'दोआबा' अंक - 10 अपने आकर्षक कलेवर और संपादक के रूचिकर रचना-चयन जैसे श्रमसाध्य अनुष्ठान का प्रतिफल है। यही कारण है कि दोआबा अपनी उपादेयता को मूल्यवान बनाने के साथ-साथ यह साहित्य जगत की अनिवार्य पत्रिका भी बन जाती है।
'दोआबा' के इस अंक में सुचयनित कविता एवं कहानियों में सिएथल, मीरा कुमार, स्नेहमयी चैधरी, सोनिया सिरसाट, राजेन्द्र नागदेव, राजकुमार कुम्भज, रामकुमार आत्रेय, सुशील कुमार, अशोक गुप्त, भारत भूषण आर्य और ज्ञानप्रकाश विवेक सम्मलित हैं। मीरा कांत का एकल नाटक- गली दुल्हनवाली, आत्मगत में मधुरेश और मनमोहन सरल का आलेख - भारत की आत्मा के चितेरे थे हुसेन के साथ संवेदना व वैचारिकता से पूर्ण संपादक जाबिर हुसेन के संपादकीय- ... मैं तुम्हारे शहर आऊँगा, सोहा, फिर आऊँगा... गहन सूक्ष्मता संजोए यथार्थ व संवेदनाओं का खूबसूरत कोलाज है।
इस अंक में प्रकाशित मीरा कुमार की कविता ‘साझा सपने’ की एक बानगी-
है तुम्हारी पलकों पर इन्द्रधनुष
उसके रंग मेरी आंखों में तैर रहे
तुममें और मुझमें
ये सपनों की कैसी साझेदारी है
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........ - अध्यक्ष, लोक सभा, नई दिल्ली।
दोआबा / संपादकः जाबिर हुसेन
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