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मंगलवार

कवि सोमदेव को प्रबोध साहित्य सम्मान स्वरूप एक लाख की राशि और स्मारक।



मैथिली के प्रतिष्ठित कवि 76 वर्षीय सोमदेव को वर्ष 2011 के लिए प्रबोध सहित्य सम्मान दिए जाने की धोषणा स्वास्ति फाउन्डेशन की ओर से की गयी है। ज्ञातव्य है कि आचार्य सोमदेव इसके पूर्व साहित्य अकादमी द्वारा भी सम्मानित हो चुके हैं। चानोदाइ, होटल अनारकली (उपन्यास), चैरेवेति, काल ध्वनि, लाल एशिया, मेघदूत, सहस्त्रमुखी चैक पर, सोम सतसई जैसे काव्यग्रंथों के रचयिता सोमदेव साठ वर्षों से अनवरत साहित्य सेवा में रत हैं।
1955 में मिथिला विश्वविधालय, दरभंगा से हिन्दी विभाग के उपाचार्य पद से निवृत होकर साहित्य साधना में निमग्न हैं। प्रबोध साहित्य सम्मान के रूप में उन्हें 19 फरवरी को पटना स्थित कालीदास रंगशाला में 1 लाख नगद और प्रतीक चिन्ह दिया जायेगा।

रविवार

लोक चेतना की साहित्यिक पत्रिका ‘कृति ओर’ का यह अंक-


लोक धर्मिता की हृदय-स्पर्शी कविताओं और लोक दृष्टि के तत्वों से सम्पूरित आलेखों से संकलित ‘कृति ओर’ का अक्टूबर-दिसम्बर ’10 का 58 वाँ अंक कई अर्थों में विशेष उल्लेखनीय हैं। लोक, जनपद और काव्यभाषा पर संदर्भित संपादक विजेन्द्र का आलेख ‘कृति ओर’ से जुड़े कवि, लेखक तथा पठकों को यह सोचने को विवश कर देता है कि हिन्दी और संस्कृत की कविता तथा उसका काव्यशास्त्र या आलोचना की आत्मा भारतीय आत्मा से भिन्न नहीं है- फिर भी जनजातियांे की जीवनशैली और संस्कृति इस कथित भारतीयता से मेल नहीं खाती। इस अभिप्राय का मंथन सदियों से चला आ रहा है। संपादक का विचार इस संबन्ध में वही है- जो कबीर का था- 
गंग तीर मोरी खेती बारी
जमुन तीर खरियाना
सातों बिरही मेरे निपजै
पंचू मोर किसाना।
सत्येन्द्र पाण्डेय का आलेख ‘समकालीन कविता में लोक दृष्टि’ तथा रामनिहाल गुंजन की ‘केशव तिवारी की काव्य चेतना’ में जहाँ कविता में लोक तत्व की मुखरता है वही सामाजिक कुरीतियाँ एवं राजनैतिक पाखण्ड के प्रति विद्रोह के शब्द गरजते हैं। 
हसी तरह शहंशाह आलम की कविता ‘धार्मिक विचारों को लेकर’ उसी धार्मिक ढोंग को रेखांकित करती है - जो अभी सम्पूर्ण विश्व की ज्वलन्त समस्या है। अन्य कविताएँ भी पठनीय है। संपर्क- ‘कृति ओर’ संपादकः रमाकांत शर्मा, ‘संकेत’ ब्रह्मपुरी-प्रतापमंडल, जोधपुर-342 001.(राजस्थान) मोबा.- 09414410367.

शुक्रवार

दिवंगत शिवराम की सृजनशीलता को समर्पित ‘प्रतिश्रुति’ का यह अंक


ऐसा सोचा कीजिए, जब मन होय उदास
एक सुंदर-सा स्वप्न है,अब भी अपने पास
                                                     
जोधपुर के मरुस्थल से भारतीय विद्या भवन द्वारा प्रकाशित ‘प्रतिश्रुति’ (त्रैमासिक) का अक्टूबर-दिसम्बर ’10 अंक विचारोत्तेजक आलेख एवं मर्मस्पर्शी कविताओं के कारण हिन्दी पत्रिकाओं की शीर्ष पँक्ति में स्थान पाने को सक्षम है। संपादक डा. रमाकांत शर्मा ने अपने संपादकीय में आज की मुखर और वाचाल कविता ही नहीं, जिन फूहर कविताओं की ओर अंगुली उठाई है- वस्तुतः वह सपाटबयानी है और ऐसी कविताओं ने हिन्दी साहित्य का घोर अनिष्ट किया है। यही नहीं ‘उद्वोधन’ और ‘उपदेश’ भी कविता का क्षेत्र नहीं है। संपादक के अनुसार जीवन और जगत के मार्मिक चित्र मनुष्य को क्रियाशील बनाती है कविता। कविता अनुभव का हिस्सा बनकर संवेदनात्मक और इन्द्रियबोधात्म रूप में प्रस्तुत होती है तब वह प्रभावी, विश्वसनीय और आत्मीय हो जाती है। यह मार्गदर्शन भावी काव्यकारों के लिए सर्वथोचित है।
इस अंक के आलेख ‘पाठकों की बदलती रूचि और सृजन का संकट’ मे लेखक प्रेमपाल शर्मा अपने लंबे शैक्षणिक प्रशासनिक अनुभवों के आधार पर बेखौफ कह सकते हैं कि अनेकानेक वैज्ञानिक उपकरणों के कारण अब सृजन भी ‘हईटेक’ हो चुके हैं। फिर भी सृजन में संकट है- किन्तु सर्जक का संकट नहीं। निर्माण और ध्वंस का क्रम चलता रहेगा, लाख संकट में भी सृजन होते रहेंगे। 
सुप्रसिद्ध रंगकर्मी, साहित्यकार और माक्र्सवादी विचारक शिवराम जी पर महेन्द्र नेह का स्मृति शेष आलेख ‘नहीं बुझेगी दृढ़ संकल्पों की मशाल’ उनके संघर्षशील और क्रांतिकारी विचारों को सलाम करता है। अंक से सुधीर विद्यार्थी की एक छोटी कविता ‘बीज’ 
-यदि मैं कठफोड़वा होता /तो दुनिया भर के /काठ हो चुके लोगों के / सिरों को फोड़ कर / भर देता जीवन के बीज  

डा. रमाकांत शर्मा 
संपादकः प्रतिश्रुति
‘संकेत’ ब्रह्मपुरी-प्रतापमंडल,
जोधपुर-342 001.(राजस्थान) मोबा.- 09414410367.

गुरुवार

हिन्दी में उदय प्रकाश सहित विभिन्न भाषाओं के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कारों की सूची


वर्ष 2010 में 20 दिसंबर को साहित्य अकादमी पुरस्कारों की घोषणा की गई। इस बार तीन कहानीकारों, चार उपन्यासकारों 8 कवियों और सात समालोचकों को यह पुरस्कार प्रदान किया गया।

उदय प्रकाश (हिंदी) कहानी (मोहनदास)
मनोज (डोगरी) कहानी
नांजिल नाडन (तमिल) कहानी
अरविन्द उजीर (बोडो) कविता
अरूण साखरदांडे (कोंकणी) कविता
गोपी नारायण प्रधान (नेपाली) कविता
वनीता (पंजाबी) कविता
मंगत बादल (राजस्थानी) कविता
मिथिला प्रसाद त्रिपाठी (संस्कृत) कविता
लक्ष्मण दुबे (सिन्धी) कविता
शीन काफ निजाम (उर्दू) कविता
बानी बसु (बांग्ला) उपन्यास
एस्थर डेविड (अंग्रेजी) उपन्यास
धीरेन्द्र महेता (गुजराती) उपन्यास
एम. बोरकन्या (मणिपुरी)
केशदा महन्त (असमिया) समालोचना
बशर बशीर (कश्मीरी) समालोचना
रहमत तरिकरे (कन्नड़) समालोचना
अशोक रा. केलकर (मराठी) समालोचना

उदय प्रकाश को प्राप्त सम्मान -भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार,
ओम प्रकाश सम्मान,
श्रीकांत वर्मा पुरस्कार,
मुक्तिबोध सम्मान,
साहित्यकार सम्मान
द्विजदेव सम्मान
वनमाली सम्मान
पहल सम्मान
SAARC Writers Award
PEN Grant for the translation of The Girl with the Golden Parasol, Trans. Jason Grunebaum
कृष्णबलदेव वैद सम्मान
महाराष्ट्र फाउंडेशन पुरस्कार, 'तिरिछ अणि इतर कथा' अनु. जयप्रकाश सावंत
2010 का साहित्य अकादमी पुरस्कार, ('मोहन दास' के लिये)

रविवार

किस्सा दुख नामक बेटी- मंगलेश डबराल संदर्भः सारा शगुफ्ता! उर्दू की पहली ‘एंग्री यंग पोएटस’


  सारा हमारे वक़्त की एक शायरा और एक इंसान का इक़बालिया बयान है, जिसे शाहिद अनवर ने एक लंबे एकालाप की तरह दर्ज किया है। लेकिन यह भीषण, परेशानकुन और ज़मीर को झकझोर देने वाला क़बूलनामा दरअसल एक बड़ा अभियोग-पत्रा है, जिसमें एक मासूम औरत और एक बेमिसाल शायरा अपनी त्रासद मृत्यु के लिए पुरुष जाति को गुनहगार ठहराती है। सारा के पति और सरपरस्त मर्द उसे हर बार सिर्फ इसलिए सज़ा देते रहे कि वह एक औरत थी और इसलिए भी कि वह शायरी करती थी। प्रेम की एक बेचैन तलाश में सारा ने चार विवाह किए और हर बार उसे अपमान और उत्पीड़न और क्रूरता का शिकार होना पड़ा। उसके पतियों में कुछ अच्छे-ख़ासे शायर भी थे, लेकिन वे भी मर्द ही साबित हुए और उन्हें भी सारा का शायरी करना गवारा नहीं हुआ। इसलिए नहीं कि वे शायरी के विरोध्ी थे, बल्कि इसलिए कि वे एक शायरा को अपनी बीवी बेशक बनाना चाहते थे, उस बीवी को आज़ाद रह कर शायरी करते हुए नहीं देख सकते थे। ‘मेरे क़बीले की कोख से / जब सिर्फ चीख पैदा हुई / तो मैंने बच्चे को गोद से फेंक दिया / और चीख़ को गोद ले लिया’ कहने वाली सारा आखि़रकार मौत को गोद ले लेती है, लेकिन यह मामूली मौत नहीं है, बल्कि यह किसी ज़मीर, किसी पाकीज़गी, किसी कायनात, किसी ख़ुदाई के और उसके परे भी कोई है तो उसके सामने और उसके भीतर गूंजते हुए अभियोगों और लानतों का एक दस्तावेज़ है। तमाम मर्दों और उनकी सामंती-बेरहम-ज़ालिम सत्ता के ख़िलाप़फ तमाम आज़ाद आत्माओं वाली औरतों की तरफ से एक अभियोग-पत्र !
इस एकल नाटक में सारा एक जगह अपने शौहर को ‘यज़ीद’ कहकर बुलाती है तो एक और जगह कहती हैः ‘तुम्हें जब भी कोई दुख दे / तो उस दुख का नाम ‘बेटी’ रखना।’ सारा के चार विवाह असल में चार मौतें, चार खुदकुशियां हैं और पांचवीं बार जब वह सचमुच ज़िंदगी की तरप़फ जा रही होती है, जब उसे अपनी मासूमियत और अपने प्रेम का कोई प्रतिबिंब और प्रतिरूप किसी सईद के भीतर नज़र आने लगता है तो वह ख़ुद अपना ख़ात्मा कर लेती है।...
क्या यह ‘दुख’ नामक बेटी की नियति है जिसका ज़िक्र सारा ने अपनी शायरी में किया है या सारा इस दुनिया में, जहां तमाम पुरुष उसे एक आसान शिकार की तरह देखते हैं, उसे हासिल करना चाहते हैं, लेकिन उसके भीतर किसी दुख, किसी विकलता, किसी स्वप्न को नहीं पहचान सकते, एक ऐसी दुनिया जिसमें प्रेम को पहचानने की संवेदना और मासूमियत नहीं बची है, और पति या प्रेमियों के द्वारा किए जा रहे बलात्कारों को ही प्रेम माना जाता है, अपने ख़ात्मे से कुछ सवाल छोड़े जा रही है, जो उसकी क़ब्र से भी उठते हुए आएंगे।
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