लेखक आत्मा के कॊफी हाउस का परिचारक ही होता है - विकास कुमार झा
इंदु शर्मा मेमोरियल ट्रस्ट के मुख्य न्यासी तेजेन्द्र शर्मा के लंदन में आप्रवासी भारतीय के रूप में बस जाने के बाद कथा यू के के बैनर तले यह संस्था कार्य करने लगी। कथा यू के यूनाइटेड में बसे दक्षिण एशियाई मूल के लेखकों के समूदाय की संस्था है और भारत के मुंबई शहर से जुड़ी साहित्यिक, सामाजिक संस्था इंदु शर्मा मेमोरियल ट्रस्ट इसकी मूल इकाई है। नई शताब्दी यानि 2000 से इंदु शर्मा कथा सम्मान को अंतराष्ट्रीय स्वरूप दिया गया साथ ही उम्र सीमा हटा दी गई तथा उपन्यास विधा को भी सम्मान हेतु शामिल किया गया। भारत से आनेवाले सम्मानित लेखक को भारत-लंदन/लंदन-भारत का हवाई जहाज का टिकट, लंदन में एक सप्ताह रहने व आसपास के दर्शनीय स्थानों का भ्रमण करवाया जाता है। अब तक यह अंतराष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान चित्रा मुद्गल, संजीव, ज्ञान चतुर्वेदी, एस आर हरनोट, विभूतिनारायण राय, प्रमोद कुमार तिवारी, असगर वजाहत, महुआ माजी, नासिरा शर्मा, भगवानदास मोरवाल और विकास कुमार झा को प्रदान किया जा चुका है।
इंग्लैण्ड के हिन्दी साहित्यकारों को सम्मानित करने हेतु पद्मानंद साहित्य सम्मान पाने वालों में डाक्टर सत्येन्द्र श्रीवास्तव, दिव्या माथूर, नरेश भारतीय, भारतेन्दु विमल, अचला शर्मा, उषा राजे सक्सेना, गोविन्द शर्मा, गौतम सचदेव, उषा वर्मा, मोहन दवेसर दीपक, कादम्बरी मेहरा और नीना पाल को प्रदान किया जा चुका है।
लंदन में आयोजित इस सम्मान समारोह में भारत के उच्चायुक्त श्री नलिन सूरी ने ब्रिटिश संसद के हाउस आफ कामन्स में हिन्दी लेखक विकास कुमार झा को उनके कथा उपन्यास ‘मैकलुस्कीगंज’ के लिए ‘सतरहवां अंतर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान’ तथा लेस्टर निवासी ब्रिटिश हिन्दी लेखिका श्रीमती नीना पॊल को बारहवां पद्मानंद साहित्य सम्मान प्रदान करते हुए कहा कि ‘ हिन्दी अब आहिस्ता-आहिस्ता विश्व भाषा का रूप ग्रहण कर रही है। बाजार को इस बात की खबर लग चुकी है कि यदि भारत में पांव जमाने हैं तो हिन्दी का ज्ञान जरूरी है।
विकास कुमार झा ने कहा कि ‘एक कवि या लेखक आत्मा के कॊफी हाउस का परिचारक ही होता है। आत्मा के अदृश्य कॊफी हाउस का मैं एक अनुशासित वेटर (परिचारक) हूँ और अगला आदेश लेने के लिए प्रतीक्षा में हूँ।’ अपने उपन्यास पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा- ‘मैकलुस्कीगंज’ मेरे लिए जागी आंखों का सपना है।’ .....
यह महज संयोग ही है कि जिस वक्त इस स्मारिका का पैकेट विकास दा को मिला, मैं उनके साथ आवास पर था और उनके हाथों से इस स्मारिका को पाने वाला मैं (अरविन्द श्रीवास्तव) पहला व्यक्ति बना !! विकास कुमार झा को पुनः बधाई, अशेष शुभकामनाएं।