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गुरुवार

अदब की अग्नि आभा है हिन्दी की अनन्य रचनाकार नासिरा शर्मा




नासिरा शर्मा का साहित्य जहाँ इलाहाबाद से ईरान तक फैला है, वहीं इनकी शख्सि़यत का दायरा भी अगम अपार है। पटना से प्रकाशित ‘राष्ट्रीय प्रसंग’ के ताजा अंक का विशिष्ट आकर्षण है समकालीन कथा साहित्य के चर्चित हस्ताक्षर नासिरा शर्मा। वह एक साथ -‘मरजीना का देश -इराक’ से लेकर ‘झाँसी का वह बूढ़ा किला और वेतवा का वह हरियाला जोवन’ के किस्से बुन और सुना सकती है। नासिरा की जन्मजात विद्रोही अन्तर्व्यक्तित्व से लबरेज है उनकी कथा शैली। ‘राष्ट्रीय प्रसंग’ का यह अंक हिन्दी में विश्वभाव की लेखिका नासिरा शर्मा के सम्बन्ध में भरपूर सामग्रियों से भरा है।
इसके अतिरिक्त चर्चित कवि सुधीर सक्सेना की चार कविताएँ ‘हरित बांस की बाँसुरी इन्द्रधनुष दुति होति’ को स्मरण करा देती है। प्रस्तुत है उनकी ’नियति’ कविता-

मैंने तुम्हें चाहा
तुम धरती हो गयी
तुमने मुझे चाहा 
मैं आकाश हो गया
और फिर 
हम कभी नहीं मिले , 
वसुंधरा!

‘राष्ट्रीय प्रसंग’
संपादकः 
विकास कुमार झा, पटना.
मोबाइल- 09835209149,  09891243926.

रविवार

आज ‘हिन्दुस्तान’ दैनिक (रविवार रीमिक्स) में प्रकाशित अपनी तीन कविताएँ ब्लॉगर मित्रों के लिएः-




विरासत

अर्सा गुजर गया
जमींदोज हो गये जमींदार साहब

बहरहाल सब्जी बेच रही है 
साहब की एक माशूका

उसके हिस्से 
स्मृतियों को छोड. 
कोई दूसरा दस्तावेज नहीं है

                                                फिलवक्त, साहबजादों की निगाहें
                                               उनके दांतों पर टिकी है
                                               जिनके एक दांत में
                                               सोना मढ़ा है।

                             -अरविन्द श्रीवास्तव, मधेपुरा 

गुरुवार

सआदत हसन मंटो की लघुकथाएं


कम्युनिज्म

वह अपने घर का तमाम जरूरी सामान एक ट्रक में लदवाकर दूसरे शहर जा रहा था कि रास्ते में लोगों ने उसे रोक लिया । एक ने ट्रक के सामान पर नजर डालते हुए कहा, ‘‘देखो यार, किस मजे से इतना माल अकेला उड़ाये चला जा रहा है।’’
समान के मालिक ने कहा, ‘‘जनाब माल मेरा है।’’
दो तीन आदमी हंसे, ‘‘हम सब जानते हैं।’’

एक आदमी चिल्लाया, ‘‘लूट लो! यह अमीर आदमी है, ट्रक लेकर चोरियां करता है।’’ 


पेशकश

पहली धटना नाके के होटल के पास हुयी फौरन ही वहां एक सिपाही का पहरा लगा दिया गया। दूसरी घटना दूसरे ही रोज शाम को स्टोर के सामने हुयी, सिपाही को पहली जगह से हटाकर दूसरी घटना की जगह भेज दिया गया। तीसरा केस रात बारह बजे लांडरी के पास हुआ, जब इंस्पेकटर ने सिपाही को इस नयी जगह पर पहरा देने का हुक्म दिया तो उसने कुछ देर सोचने के बाद कहा, ‘‘मुझे वहां खड़ा कीजिये जहां नयी घटना होने वाली है!’’ 
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