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शुक्रवार

सृजन पथ का नया अंक-



सृजन पथ-7 (कविता अंक) नयी साज-सज्जा व आकर्षक कलेवर में उपलब्ध है। डा.परमानन्द श्रीवास्तव, नरेन्द्र पुण्डरीक एवं योगेन्द्र कृष्णा ने अपने विचारों में आधुनिक हिन्दी कविता की गतिविधियों का गहन परिवेक्षण किया है। आज की कविता को समाज के साथ तादात्म स्थापित करने में कोई कठिनाई नहीं होती। उनकी प्रतिभा युग निर्माणकारी तत्वों को सँजो कर युग जीवन के सत्यों को उदघाटित करने में अपने आपको कृतकार्य समझती है। चंद कथित घोषणाओं के बावजूद कविता का भविष्य उज्ज्वल है। कवि केवल अपने स्वधर्मी लोगों के लिये नहीं लिखता- बल्कि सम्पूर्ण मानव जाति के लिये लिखता है और अपनी रचना को सबके लिये प्रेषणीय बनाने का उत्साह लेकर आगे बढ़ता है। कवि स्वंय अपने रचनाशील व्यक्तित्व की गरिमा और दायित्व को पहचानता है, आज सच्चे अर्थों में कवि हीं जनमानस का प्रतिनिधित्व करता है।
अनामिका, कमलेश्वर साहू, नीलोत्पल, मोहन कुमार डहेरिया, सुरेश उजाला, उत्तिमा केशरी, रमेश प्रजापति, कंचन शर्मा की कविताएँ बेहतरीन बन पड़ी है।
मैत्रेयी पुष्पा के विषय में रंजना श्रीवास्तव एवं मधुलिका के आलेख एवं रचना जी का संपादकीय बड़ा प्रभावोत्पादक है। ऎसे सुन्दर अंक के लिये धन्यवाद।
सृजन पथ-7 (कविता अंक) सं.- रंजना श्रीवास्तव, श्रीपल्ली, लेन न.-२, पी.ओ. सिलीगुड़ी बाजार(प- बं.) पिन- 734 005, मोबाइल-09933946886. e.mail-ranjananishant@yahoo.co.in

बुधवार

तानाशाह

सुनता है तानाशाह
टैंकों की गरगराहट में
संगीत की धुन
फेफड़े को तरोताजा कर जाती है
बारुदी धुएँ
उन्हें नींद लाती है
धमाकों की आवाज

तानाशाह खाता है
गाता है
और मुस्कुराता है

तानाशाह जब मुस्कुराता है
लोग जुट जाते है
मानचित्रों पर
किसी तिब्बत की तलाश में !


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अरविन्द श्रीवास्तव , मधेपुरा
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