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परिकथा, अंक- मई-जून,(संपादक-शंकर, 96,बेसमेंट, फेज III इरोज गार्डन, सूरजकुंड रोड, नई दिल्ली-110044 मोबाइल-09431336275) इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि किसी साहित्यिक पत्रिका के लिए बीस अंकों का लंबा सफर तय करना, आज दुस्साहसिक कदम-सा है। हम इसे साहित्य के लिये मुट्ठी भर प्रतिबद्ध लोगों का जुनून भी कह सकते हैं, अमूमन साहित्यिक पत्रिकाएं आर्थिक दंश के आगे दो-चार अंकों में ही कराह उठती है, हम परिकथा के लिये लंबी आयु की मंगलकामनाएं कर सकते हैं…।
दूसरी बात यह कि पत्रिका के साथ – डा नामवर सिंह और असग़र वजाहत सदृश्य साहित्यिक व्यक्तित्वों का जु्ड़ना भी परिकथा को ‘एक जरुरी पत्रिका’ बना देती है।
और अंत में, परिकथा का यह अंक मेरे लिये इसलिए भी मह्त्वपूर्ण है कि इस अंक का आवरण चित्र (मुख्य पृष्ठ) मैने बनाया है…।
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अरविन्द श्रीवास्तव, अशेष मार्ग, मधेपुरा-852113(बिहार) मो-094310 80862