रात
पिरहाना मछलियों-सी कुतरती रही तुम्हारी यादें
और दिन भर बदनाम कुर्सियों को सुनाता रहा मैं मुक्ति-गीत
एक गिटार ने मुझे जीने का गुर सिखाया
एक आत्मा जो दूर है मुझसे
उसे बार-बार आमंत्रित करती रही
मेरी लहूलुहान कविताएं
उदास दिनों में एक बेहतरीन सपने सौपना चाहता हूँ उस स्त्री को
जिसे पृथ्वी पर मेरे होने का अंतिम सबूत मान लिया जाएगा !
यह मेरी एक कूटनीतिक विजय होगी
कि हमदोनों ऊँची चहारदीवारी लांघ सकेंगे अब
कि शिकारी कुत्तों को खदेड़ देंगे हमारे सपने
कि यातनाएं झेलनेवाला ही होगा
प्रेम करने में सबसे अव्वल !
- अरविन्द श्रीवास्तव, मधेपुरा, Mob.- 9431080862.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें