तीन अन्तराष्ट्रीय सीमाओं - तिब्बत (चीन) भूटान और वर्मा से घिरे अरुणाचल प्रदेश को जानने-समझने का जो प्रयास ‘जनपथ’ ने किया है वह स्तुत्य है। अरुणाचल की बहुरंगी सांस्कृतिक विरासत के विविध दृश्यों को प्रस्तुत कर जनपथ ने हमारी जिजीविषा को एक सशक्त मुकाम दिया है।
अरुणाचल प्रदेश भारत के का पूर्वोत्तर प्रहरी प्रदेश, जहाँ भारत-भू को सूर्य की प्रथम किरणें स्पर्श करती है। सघन वन तथा जैव एवं वानस्पतिक विविधता की दृष्टि से विश्व के समृद्धतम भू-भागों में एक यह पर्वतीय अंचल अपने प्राकृतिक सौन्दर्य में तो अनुपमेय है ही, अनेक जनजातियों के रंग-विरंग सांस्कृतिक वैविध्य का भी अद्भुत आंगन है।
अरुणाचल में हिन्दी का विकास यह प्रमाणित करता है कि यदि कृत्रिम बाहरी विरोध या दबाव न हो तो इस देश की जनता सहज रूप से हिन्दी को ही स्वीकार करेगी, अंग्रेजी को नहीं। हिन्दी को खतरा हिन्दी वालों के दुराग्रह और हठधर्मिता से है, हिन्दी-विरोध से नहीं। ‘आइ डोंट नो हिन्दी’ की अभिजात्यवादी मानसिकता हिन्दी वालों में ही प्रबल है, अहिन्दी भाषियों के लिए तो यह मजबूरी है। भारत में हिन्दी के विकास के लिए किसी भी ताम-झाम वाले प्रचारतंत्र या संगठन की जरूरत नहीं, जरूरत है तो केवल हिन्दी विरोध को रोकने की।
...यदि इनका समुचित विकास किया जाय तो भविष्य का अरुणाचल सुख समृद्धि, उत्कृष्ट मानवीय गरिमा तथा प्रकृति-मानव सह-सम्वन्ध से युक्त एक ऐसे प्रदेश के रूप में अवतीर्ण होगा जिसको, भारत ही नहीं पूरा विश्व विकास स्तर के प्रतिमान के रूप में पहचान करेगा...
‘जनपथ’ का यह अंक (दिसम्बर-09) जो अरुणाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल माननीय माता प्रसाद जी की हिन्दी सेवा को समर्पित है, अपने अनूठे विपुल सामग्री व धारदार कलेवर के कारण संग्रहणीय बन गया है।
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