मैथिली कविता में नव्यतम पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करने वाले अजित कुमार आजाद की कविताओं का बहुरंगी फलक समकालीन काव्य परिदृश्य में नवीनता का अहसास कराती है। इनकी कविताएँ समय से सीधा-सीधा संवाद और मुठभेड़ करती है। मैथिली कविता संग्रह ‘युद्धक विराधमे बुद्धक प्रतिहिंसा’ का हिन्दी अनुवाद ‘अघोषित युद्ध की भूमिका’ इनकी महत्वपूर्ण कृति आयी है। अजित की दो कविताएँ मित्रों के लिए:
पृथ्वी की कोख में सुरक्षित है भ्रूण
सुरक्षित है पृथ्वी की कोख में भ्रूण
जन्म देने के लिए जगह
सुरक्षित है अभी भी
कास की फुनगी पर आस की हरियाली
जन्म देने के लिए जगह
सुरक्षित है अभी भी
कास की फुनगी पर आस की हरियाली
सूर्य के चारों ओर नाचती है पृथ्वी
पृथ्वी के चारों ओर प्रक्षेपास्त्र
मनुष्य ने किया प्रत्यारोपित
पृथ्वी की कोख में बारूद
बावजूद इसके
सुरक्षित है नींद में सोये बच्चे का भविष्य
और स्वप्न देखने का उसका अधिकार
धरती का ताप बढ़ता जा रहा
अबाह-घबाह पैरों से नापता है इतिहास
जबकि लिप्त हैं लोग
भ्रूण हत्या के आदिम षड्यंत्र में
अपनी सम्पूर्ण आस्था के साथ रखा है सुरक्षित
नवसृष्टि का भ्रूण पृथ्वी ने अपनी कोख में...
अखबार में प्रेम
एक सनसनीखेज समाचार की
सभी शर्तें पूरा करने के बावजूद
प्रथम पृष्ठ से अंतिम पृष्ठ तक
भटकता रह जाता है प्रेम
महानगर के पृष्ठ पर
कभी-कभी झाँकने वाला प्रेम
अंचल के पृष्ठों पर घिसटते हुए
बलात्कार के खबर में बदलकर
अर्थ-व्यापार के पन्ने में गायब हो जाता है
खेल पृष्ठ पर खिलवाड़-सा लगता है प्रेम
एक विज्ञापनी मुद्रा से बढ़कर
और कुछ भी नहीं
अखबार को बाजार दिलाती है प्रेम
लेकिन प्रेम को थोड़ी भी जगह
नहीं देता अखबार
प्रेम यदि आ भी जाए
समाचार डेस्क तक
तो संपादक से
बिना बलत्कृत हुए नहीं छपता है
आश्चर्य कि
अखबार भी तभी बिकता है...!
संपर्कः 21, एम.आई.जी., हनुमान नगर, पटना-20
मोबाइल- 09234942661.
पृथ्वी के चारों ओर प्रक्षेपास्त्र
मनुष्य ने किया प्रत्यारोपित
पृथ्वी की कोख में बारूद
बावजूद इसके
सुरक्षित है नींद में सोये बच्चे का भविष्य
और स्वप्न देखने का उसका अधिकार
धरती का ताप बढ़ता जा रहा
अबाह-घबाह पैरों से नापता है इतिहास
जबकि लिप्त हैं लोग
भ्रूण हत्या के आदिम षड्यंत्र में
अपनी सम्पूर्ण आस्था के साथ रखा है सुरक्षित
नवसृष्टि का भ्रूण पृथ्वी ने अपनी कोख में...
अखबार में प्रेम
एक सनसनीखेज समाचार की
सभी शर्तें पूरा करने के बावजूद
प्रथम पृष्ठ से अंतिम पृष्ठ तक
भटकता रह जाता है प्रेम
महानगर के पृष्ठ पर
कभी-कभी झाँकने वाला प्रेम
अंचल के पृष्ठों पर घिसटते हुए
बलात्कार के खबर में बदलकर
अर्थ-व्यापार के पन्ने में गायब हो जाता है
खेल पृष्ठ पर खिलवाड़-सा लगता है प्रेम
एक विज्ञापनी मुद्रा से बढ़कर
और कुछ भी नहीं
अखबार को बाजार दिलाती है प्रेम
लेकिन प्रेम को थोड़ी भी जगह
नहीं देता अखबार
प्रेम यदि आ भी जाए
समाचार डेस्क तक
तो संपादक से
बिना बलत्कृत हुए नहीं छपता है
आश्चर्य कि
अखबार भी तभी बिकता है...!
संपर्कः 21, एम.आई.जी., हनुमान नगर, पटना-20
मोबाइल- 09234942661.