अभी सप्ताह भर पटना में रहा, छोटी सी मुलाकात में शहंशाह आलम ने अपनी नयी पुस्तक ‘अ

खेल-खेल में
ईजाद नहीं हुआ होगा
सायकिल का
लेकिन खेल-खेल में
सीख जाते हैं
सायकिल चलाना लड़के
दो
हमारे शरीर की तरह
पंचभूतों से ही बनी लगती है
यह सायकिल
सोचता हूँ भर जी सोचता हूँ
सायकिल सिर्फ़ सायकिल क्यों है
क्यों नहीं है
एक संपूर्ण देह
जिसमें कि
एक बेचैन आत्मा
वास कर रही है।
4 टिप्पणियां:
अच्छी कविता है। शहंशाह आलम को मेरी ओर से नई पुस्तक के लिये बधाई भाई!-
सुशील कुमार
बहुत प्यारी कविता है शहंशाह की यह ..मेरी बधाई और प्यार..
one of the most tuching poetries i have ever read
शहंशाह को नई पुस्तक के लिए ढेरों शुभकामनाएं…
ब्लॉग के लिए आपको भी।
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