मेरी सूरत भय से
पसीने से सनी हुई है;
- वजह यह है
मेरे सर पर
धूप की तलवार तनी हुई है।
कड़ी धूप का दिन
कुछ इस तरह से नागवार गुजरा,
-जैसे मय्यत पर मुजरा
कुछ इस तरह से नागवार गुजरा,
-जैसे मय्यत पर मुजरा
एक बात
जो अब सरे आम
जाहिर हो गयी है
कि जाड़े की धूप ने
अपना धर्म बदल लिया है
- काफिर हो गई हैं।
जेठ की दुपहरी में
अंग-अंग पर धूप की यह मार,
बड़ी असहनीय है दोस्त
जैसे- गाँव में
- महाजन का उधार।
-डा. अमरेन्द्र, भागलपुर.
मोबाइल- 09939451323.
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