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सोमवार

पटना में प्रलेस का लोकार्पण सह कवि-सम्मेलन कार्यक्रम















हकार...








प्रगतिशील लेखक संघ
पटना इकाई
कविवर कन्हैया कक्ष, केदार भवन (जनशक्ति परिसर), अमरनाथ रोड, पटना-800 001
लोकार्पण सह कवि-सम्मेलन
 लोकार्पणः    पुस्तक ‘अफसोस के लिए कुछ शब्द‘ 
लेखक- अरविन्द श्रीवास्तव       
लोकार्पणकर्ता: अरुण कमल 
अध्यक्षताः डा.खगेन्द्र ठाकुर
मुख्य अतिथिः  व्रजकुमार पाण्डेय,        
                 राजेन्द्र राजन,राजीव कुमार                                                                                                             
आमंत्रित कविः योगेन्द्र कृष्णा, शहंशाह आलम, पूनम सिंह, रश्मि रेखा, राकेश रंजन,सैयद जावेद हसन, अरूण  शीतांश, प्रमोद कुमार सिंह, अरविन्द ठाकुर, उपेन्द्र चैहान, मनोज कुमार झा, सतीश नूतन, अरुण हरलीवाल, मुसाफिर बैठा, श्यामल श्रीवास्तव, राहुल झा।

दिनांक: 1 नवम्बर, 2009 / समय: 2 बजे अपराहन (रविवार)
स्थान:  माध्यमिक शिक्षक संघ भवन, जमाल रोड, पटना

आप सादर आमंत्रित हैं -
निवेदक
प्रगतिशील लेखक संध, पटना
मोबाइल- 9835417537

गुरुवार

सोवियत साम्यवादी सत्ता दरकने के दंश कहाँ है प्रगति प्रकाशन! रादुगा प्रकाशन!



सोवियत साम्यवादी सत्ता दरकने के लगभग बीस वर्ष हो चुके हैं। इस अन्तराल में जो सांस्कृतिक रिक्तता भारत और भारत सदृश्य विकासशील राष्ट्रों में आयी है, उसे खुलकर नहीं तो अन्दर ही अन्दर एक मुकम्मल पीढ़ी महसूस रही है। कहाँ है सस्ते साहित्य का जखीरा! साहित्य ही क्यों अध्ययन की तमाम विधाओं मसलन् इतिहास, राजनीति और दर्शन सहित भौतिकी, रसायन और बनस्पिति शास्त्र की, बच्चों के लिए चटकदार रंगीन पुस्तकें, सामयिक पत्रिकाएं आदि आदि। ये सारी सामग्री महज वैचारिक खुराक ही नहीं थी, वरन् मानव जीवन के सहज विकास के सहायक तत्व थे। प्रगति प्रकाशन, रादुगा प्रकाशन, पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस, रेडियो मास्को, इस्कस और प्राव्दा, इजवेस्तिया व नोवस्ती प्रेस एजेंसी जैसे, सोवियत साम्यवादी व्यवस्था के सहयोगी अंग क्यों न रहे हों, धरती पर अन्य ‘व्यवस्था’ मे जन जागरण का यह माद्दा, उत्साह और जुनून नहीं रहा है। थोड़ी देर के लिए यदि हम अलेक्सान्द्र पुश्किल और लियो तालस्तोय को मात्र रूस का ही लेखक माने तो कौन सा देश अपने लेखकों के लिए उनकी रचनाओं को प्रकाशित व अनुवाद कर विश्व के जन जन तक पहुँचाने का बीडा़ उठाता है, निःशुल्क या बिल्कुल अल्पमूल्य में। धरती को कचड़ा घर बनाने के अलावे सम्पन्न मुल्कों ने और क्या किया है इस पृथ्वी के लिए ? संहार के नये इल्म तलाशने, सभ्यता की सुरक्षा, सुख और विलासिता के लिए मोबाइल.........मैट्रो, मिसाइल......., बौद्धिक-वैचारिक, सांस्कृतिक  शून्यता और खोखले मस्तिष्क पर समृद्धि व कथित सुरक्षा का मुलम्मा।
दुनिया के तमाम लेखक और लेखक संगठनों को अपनी सरकार और हुक्काम पर दबाव बनानी चाहिए कि जिस तरह हवा, पानी, धूप और चांदनी पर सभी का हक है, ठीक वैसे ही साहित्य पर!

-अरविन्द श्रीवास्तव, मधेपुरा
मोबाइल- 09431080862.

मंगलवार

’राइफल’ एक छोटी कविता







राइफलें
जो किसी पत्ते की खड़खड़ाहट
कि दिशा में
तड़-तड़ा उठी थीं
और किसी संकट को टाल देने की
विजय मुद्रा में
चाहता था राइफलधारी मुस्कुराना

जिसे बड़े ही ध्यान से
देख रहा था
पत्ते की ओट से
एक चूहा !

-अरविन्द श्रीवास्तव, मधेपुरा

गुरुवार

एक खामोश कवि की अग्नि-ऋचाएँ





नई पीढ़ी. के कवियों में राकेश प्रियदर्शी ने अपनी काव्यात्मक सोच और धार की बदौलत समकालीन कविता जगत में अपनी पहचान कायम की है। उनकी नवीनतम कृति ‘इच्छाओं की पृथ्वी के रंग’ में एक संवेदनशील दृष्टि के साथ मानवीय चिंताओं के प्रति बेचैनी और छटपटाहट स्पष्ट दिखती है। सभ्यता के पैर में पड़ी हजारों वर्षों की बेड़ी वह आनन फानन में खोलना चाहते हैं। पुस्तक में प्रकाशित इनकी कविताओं के बिंव-चित्र, जीवंत काव्य विन्यास, काव्य विधा पर इनकी पकड. को आश्वस्त प्रदान करते हैं। गहन सूक्ष्मता संजोए इनकी कविताओं का बहुरंगी फलक पाठकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करते हैं। प्रस्तुत है उनकी पुस्तक ‘इच्छाओ की पृथ्वी के रंग’ की कुछ बानगी-

लिहाजा मुझे फांसी दी जानी चाहिए,
कि मेरी रूह से सच की बू आती है
लिहाजा मुझे काल कोठरी में कैद
कर देना चाहिए
कि मेरे शब्द गर्म होकर आग उगलते हैं
लिहाजा मुझे रस्सी से बांधकर पथरीली
सड.कों पर घसीटा जाना चाहिए
कि आज भी मै उतना ही वफादार हूँ
जितना एक पालतू कुत्ता
.......
                                   ‘गुलाम हाजिर है’ शीर्षक कविता

 वह नदी की आँखों में डूबकर
सागर की गहराई नापना चाहता था
और आसमान की अतल ऊंचाईयों में
कल्पना के परों से उड़ान भरना चाहता था,
पर वह नदी तो कब से सूखी पड़ी थी,
बालू, पत्थर और रेत से भरी थी
2.

वह कैसी नदी थी जिसमें स्वच्छ जल न था,
न धाराएं थी, न प्रवाह दिखता था,
वहां सिर्फ आग ही आग थी
....
                                              ‘नदी’ शीर्षक कविता

लेखक सम्पर्कः पटना, मोबाइल-09835465634
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