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रविवार

कविता कभी मरेगी नहीं, अपनी भूमिका खुद तय करेगी- अरुण कमल



’अफसोस के लिए कुछ शब्द’ का लोकार्पण समारोह



प्रगतिशील लेखक संध, पटना इकाई द्वारा आयोजित लोकार्पण सह कवि-सम्मेलन समारोह में बहुचर्चित कवि अरुण कमल ने कहा कि पुस्तक के लेखक अरविन्द श्रीवास्तव ने इस समय हो रहे हर बुरे कार्यों की आलोचना की है । अरविन्द ने कई नए तथा अछूते विषयों पर कविताएँ लिखी हैं। इनकी कविताएँ अद्भुत, अनुठी तथा मार्मिक होती है। अरुण कमल ने आगे कहा कि अरविन्द श्रीवास्तव छोटी तथा मामूली चीजों पर लिखते हुए इन चीजों को महत्वपूर्ण बना देते हैं। संग्रह की कविता जातिवादी और साम्प्रदायिक हिंसा का जोरदार मुखालफत करती है। बाजार आज हमारे जीवन को खोखला बनाता जा रहा है । इसका विरोध भी अरविन्द श्रीवास्तव ने अपनी कविताओं मे जरिये किया है। कवि शहंशाह आलम ने कहा कि संग्रह की कविताएं हमारे जटिल और कुटिल समय का बयान है। ये कविताएं ऐसे वक्तव्य की तरह है, जो सीधे अंदर तक जाकर वार करती है।
अध्यक्षीय भाषण में डा. व्रजकुमार पाण्डेय ने कहा कि हम जो लिखते हैं राजनीति और सामाजिक विज्ञान पर  तो गद्य में लिखते हैं। कवि ने अपने विचार को कविता के जरिये ढाला है। जीवन में आ रहे बदलावों पर अरविन्द की कविताएं सार्थक बयान करती है। बिहार विधान परिषद् के सदस्य वासुदेव सिंह ने अपने विचारों को रखते हुए कहा कि ‘अफसोस के लिए कुछ शब्द’ की कविताएं हमारे जीवन की कविताएं हैं। राजेन्द्र राजन ने कहा कि अरविन्द श्रीवास्तव की कविताएं जिस तरह से हस्तक्षेप करती है, काबिले तारीफ है।इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन में कवि अरुण शीतांश, अरविन्द ठाकुर, राजकिशोर राजन, रामलोचन सिंह, मुसाफिर बैठा सहित अन्य कवियों ने कविता पाठ किया। प्रस्तुत हैं पुस्तक में प्रकाशित एक कविता के अंश
          
हमे सभी के लिए बनना था और
शामिल होना था सभी में

हमें बातें करनी थीं पत्तियों से
और तितलियों के लिए इकट्ठा करना था
ढेर सारा पराग

हमें रहना था अनार में दाने की तरह
मेंहदी में रंग
और गन्ने में रस बनकर

हमें यादों में बसना था लोगों के
मटरगश्ती भरे दिनों सा
और दौड.ना था लहू बनकर
सबों की नब्ज में

लेकिन अफसोस कि हम ऐसा
कुछ नहीं कर पाये
जैसा करना था हमें ।
              
                     - तस्वीर सह समाचार- ’प्रभात खबर’ पटना २ नव. ०९

2 टिप्‍पणियां:

शरद कोकास ने कहा…

"अफसोस के लिये कुछ शब्द ".. इस कविता संग्रह के लिये भाई अरविन्द श्रीवास्तव को और आयोजन के लिये आपको बहुत बहुत बधाई । यह कविता भी बहुत अच्छी लगी । अरुण कमल जी ने ठीक ही कहा है । अब इस कठिन समय में नई स्थितियों और नये बनते जा रहे समीकरणों के फलस्वरूप नये विषय बनते जा रहे हैं , जो अबसे पहले नहीं थे । उन सभी पर लिखा जाना चाहिये ।
--शरद कोकास
http://sharadkokas.blogspot.com
http://kavikokas.blgspot.com

प्रदीप जिलवाने ने कहा…

भाई अरविंद श्रीवास्‍तव को उनके संग्रह के लिए बधाई. प्रस्‍तुत कवितांश शेष कविताओ के प्रति भी उम्‍मीद जगाता है.

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