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सोमवार

सुखमय प्रस्थान

आज कवि मित्र राजकिशोर राजन के जन्मदिन पर उनकी एक कविता.. जो मुझे बेहद पसंद है..

अभी कुछ देर पहले 
गली के एक मकान से
श्मशान-घाट के लिए निकला है
एक वृद्ध का शव

कुछ दिन पहले ही
वे पिला रहे थे डांट
सब्जीवाली को, बेडोल तराजू रखने के लिए

कुछ दिन पहले ही
वे पैदल गये थे बाजार
अपनी बड़ी पतोहू के लिए खरीदने
आंवले का अचार
कुछ दिन पहले ही
अपने मकान के गेट को, नये ढंग से
कराया था निर्माण
जो उनके मकान को बना रहा था भव्य

कुछ दिन पहले ही
अपने किराएदार को
समाय पर किराया नहीं देने के बदले 
किया था निकाल बाहर

गली के लोगों की राय थी
अच्छा हुआ हँसते-खेलते, चलते-फिरते
खाते-पीते चले गए
इनदिनों इससे अच्छा
और क्या हो सकता है
सुखमय प्रस्थान !

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