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सोमवार

वर्ष 2012 के लिए ‘केदार सम्मान’ एवं ‘कृष्ण प्रताप कथा सम्मान’ हेतु प्रविष्टियाँ आमंत्रित..


              ‘केदार सम्मान’   

        समकालीन हिन्दी कविता के विशिष्ट सम्मान ‘केदार सम्मान’ वर्ष 2012  के लिए प्रकाशकों, रचनाकारों एवं उनके शुभचिन्तकों से 30 नवम्बर 2012 तक - पिछले चार वर्षो तक प्रकाशित कविता संकलनों की दो प्रतियां आमंत्रित की जाती है । वे रचनाकार इस सम्मान हेतु अपने कविता संकलन भेज सकतें हैं जिनकी कविता की प्रकृति जनकवि केदारनाथ अग्रवाल की परम्परा में प्रकृति एवं मानव मन के जुड़ावों के साथ, आदमी के श्रम एवं संघर्षों में वैज्ञानिक चेतना के हिमायती हो । और जिनका जन्म 15 अगस्त 1947 के बाद हुआ हो। इस विशिष्ट सम्मान से अब तक समकालीन हिन्दी कविता के इन रचनाकारों को सम्मानित किया जा चुका है - नासिर अहमद सिकन्दर, एकांत श्रीवास्तव , कुमार अंबुज, विनोद दास , गगनगिल, हरीष्चन्द्र पाण्डे, अनिल कुमार सिंह , हेमन्त कुकरेती, नीलेष रघुबंशी, आशुतोष दुबे, बद्री नारायण, अनामिका, दिनेश कुमार शुक्ल ,अष्टभुजा शुक्ल, पंकज राग, पवन करण ।
                                                             नरेन्द्र पुण्डरीक
                                                            संयोजकः
                                   केदार सम्मान एवं सचिव केदार शोध पीठ,
                                                                                                                    
                                                                                                                             
   कृष्ण प्रताप कथा सम्मान वर्ष -2012

    समकालीन हिन्दी कहानी के विशिष्ट सम्मान ‘‘कृष्ण प्रताप कथा सम्मान वर्ष 2012’’ के लिए  समकालीन कहानीकारों , प्रकाशकों एवं उनके शुभचिन्तकों से पिछले तीन वर्ष में प्रकाशित  कहानी संग्रहों की दो प्रतियां आमंत्रित की जाती हैं । अब इस विशिष्ट कथा सम्मान से कथाकार बन्दना राग को उनके कहानी संग्रह ‘युटोपिया’ एवं मनीषा कुलश्रेष्ठ को उनके कहानी संग्रह ‘केअर आफ स्वात घाटी’ के लिए सम्मानित किया जा चुका है। प्रविष्टियां 31 दिस0 2012 तब आमंत्रित हैं
                                                               नरेन्द्र पुण्डरीक
                                               संयोजकः कृष्ण प्रताप कथा सम्मान
मोबाइल - 09450169568.          एवं
                                   सचिवः केदार शोध पीठ, न्यास, बांदा                                                                                                                        

बुधवार

शहंशाह आलम की दो ताज़ा कविताएँ..



बरसात

बरसात में सबकुछ बहुतकुछ
धुल रहा था धीरे-धीरे

धुल रहा था जैसे अतीत
धुल रही थी जैसे आत्मा बेचैन
धुल रहा था जैसे
मन का दुष्चक्र

पेड़ पहाड़ बाघ घर जल अनंत
सब धुल रहे थे
बरसात में इस बार

धीरे-धीरे जैसे
धुल रहा था मैल
देह पर का
           *
उसने मुझे साधा था

वह पानी की तरह तरल थी
ठोस थी पत्थर की तरह

वह गूंजती थी झरने जैसी मुझी में

उसने मुझे साधा था
कुछ इस तरह से
कि मैं उच्चारता
उसकी छातियों के समुद्र को
उसकी देह के जल को

उच्चारता था इस पूरे समय को
इस पूरे जीवन को लयवद्ध
उसी को भुजाओं में भींच
              * *

शुक्रवार

धमाके हार जायेंगे.., पटना में साहित्य अकादेमी का बहुभाषी कवि सम्मेलन

साहित्य अकादेमी के विशेष कार्य पदाधिकारी जे. पोन्नुदुरै का वक्तव्य...
         देश विभिन्न भागों से आये बहुभाषाभाषी कवियों की गरिमामय उपस्थित से पटना स्थित ख्रुदा बख़्श  ओरियंटल पब्लिक लाइव्रेरी का प्रशाल जगमगा उठा। हिन्दी, पंजाबी, उर्दू, नेपाली, असमिया, मैथिली और संताली भाषा के प्रतिष्ठित कवियों ने अपनी काव्य की रस धारा से पटना में अद्वितीय समां बांध दिया। कवियों में कई साहित्य अकादेमी सम्मान से सम्मानित कवि थे।
    पटना के खुदा बख़्श ओरियंटल लाइब्रेरी में 24 जून को सम्पन्न इस बहुभाषी कवि सम्मेलन का विधिवत शुभारंभ करते हुए साहित्य अकादेमी के विशेष कार्य पदाधिकारी जे. पोन्नुदुरै व मैथिली भाषा के संयोजक विधानाथ झा विदित ने अपने स्वागत वक्तव्य में बहुभाषी कवि सम्मेलन की सार्थकता को रेखांकित किया। इस औपचारिकता के बाद कविता , शेरो-शायरी का दौर शुरू हुआ। कविता पाठ के प्रथम सत्र में देहरादून से आये कवि-गीतकार डा. बुद्धिनाथ मिश्र, वनिता (पंजाबी), आलम खुर्शीद (उर्दू) सुरेन्द्र थींग (नेपाली) देव प्रसाद तालुकदार (असमिया) यशोदा मुर्मू (संताली) व शांति सुमन (हिन्दी) ने अपनी कविताओं की बहुरंगी छटा बिखेरी, कुछ बानगी - राइफलें खेत जोत रही है/ बुलेट की गंध यत्र-तत्र सतर्कता के साथ फैल रही है/सिगरेट की गंध में भी बारुद की गंध है/ प्यासा मन पानी खोज रहा है.. (सुरेन्द्र थींग)। उर्दू के आलम खुर्शीद ने कहा - जिन्दा रहने के खातिर इन आँखों में कोई न कोई ख्वाब सजाना होता है/ सेहरा से बस्ती में आकर ये भेद खुला, दिल के अंदर भी विराना होता है। देव प्रसाद तालुकदार (असमिया) ने अपनी - साइकिल एवं दायाँ हाथ, बाँया हाथ शीर्षक कविताओ से ताली बटोरा। मैथिली की रानी झा ने प्रेम गीत सुनाया। हिन्दी कवयित्री शांति सुमन ने - तुम मिले तो बोझ है कम बहुत हल्की पीठ की गठरी... से वातावरण को खुशनुमा बनाया। वनिता (पंजाबी) ने ‘मैं शकुंतला नहीं’, पूंजीवाद और भाषा की कलम शीर्षक कविता का पाठ किया। बुद्धिनाथ मिश्र ने गीत में कहा - आदमी गुम जायेगा उसका पता रह जायेगा, और नदी के तीर पर जलता दिया रह जायेगा....। उन्होंने मैथिली कवितायें भी सुनाई। विद्वान डा. इम्तियाज अहमद ने इस सत्र के समापन  पर धन्यवाद ज्ञापन किया।
    सम्मेलन के द्वितीय सत्र में डा. दीपक मनमोहन सिंह (साहित्य अकादेमी के पंजाबी परामर्श मंडल) की अध्यक्षता में कीर्ति नारायण मिश्र (मैथिली), जदुमनि बेसरा (संताली), शमीम तारिक (उर्दू), राजीव बरूआ (असमिया) ने अपनी कविताओं से उपस्थित श्रोताओं का मनोरंजन किया। एक बानगी शमीम तारिक  की - धमाके हार जायेंगे..अब तो दहलीज़ तक आ पहुँचा है चढ़ता पानी... आँख लग जाये जहाँ उसको हवेली कहिए...।
    शायर व गज़लकार चंद्रभान ख़्याल की अध्यक्षता में स्वयंप्रभा (मैथिली), आदित्य कुमार मंडी (संतली) कुलवीर सिंह (पंजाबी), उत्पला बोरा (असमिया), जफर कमाली (उर्दू) और अरविन्द श्रीवास्तव (हिन्दी) ने  काव्य पाठ किया। देखें कुलवीर सिंह की पंक्ति ‘टूटकर रिश्ता हमारा और सुंदर हो गया, तुमको मंजिल मिल गयी मैं मुसाफिर हो गया...। अरविन्द श्रीवास्तव (मधेपुरा) ने अपर्नी  समकालीन हिन्दी कविताओं के जरिए सामाजिक विसंगतियों को रेखांकित किया- तुम करो चिंता / शेयर, सत्ता / ओजोन-अंतरीक्ष की / मुझे करनी है / सबेरे की..। चंद्रभान ख्याल ने दिवंगत शायर कुमार पाशी की स्मृति में लिखे अपने नज़्म को पेश किया।
     इस बहुभाषी कवि सम्मेलन के अंतिम सत्र में वरिष्ठ कवि अरुण कमल (हिन्दी), जसवीर राणा (पंजाबी), उदयचन्द्र झा ‘विनोद’ (मैथिली), शिवलाल किस्कू (संताली) डा. कासीम खुर्शीद (उर्दू) और कौस्तुभ मणि सैकिया (असमिया) ने अपनी-अपनी कविताओं के माध्यम से आज के हालात को श्रोताओं के सामने रखा। कवि अरुण कमल ने अपनी - ‘घोषणा, वित्तमंत्री के साथ नाश्ते की मेज पर, लाहौर, तोडने की आवाज, अमर फल और अपनी केवल धार शीर्षक कविताओं द्वारा कविता की समसामयिक यर्थाथ को उकेरा । डा. कासीम खुर्शीद ने कहा ‘मुझे फूलों से बादल से हवा से चोट लगती है, अजब आलम है इस दिल को वफा से चोट लगती है...। समारोह के सफल समापन पर विद्यानाथ झा ‘विदित’ ने दूरागत कवियों एवं उपस्थित श्रोताओं को धन्यवाद दिया। 
    साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली और चेतना समिति व खुदा बख्श लाइब्रेरी के सहयोग से पटना में आयोजित इस बहुभाषी कवि सम्मेलन में देश के विभिन्न हिस्सों से आये बहुभाषी कवियों की भागीदारी ने  आयोजन को यादगार बना दिया। समारोह में अकादेमी द्वारा पुस्तक प्रदर्शनी भी साहित्य प्रेमियों के आकर्षण का केन्द्र रहा।

मंगलवार

जाबिर हुसेन की कविता : एक दिन बच्चों ने पूछा..




क दिन बच्चों ने पूछा कैसे लिखते हैं पापा समुद्र
फिर पूछा कैसे दिखते हैं पापा समुद्र

इसी तरह कभी पूछा था बच्चों ने
कैसे लिखते हैं पापा नदी कैसी होती है नदी

नदी की कल्पना आसपास थी मेरे
नहीं हुई कोई ख़ास दिक्क़त बच्चों को बताने में
कैसी होती है नदी
पर समुद्र मेरी कल्पना से परे था
उस दिन मैंने बच्चों के सवालों से
अपनी आंखें चुरा ली थीं

कई बरस बाद
जब मेरी उम्र ने थोड़ी फुर्सत पाई
मैंने दर्शन किए समुद्री शहरों के
कई-कई दिन कई-कई रातें
गुज़ारीं समुद्री लहरों के साथ
मीलों गया समुद्र का सीना चीर
देखा कैसे चलती हैं समुद्र में पोतें
कैसे निकालते हैं समुद्र की गहराइयों से
ज्वलनशील पदार्थ
कैसे पकड़ते हैं समुद्री मछलियां बिछाते हैं जाल
कैसे अग़वा कर ली जाती हैं समुद्री नावें
आज़ाद मछुआरे कैसे बना लिए जाते हैं बंदी
टिकाते हैं मछुआरे तूफानी लहरों पर
कैसे अपनी नौकाएं गाते हैं गीत
डोलती नावों पर कैसे बेख़ौफ करते हैं नृत्य
कैसे चुन-चुन लाते हैं
समुद्री थपेड़ों से बनती रेत-आकृतियां
कैसे दूर कहीं
समुद्री टावरों पर
जलते हैं सुरक्षा के दीप
खड़ा होता है बंदूकें दूरबीनें ताने अकेला कोई प्रहरी
कैसे पैदा होती है समुद्री लहरों की मदद से ऐटमी उर्जा
कैसे दूर करते हैं समुद्री जल से उसका खारापन
और पाईप में भर-भर
कैसे बेचते हैं उसे बाज़ारों में

कैसे तट पर तैरती हैं तृष्णाएं
केसे खुलती हैं रंग-बिरंगी बोतलें
कैसे धुएं में पिघलती है तरुणाई
कैसे नशे में डूबती हैं आत्माएं
गुब्बारे कैसे उछलते हैं आसमानों में
कैसे बजती हैं धड़कनें एकदम से तेज़ कर देने वाली धुनें
कैसे सुलगती है आग कैसे बुझती है राख

रेतीली ज़मीन पर समुद्री हिलकोरों के बीच
कैसे थिरकती हैं परियां
कैसे फैलती-सिमटती हैं उनकी पोशाकें
ढंक जाते हैं कैसे
जिस्मों से उनके जिस्म

कैसे डूबता-उबरता है
लंबी दूरी तय करके आने वाला कोई थका जहाज़
कैसे धंस जाते हैं कभी
रेत में उसके आहनी डैने

कैसे विराजती हैं समुद्री गुफाओं में आस्थाएं
जिंदा रहती हैं किंवदंतियां
कैसे सिमट आती हैं एक पल में
हज़ारों साल की दूरियां
मैंने देखा कैसे पिघल जाती हैं चट्टानें
उभर आते हैं द्वीप

कैसे तय होते हैं समुद्री तट पर बने
सितारा होटलों सी-रिसार्टों में सौदे
कैसे होती है सिक्कों की लेन-देन अदलाबदली

सब कुछ देख कर लौट आया हूं
इस शाम मैं अपने गांव
मेरी आंखों में बसी है
अनुभव की एक विशाल दुनिया
अपने बच्चों को बताने उन्हें समझाने
बरसों पूर्व पूछे गए उनके सवालों के जवाब

इस शाम मैं लौट आया हूं अपने गांव
मैंने आवाज़ दी है अपने बच्चों को
बारी-बारी नाम उपनाम से पुकारा है उन्हें

कुहासे और धुंध में ढंकी हैं
मेरे गांव की दीवारें
लौट आई है मेरी आवाज़
घर के आगे खड़े पुराने पेड़ की शाखें
सहलाती हैं मेरे कंधे कहती हैं शायद

बच्चे तेरे अब नहीं रहे बच्चे
हो गए हैं बड़े
सपनों में उनके नहीं रह गया है समुद्र
जान गए हैं वो बड़े होकर
कैसे लिखते हैं समुद्र कैसे दिखते हैं समुद्र

जाबिर हुसेन: साहित्य अकादमी द्वारा सम्मानित एवं साहित्यिक पत्रिका ’दोआबा’ के संपादक हैं।

शनिवार

‘राजधानी में एक उज़बेक लड़की’ पुस्तक का लोकार्पण

डा. मोहय्या अब्दुरहमान (ताशकंद), अरविन्द श्रीवास्तव , डा. असगर अली इंजीनियर, सतीश कालसेकर (मराठी साहित्यकार) व डा. चैथी राम यादव (पूर्व आचार्य बीएचयू)

गत दिनों ( 13 अप्रैल 2012 ) दिल्ली विश्वविधालय के नौर्थ कैम्पस स्थित  केन्द्रीय सभागार में मधेपुरा के युवा कवि अरविन्द श्रीवास्तव के कविता संग्रह ‘राजधानी में एक उज़बेक लड़की’ का लोकार्पण ताशकंद (उज़बेकिस्तान) से आयी लेखिका डा. मोहय्या अब्दुरहमान के साथ विद्वान आलोचक डा. असगर अली इंजीनियर, मराठी साहित्यकार सतीश कालसेकर तथा बीएचयू के पूर्व आचार्य डा. चौथी राम यादव ने किया। समारोह में डा. खगेन्द्र ठाकुर, डा. अली जावेद, राजेन्द्र राजन व रंगकर्मी नूर जहीर आदि की गरिमामय उपस्थिति ने लोकार्पण समारोह को महत्वपूर्ण बना दिया। यह आयोजन प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय अधिवेशन में किया गया था।
  ‘राजधानी में एक उज़बेक लड़की’ समसामयिक विषयों सहित बाज़ारवाद के संकट से जूझ रहे एशिया महादेश के अविकसित राष्ट्रों की अंतर्कथा की बानगी है। ग्लोबल मार्केट में दैहिक शोषण तथा अन्यान्य विषयों पर केन्द्रित इस संग्रह  को यश पब्लिकेशन्स दिल्ली (मो. 09899938522.) ने प्रकाशित किया है।

सच को खंगालती कविताएं ‘बीड़ी पीती हुई बूढ़ी औरत’


कोई भी रचना चाहे वह किसी भी विद्या मे हो, उन सभी की संरचनात्मक मांग वक्त की तमाम हालतों को अपने में अंतर्निहित करने की होती है। सच है कि उस समय के सम्पूर्ण संयोजन के अभाव में किसी बेहतर रचना का विन्यास नहीं हो सकता। तब यह आवश्यक प्रतीत होता है कि रचना में स्मृति, अनुभव और स्वप्न रूपांतरित हांे यदि वह रचना तथ्यों के इतिहास, घटनाक्रम से हो तो लेखक के बिंबों से वे क्षण पुनर्सृजित होते हैं। कवि देवांशु पाल भी उन क्षणों से प्रभावित हैं। वे अपनी रचनात्मक विधाओं में अपने विभिन्न बिंबों के माध्यम से, वक्त के तमाम यर्थाथ को अपने में समेट लेते हैं।
     देवांशु पाल कवि-हृदय के साथ कथाकार भी हैं। उनकी प्रथम कविता संग्रह ‘बीड़ी पीती हुई बूढ़ी औरत’ में चातुर्दिक फैले हुए समय-संकट के मध्य वे इंसानी चेहरे हैं, जिन्हें हम-आप पहचान कर भी, मुख्य-धारा के वैचारिक-मुहिम में शामिल नहीं करते। कवि देवांशु इन क्षणों से मुक्त कदापि नहीं होते, बल्कि सामाजिक प्रतिबद्धता को बखूबी जानते हैं और उनके करीब जाकर अपनी दृष्टि व्यक्त करते हैं। साकारात्मक हस्तक्षेप के मध्य कविता-संग्रह की दो महत्वपूर्ण कविताएँ, जो तिब्बत की आजादी के लिए सपने देखते हैं, इन आशयों में कि मुझे विश्वास है / तुम्हारे बच्चे / आजादी की खुली हवा में / एक बेहतर कल तुम्हें सौपेंगे।’ (पृ.सं.-12.) कविता में एक तिक्तता ऐसी भी है कि मिलने वाली आजादी लाशों को लांघते हुए होगी, तब हमें लगेगा कि हम जीत कर भी हार गए। कविता ‘जब तुम लौट आओगे’ का वह दृश्य, पाठकों को द्रवित करता है- ‘जब तुम लौट आओगे / उन लाशों को लांघते हुए / तब तुम्हें ऐसा लगेगा / तुम जीतकर भी हार गए।’ (पृ.सं.-13) यह अपने मिशन का आत्मविश्लेषण है। और यह आत्मविश्लेषण ईमानदारी-पूर्वक हम तभी कर सकते हैं, जब हम सच्चे हृदय से इन कारकों से आत्म-साक्षात्कार करें। कविता ‘बिलासपुर जल रहा है’ उन्हीं सच्चे आत्म-साक्षात्कार का नतीजा है।  देवांशु की कविताओं में व्यापक सामाजिक विसंगति या प्रतिकूल स्थितियों को जानने के बाद त्रासदी पूर्ण जिन्दगी से मोहभंग ही नहीं, बल्कि इस मोहभंग के पश्चात उत्पन्न बेचैनी याफिर एक खास तल्खी से भरा आवेश होता है और आक्रोश भी। इस लिहाज से संग्रह की कुछ कविताएँ महत्वपूर्ण है- ‘फ्लैट में काम करने वाली लड़की’, ‘मल-मूत्र ढोता आदमी’, ‘गोलू मोची’, ‘आदमी को आदमी का ढोना’, ‘रोज इसी तरह’, ‘चुप्पी’। जिन्दगी की नियति तो देखिए- ‘रोज इसी तरह / लड़का चमकाता है जूते /साहब लोगों के / रोज इसी तरह / निकलती है धूप तेज /रोज इसी तरह / जलता है पेट / लड़के का भूख से ।’ (कविता ‘रोज इसी तरह’) पृ.सं.- 77
    कवि समय के साथ घटित किसी आहतपूर्ण घटनाओं के जरिये उस आदमी के प्रति संवेदना और सोच के लिए, घटनाक्रम के नींव में जाकर उन कारकों के हताशावस्था को ढूँढते हैं। कवि अपनी उन कविताओं में इन व्यापक मानवीय नीयति के संदर्भ में, मूर्त स्थितियों का सांस्कृतिक पक्ष देखता है। शंकर गुहा नियोगी पर इनकी कविता ‘तुम हो आज भी’ इन्हीं दृष्टियों का द्योतक है, इन अंशों में- तुम हो आज भी / इसलिए बनी रहती है संभावनाएँ / विस्फोट की / चट्टानों के सीने में। (पृ.सं.-39)
    महानगर की संस्कृति, जहाँ रिश्तों की मिठास और अपनत्व की उष्मा सिकुड़ती जा रही है और अंततः आदमी धीरे-धीरे अपने अंतस से शुष्क और संवेदनाओं के प्रति दरकता चला जा रहा है, इन मनः स्थितियों की कुछ कविताओं पर भी देवांशु पाल की गहरी पकड़ है। ‘राजधानी की तरफ से आती सड़क’, ‘शहर के बच्चों के सपने में’, ‘मेरे शहर में’, ‘शहरः एक’, ‘शहर: दो’, ‘मकान-एक’, ‘मकान-दो’, के अतिरिक्त ‘गुमशुदा’, ‘उनका गुजर जाना’, ‘बचपन का दोस्त’, बत्तीस साल की कुवांरी लड़की’ की पीड़ाएँ पाठकों को बेचैन कर डालती है। संग्रह की शीर्षक कविता ‘बीड़ी पीती हुई बूढ़ी औरत’ का मर्म भी यूं उभरता है, जैसे- ‘बीड़ी की सुलगती आग / बीड़ी से निकलता तेज धुआँ / और बीड़ी की बदबू / क्या वह औरत बर्दास्त कर सकेगी।’(पृ.सं.87) यह कविता बीड़ी पीने की संस्कृति के विरूद्ध सहमति और असहमति का विमर्श है जहाँ प्रदूषण के साथ बीड़ी पीने के पीछे के प्रेम भरे चरित्रिक इतिहास को भी चिह्नित किया गया है।
    तिरपन कविताओं के इस संग्रह में देवांशु पाल ने जटिल समय में घटते घटनाक्रम, चूकते रिश्तों और चरित्र-स्खलन के सच के निर्वसनित रूपों को उजागर किया है। अपनी कविताओं में वे अपनी अंतरंग अनुभूतियों को कलात्मक अभिव्यक्ति देने में भी सक्षम नजर आते हैं। इनकी कविताओं में सच को खंगालती हुई गहरी और ईमानदार बेचैनी मौजूद है।
 - अरुण अभिषेक, विवेकानन्द कालोनी, पूर्णियाँ 854301. मोबाइल- 09852888589.
पुस्तक -बीड़ी पीती हुई बूढ़ी औरत’,
कवि - देवांशु पाल,
प्रकाशक - बोधि प्रकाशन, जयपुर-302006., मू.-40/00
 

बुधवार

जनकवि हूँ मैं क्यों चाटूँ थूक तुम्हारी.. नागार्जुन











जनता मुझसे पूछ रही है, क्या बतलाऊँ
जनकवि हूँ सच कहूँगा, क्यों हकलाऊँ,
जनकवि हूँ मैं क्यों चाटूँ थूक तुम्हारी
श्रमिकों पर क्यों चलने दूँ बंदूक तुम्हारी                                                                                                                                             - नागार्जुन
        

शुक्रवार

‘शीतल वाणी’ ने दिया एक करामाती कमाण्डर को सेल्यूट !


ह डा. वीरेन्द्र ‘आज़म’ और उनके टीम की इच्छा शक्ति, संकल्प और समर्पण का ही परिणाम रहा कि ‘शीतल वाणी’ का ’कमला प्रसाद स्मृति अंक’ सामने आ सका। यह अंक उस महान शख्सि़यत को समर्पित है जिनके योगदान को साहित्यिक व सांस्कृतिक जगत आसानी से भुला नहीं सकता। कमला प्रसाद जी ने एक संपादक, लेखक व संगठनकर्ता के रूप में जो उदाहरण रखे थे वे बेमिसाल हैं। स्वयं संपादक के अनुसार - प्रोफेसर कमला प्रसाद! आलोचक कमला प्रसाद! विचारक कमला प्रसाद! कमाण्डर कमला प्रसाद! वसुधा के संपादक कमला प्रसाद! प्रलेस के रष्ट्रीय महासचिव कमला प्रसाद!  व्यक्ति एक संबोधन अनेक! यानी बहुआयामी व्यक्तित्व। वस्तुतः स्नेहिल स्वभाव के धनी, लोकप्रिय अध्यापक, आलोचक और संगठनकर्ता डा. कमला प्रसाद के लिए प्रगतिशील लेखक संध एक परिवार था। वे सुख-दुख के के साथी थे। सही मायने में वे एक लेखक से बढ़कर व्यवहार कुशल व्यक्तित्व थे। उनमें प्रतिवद्धता के साथ-साथ सहिष्णुता का समभाव था, सहजता और व्यस्तता उनकी फितरत थी। ऐसे शख्स की स्मृति को ‘शीतल वाणी’ ने सहेज कर साहित्य जगत का बड़ा उपकार किया है। पत्रिका के इस अंक में दिनेश कुशवाहा का ‘उनके आगे मिसालों की आबरू क्या है’ शीर्षक से महत्वपूर्ण संस्मरण है। अरुण आदित्य, विष्णु नागर, राजेश जोशी, पूनम सिंह, डा. सुधेश, अरुण शीतांश, नरेन्द्र पुण्डरीक, प्रदीप मिश्र, जितेन्द्र विसारिया, राजेन्द्र लहरिया, उषा प्रारब्ध ने अपने संस्मरणों में कमला जी के व्यक्तित्व व कृतित्व के साथ उनके साथ अपने संस्मरण को रेखांकित किया है। डा. कपिलेश भोज, प्रदीप सक्सेना, कुमार अंबुज, ज़ाहिद खान, अरविन्द श्रीवास्तव, योगेन्द्र कुमार, सिद्धार्थ राय, सेवाराम त्रिपाठी और विशाल विक्रम सिंह के आलेख तथा शैलेन्द्र शैली का साक्षात्कार अंक को एक ऐतिहासिक दस्तवेज़ की शक्ल प्रदान करता है। साथ ही कई कविताओं ने ‘शीतल वाणी’ के इस अंक को मूल्यवान बना दिया है।
शीतल वाणी (कमला प्रसाद स्मृति अंक), संपादक- डा. वीरेन्द्र ‘आज़म’, 2 सी/755, पत्रकार लेन, प्रद्युमन नगर, मल्हीपुर रोड, सहारनपुर (उ.प्र.) मोबाइल- 09412131404.      

गुरुवार

बाज़ारवाद के बढ़ते प्रभाव में ‘मड़ई’ की महत्ता !


बाज़ारवाद की अपसंस्कृति ने हमारी लोक परंपरा व संस्कृति को जिस तरह से मर्माहत करना प्रारंभ  किया है यह भविष्य के भयावह दृश्य का रिहर्सल-मात्र है। साजिशें रची जा रही है, आततायी लुभावने शब्दों के साथ सुंदर, सम्मोहक खिलौने लिए खड़े हैं दरवाजे पर। हमारी लोक परंपराओं को बाज़ार का रास्ता दिखाया जा रहा है। सुमधुर भोजपुरी गीत बाजार की भाषा बन अपसंस्कृति व उदंडता की परवान चढ़ रहे हैं, उदाहरण अनेक हैं। भाषा-संस्कृति और परम्परा सभी कुछ बाजार से मिल रही चुनौतियों के समक्ष पराजित मुद्रा में असहाय दिख रही हैं। वक्त बाजार की इन विकृतियों से बचने का है। वक्त सांस्कृतिक प्रदूषण के प्रतिरोध का है। लिहाजा ‘मड़ई’ सदृश्य स्वस्थ-सुरूचि समपन्न साहित्य व लोक संस्कृति पर एकाग्र पत्रिका की भूमिका और अधिक बढ़ जाती है। ‘मड़ई’, रजत जयंती अंक के संपादकीय में संपादक- डा. कालीचरण यादव ने बाजारवाद की विकृतियों से उत्पन्न खतरे से आमजन को अगाह करने का विनम्र प्रयास किया है। संपादक ने लोक संस्कृति पर केन्द्रित उत्कृष्ट शोधपरक रचनाओं का इस अंक में समावेश कर अंक को सार्थक बनाया, संपादक का यह श्रमसाध्य कार्य स्तुत्य है।
‘मड़ई’, संपादकः डा. कालीचरण यादव, बनियापारा, जूना बिलासपुर(छ.ग.) फोन- 07752 223206., पृ.- 268, निःशुल्क वितरण ! 

सोमवार

रचनाकार अपने आसपास घट रही घटनाएँ निरंतर देखें... (प्रमोद वर्मा संस्थान का तीसरा युवा रचना शिविर सम्पन्न)

ये रचनाकारों को लिखने से अधिक पढ़ना चाहिए। वरिष्ठ साहित्यकारों की रचनाओं को पढ़ना, आत्मसात करना फिर लिखना ही एक मंत्र है। अधिकांश नया लेखक हड़बड़ी में रहता है जबकि साहित्य की कोई भी विधा मुकम्मल समय मांगती है। प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान के अध्यक्ष विश्वरंजन ने रायगढ़ में पद्मश्री मुकुटधर पाण्डेय स्मृति युवा रचना शिविर को संबोधित करते हुए कहा कि नये समय की अदृश्य चुनौतियों पर गंभीरता से विचार करना आज सभी युवा लेखकों का कर्तव्य होना चाहिए । उद्घाटन अवसर के मुख्य अतिथि प्रो. रोहिताश्व ने कहा कि वे संस्थान के हर शिविर में आते रहे हैं । छत्तीसगढ़ में जिस तरह यह संस्थान राग-द्वेष से मुक्त होकर नवागत लेखकों के लिए उद्यम कर रहा है वह देश के बड़े बड़े प्रतिष्ठानों के वश की बात नहीं । संस्थान द्वारा आयोजित यह तीसरा रचना शिविर था जो 7 से 9 जनवरी तक चला । शिविर की शुरूआत रायगढ़ के युवा संगीतकार श्री मनहरण सिंह ठाकुर व चंद्रा देवांगन द्वारा महाकवि निराला के गीत गायन से हुई । उद्घाटन सत्र का संचालन करते हुये युवा लेखक श्याम नारायण श्रीवास्तव ने सर्वप्रथम आमंत्रित वरिष्ठ साहित्यकारों का परिचय कराया । स्वागत भाषण दिया सुपरिचित आलोचक डॉ. बलदेव ने ।
ज्ञातव्य है कि संस्थान द्वारा देश के युवा एवं संभावनाशील रचनाकारों विशिष्ट और वरिष्ठ साहित्यकारों के माध्यम से साहित्य के मूलभूत सिद्धान्तों, विधागत विषेशताओं, परंपरां व समकालीन प्रवृत्तियों से परिचित कराने, उनमें संवेदना और अभिव्यक्ति कौशल को¨ विकसित करने, प्रजातांत्रिक और शाश्वत जीवन मूल्यों के प्रति उन्मुखीकरण तथा स्थापित लेखक और उनकी रचनाधर्मिता से परिचित कराने की महत्वाकांक्षी योजना के अन्तर्गत छत्तीसगढ़ की विभिन्न जनपदों में निःशुल्क रचना शिविर आयोजित किया जा रहा है।
12 से अधिक कृतियों का विमोचन
शिविर के उद्घाटन अवसर पर कुछ प्रमुख कृतियों का विमोचन हुआ । जिसमें - फ़िराक़ गोरखपुरी पर केंद्रित एकाग्र कुछ ग़में जाना कुछ ग़में दौरा (विश्वरंजन ), आलोचनात्मक कृति “साहित्य की सदाशयता ( जयप्रकाश मानस ), ललित निबन्ध संग्रह परम्परा का पुनराख्यान ( डॉ. श्रीराम परिहार ) छंद प्रभाकर ( डॅा. सुशील त्रिवेदी ) छंद प्रभाकर ( आचार्य जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' रचित कृति - डॉ. सुशील त्रिवेदी),बाल कविता संग्रह- मैना की दूकान (शंभु लाल शर्मा वसंत), व्यंग्य संग्रह- कार्यालय तेरी अकथ कहानी (वीरेन्द्र सरल ) हिंदी के प्रथम साहित्य-शास्त्री- जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' ( डॉ. सुशील त्रिवेदी ) , छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह (शिव कुमार पाण्डेय), गीत संग्रह (गीता विश्वकर्मा), संग्रह संस्थान की त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका पाण्डुलिपि का पांचवा अंक, कविता संग्रह टूटते सितारों की उड़ान (लक्ष्मी नारायण लहरे) कविता संग्रह सुगीत कलश (भागवत कश्यप) आदि प्रमुख कृतियाँ हैं ।
इस रचना शिविर में समकालीन कविता : भाव, मूल्य और सरोकार व समकालीन कविता: शिल्प और संप्रेषणीयता सत्र की अध्यक्षता प्रतिष्ठित आलोचक व गोवा विश्वविद्यालय के प्रो.रोहिताश्व ने की और सत्र के प्रमुख वक्ता थे - बाँदा से पधारे कवि नरेन्द्र पुण्डरीक, कोलकाता के कवि व आलोचक प्रफुल्ल कोलख्यान व भिलाई के कवि नासिर अहमद सिकंदर । संचालन का दायित्व निभाया अशोक सिंघई ने । सत्र का निष्कर्ष था कि प्रत्येक रचनाकार को अपने आसपास घट रही घटनाओं को निरंतर देखना चाहिए, उनमें मानवीय संवेदनाओं को तलाशना चाहिये क्योंकि बिना भाव व संवेदना के कविता हो ही नहीं सकती, भाव के बिना कविता का कोई मूल्य नही है। निष्चय ही कविता का शिल्प भी उसकी संप्रेषणीयता में सहायक होता है ।
छांदस विधाओं पर तीन सत्र निर्धारित थे पहला गीत: भाव और शिल्प, दूसरा नवगीत: लघुक्षण में सघन भाव व्याकुलता तथा ग़ज़ल: हृदय का तनाव और भावाकृति । इस विषय पर अक्षत के संपादक और हिन्दी के प्रतिष्ठित ललित निबंधकार डॉ. श्री राम परिहार (खंडवा), रविशंकर विश्वविद्यालय के पूर्व रीडर और भाषाविद् डॉ. चितरंजन कर, वरिष्ठ गीतकार एवं आलोचक श्रीकृष्ण कुमार त्रिवेदी (फतेहपुर), कवि रवि श्रीवास्तव (भिलाई) व वरिष्ठ शायर मुमताज (भिलाई) ने व्यापक मार्गदर्शन दिया व रचनाओं का परीक्षण कर सुझाव दिया । संचालन किया फैजाबाद के युवा रचनाकार अशोक कुमार प्रसाद ने ।
बालगीत: बाल मन की समझ और सहज संप्रेषणीयता जैसे नये विषय पर बाल साहित्य की तमाम बारीकियों पर एक सार्थक बहस हुई । जिसकी अध्यक्षता की वरिष्ठ दिल्ली से आमंत्रित बाल साहित्यकार रमेश तैलंग ने और प्रमुख वक्ता रहे शंभू लाल शर्मा बसंत, प्रफुल्ल कोलख्यान । रमेश तैलंग का मानना था कि बाल साहित्य की रचनाओं में उद्देश्यपूर्ण रूप से निहित होना चाहिए और हमें प्राचीन परम्परा से आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि आज के बच्चे विज्ञान और तकनीकी के परिवेश में पल रहे हैं । सत्र का कुशल संचालन डॉ. चितरंजन कर ने किया। कहानी विधा पर दो सत्र निर्धारित किये गये थे - कहानी कथा वस्तु और विविध शिल्प तथा कहानी मूल्य और सरोकार । इस महत्वपूर्ण विषयों पर डॉ. रोहिताश्व, प्रफूल्ल कोलख्यान, श्रीकृष्ण कुमार त्रिवेदी, आदि ने कथाओं के शिल्प और कथ्य में हुए परिवर्तन और विकास पर सिलसिलेवार जानकारी देकर कई कहानियों का अनुशीलन किया ।
3 वरिष्ठ कवियों को साधना सम्मान
इस अवसर पर रायगढ़ के तीन वरिष्ठ कवियों जनकवि आनंदी सहाय शुक्ल, गुरुदेव काश्यप, ईश्वर शरण पांडेय को सुदीर्घ साहित्य साधना के लिए प्रमोद वर्मा साधना सम्मान से अंलकृत किया । उन्हें प्रशस्ति पत्र, शाल, श्रीफल, प्रतीक चिन्ह और संस्थान द्वारा प्रकाशित 2 हजार रुपयों की साहित्यिक कृतियां भेंट कर सम्मानित किया गया ।
कविता पाठ
कविता पाठ की बारीकियों से परिचित कराने के लिए आयोजन में वरिष्ठ और नवागत रचनाकारों के लिए दो दिन रचना पाठ का आयोजन भी किया गया जिसमें जनकवि आनन्दी सहाय शुक्ल, डॉ. रोहिताश्व, विश्वरंजन, प्रफुल्ल कोलख्यान, डॉ श्री राम परिहार, मुमताज, नरेन्द्र पुण्डीक, रमेश तैलंग, डॉ. सुशील त्रिवेदी, नरेन्द्र श्रीवास्तव, डॉ. चित्तरंजन कर, विजय राठौर, जयप्रकाश मानस, राम लाल निशाद, राम किशन डालमिया, शंभूलाल शर्मा आदि ने अपनी रचनाओं की माध्यम से नये रचनाकारों को शिल्प, भाव व सरोकार के प्रति सजग किया । एक अलग सत्र में 40 से अधिक युवा रचनाकारों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया जिसमें कुमार वरुण, रमेश कुमार सोनी, कन्दर्प कर्ष, कृष्णकुमार अजनबी, श्याम नारायण श्रीवास्तव, अंजनी कुमार अंकुर, अमित दूबे, ललित शर्मा, श्लेष चन्द्राकर, मो. शाहिद, कमल कुमार स्वर्णकार, गीता विश्वकर्मा, आशा मेहर किरण, वाशिल दानी, प्रमोद सोनवानी, देवकी डनसेना, बनवारी लाल देवांगन आदि प्रमुख हैं। इस आयोजन को सफल बनाने में स्थानीय युवा लेखक श्याम नारायण श्रीवास्तव, के. के. स्वर्णकार, अंजनी कुमार अंकुर के अलावा कमल बहिदार, कन्दर्पकर्ष, सुजीत कर, सनत चौहान, नील कमल वैष्णव, बसंत राघव, लक्ष्मी नारायण लहरे, शिवकुमार पांडेय, प्रभात त्रिपाठी, शिव शरण पाण्डेय, गिरिजा पांडेय, किशन कुमार कंकरवाल ने उल्लेखनीय भूमिका निभायी । समापन समारोह में संस्थान के अध्यक्ष व कार्यकारी निदेशक की ओर से सभी प्रतिभागियों को प्रतीक चिन्ह और प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया गया ।
                             रायगढ़ से श्याम नारायण श्रीवास्तव की रपट
                              मोबाइल नं --09827477442
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