स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सांस्कृतिक नवचेतना तथा वर्तमान भारतीय रंगमंच को समृद्ध करने मे लिए कई कलाकारों ने अपने को समर्पित किया। अपनी रंग प्रतिवद्धता व विशिष्ठ रंग रचना के लिए चार नाम प्रायः लिए जाते हैं -ये हैं शंभु मित्र, उत्पल दत्त, इब्राहिम अल्काजी और हबीब तनवीर। ये लोक मंच के अनमोल धरोहरें हैं । लोकरंग कर्म के अतिरिक्त लोक गीत, लोक कथा, लोकाख्यान आदि लोक साहित्य भी भारतीय लोक जीवन और लोक संस्कृति के अविच्छिन्न अंग है। ‘मड़ई’ इन्हीं लोक संस्कृतियों को सहेजे कर रखने का जो स्तुत्य कार्य कर रहा है वह भारतीय प्रिंट मीडिया के विकास का एक गौरवशाली अध्याय है। प्रस्तुत अंक ‘मड़ई’- 2009 में लोक साहित्य - संस्कृति से जुड़े 38 आलेखों के खोजपूर्ण भंडार हैं -जो समग्र रूप में भारतीय क्षेत्र की विभिन्न भाषाओं, लोक जीवन और लोक संस्कृति पर गहन प्रकाश डालते हैं। यह अंक भावी पीढीयों में सांस्कृतिक आत्मविश्वास भरने में सक्षम होगा- यही आशा की जाती है। सारे आलेख पठनीय, मननीय तथा स्तरीय हैं। इसकी उपयोगिता हर काल में बनी रहेगी।
सम्पादक: डा. कालीचरण यादव
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