छुड़ा उसे जबरन उठा लिया गया
शहर चिल्लाता रहा
सायरन बजाती गाड़ियां दौड़ती रहीं…।
- प्रस्तुति: अरविन्द श्रीवास्तव
रविवार
विवशता
गुरुवार
संकट टला नहीं है

संकट टला नहीं है
सटोरियों ने दाँव लगाने छोड़ दिये हैं
चौखट के बाहर
अप्रिय घटनाओं का बाजार गर्म है
खिचड़ी नहीं पक रही आज घर में
बंदूक के टोटे
सड़कों पर बिखरे पड़े हैं
धुआँधार बमबारी चल रही है बाहर
समय नहीं है प्यार की बातें करने का
कविता लिखने, आँखे चार करने का
यमदूत थके नहीं हैं
यहीं कहीं घर के बाहर खड़े
प्रतीक्षा कर रहे हैं
किसी चुनाव-परिणाम की !
-अरविन्द श्रीवास्तव, मधेपुरा
सटोरियों ने दाँव लगाने छोड़ दिये हैं
चौखट के बाहर
अप्रिय घटनाओं का बाजार गर्म है

खिचड़ी नहीं पक रही आज घर में
बंदूक के टोटे
सड़कों पर बिखरे पड़े हैं
धुआँधार बमबारी चल रही है बाहर
समय नहीं है प्यार की बातें करने का
कविता लिखने, आँखे चार करने का
यमदूत थके नहीं हैं
यहीं कहीं घर के बाहर खड़े
प्रतीक्षा कर रहे हैं
किसी चुनाव-परिणाम की !
-अरविन्द श्रीवास्तव, मधेपुरा
बुधवार
चिड़ियाँ

चिड़ियों का हौसला देखिए
वो चाहे जहाँ आ-जा सकती है
सवर्णों के कुओं पर पानी पीती है
हरिजनों के घरों के दाने चुगती है
हम ऐसा कुछ भी तो नहीं कर सकते
ऐसा करने के लिए हममें
चिड़ियों-सा हौसला चहिए ।
- शहंशाह आलम
युवा कवि शहंशाह आलम की कविताओं का एकल काव्य-पाठ १५ मार्च ०९ को मधेपुरा के कौशिकी क्षेत्र साहित्य सम्मेलन भवन में आयोजित किया गया। जिसमें मुख्य अतिथि पूर्व सांसद एवं पूर्व कुलपति डा रमेन्द्र कुमार यादव 'रवि', साहित्यकार हरिशंकर श्रीवास्तव 'शलभ' एवं डा भूपेन्द्र ना० यादव 'मधेपुरी' थे। आयोजन में इस कविता की च्रर्चा विशेष रुप से की गयी।
मंगलवार
एक मृत सर्प का बयान
सोमवार
मामूली आदमी का घोषणा पत्र
गुरुवार
एक रंग यह भी
श्री राजेन्द्र राजन के उपन्यास “एक रंग यह भी” को कई बार पढ़ चुका हूँ। कई बार इसलिये पढ़ा क्योंकि, एक, यह सकर्मक जीवन की प्रेरणा देता है और दूसरे यह आजकल के सामान्य उपन्यासों से अलग और विशिष्ट है। श्री राजेन्द्र राजन तपे हुए मानवतावादी राष्ट्रीय विचारों के वामपंथी नेता और कार्यकर्त्ता हैं। येसे लोग साहित्य में ज्यादातर नहीं हैं। रजेन्द्र राजनजी को लेखक रूप में देखकर हमें राहुल सांकृत्यायन, यश्पाल और मन्मथनाथ गुप्त जैसे लेखकों की परंपरा की याद आ जाती है……। -विश्वनाथ त्रिपाठी
लेखक सम्पर्क:- रजेन्द्र राजन, सुचितायन, चाण्क्य नगर, बेगूसराय-851 120, मो-09430 885162
लेखक सम्पर्क:- रजेन्द्र राजन, सुचितायन, चाण्क्य नगर, बेगूसराय-851 120, मो-09430 885162
लोककथा रूपक
लोक कथायें ग्रामीण एवं सरल, स्वच्छ ह्रदय के अंदर की उपज होती है। ग्रामीण अंचलों में इसके कहने- सुनने का ढंग भी अलग-अलग और अनोखा होता है कहानी कह्ते-सुनते समय कथावाचक और श्रोताओं के मन मस्तिष्क में उसका दृश्य चलचित्र की भाँति चलता रहता है। लोक कलाओं के लिए एक अनिवार्य शर्त होती है, उसका अमुद्रित और अनालेखित होना, क्योंकि वे जनश्रुति के आधार पर ही आगे बढ़ा करती थी।– अनिल पतंग, सम्पर्क- नाट्य विधालय, बाघा, पो- एस नगर, बेग़ूसराय (बिहार)- 851 218
बौद्ध ग्रंथ “ ललित विस्तर “ में वर्णित चौसठ लिपियों में अंग लिपि का चौथा स्थान है। ब्राह्मी और खरोष्ठी के बाद अंग लिपि भारत की सर्वाधिक प्राचीन लिपि है। तत्कालीन सभी प्रचलित लिपियों में यह अधिक गतिशील रही है। इसने कई देशों की लिपियों को संवर्द्धित किया। इसमें श्रीलंका, पूर्व मध्य एशिया, तिब्बत, वर्मा, स्याम, जावा, मलय द्वीप, सुमत्रा, हिन्द चीन,कम्बोज आदि प्रमुख है। अंग लिपि को ही यह महान गौरव प्राप्त है कि उसके दुःसाहसिक नाविक, व्यापारी एवं राजवशियों ने उसे विभिन्न देशों की यात्रा ही नहीं करायी, बल्कि उसे कई देशों में स्थापित भी कर दिया। यह पुरा भारतीय इतिहास का गौरवोज्जवल पृष्ठ है। गुप्त लिपि, कुटिल लिपि, सिद्ध मातृका लिपि आदि को अंग लिपि की विकास यात्रा का पड़ाव कहना अधिक उपयुक्त है। कैथी लिपि में इनकी विकास यात्रा पूर्ण हो जाती है। लेखक – हरिशंकर श्रीवास्तव "शलभ", कला कुटीर, मधेपुरा, फोन – 06478 229674
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