रश्मिरेखा की अधिकांश कविताएं स्त्री सुलभ गहरे विषाद के साथ अपनी सीधी-सादी बनावट में दूर तक असर करती है। यानी अक्षर कम अर्थ अधिक। ‘अरथ अधिक आखर अतिथोरे’। अँधेरे में रोशनी की सेंध लगाने वाली इस कवयित्री की प्रगतिगामी उम्मीद से भरी कविताओं में युगबोध को उकेरने की अद्भुत क्षमता है। देश की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं यथा - पहल, आलोचना, हंस, नया ज्ञानोदय, वागर्थ, इंडिया टुडे, पाखी, समकालीन भारतीय साहित्य आदि में प्रकाशित इनकी रचनाएँ समकालीन साहित्य-जगत में जोरदार उपस्थिति दर्ज करा चुकी है। प्रकाशन संस्थान से प्रकाशित इनका काव्य-संग्रह ‘सीढि़यों का दुख’ महत्वपूर्ण कृति है। इनकी दो कविताएँ ‘जनशब्द’ पर सहर्ष प्रस्तुत है-
राग-बीज
तुम्हारे नेह की रोशनाई ने
भर दिए मेरी कलम के अशेष शब्द
जिसे तुम्हीं ने दिया था कभी
बनाये रखने को वजूद
तुम्हारे नाम का एक-एक अक्षर
बोने लगा राग-बीज
बदलने लगे जीने का अर्थ
समय पर अंकित हो गया इंतज़ार
अच्छी लगने लगीं
किताबों की बातें
बेमतलब की बातें
दुनिया जहान की बातें
आत्मा में गहरे उतर आया
मेरे नाम में निहित तुम्हारा नाम
सीढि़याँ
सीढि़यों पर चढ़ते हुए
हमने कब जाना
सीढि़याँ सिर्फ चढ़ने के लिए नहीं
उतरने के लिए भी होती है
इतनी जद्दोजहद के बाद
चढ़ सके जितनी
हर बार उससे कहीं ज़्यादा उतरनी पड़ी सीढि़याँ
बचपन की यादों में
शामिल है साँप-सीढ़ी का खेल
फ़ासले तय करेंगे हौसले एक दिन
बस इसी इंतजार में
बिछी रहती है सीढि़याँ
पाँवों के नीचे सख़्त जमीन की तरह
....
संपर्कः निराला निकेतन के पीछे, झुनी साह लेन,
रामबाग रोड, मुजफ्फरपुर-842001. बिहार
मोबाइल- 09430051824
रश्मिरेखा की अन्य कविताएँ यहाँ भी
तुम्हारे नेह की रोशनाई ने
भर दिए मेरी कलम के अशेष शब्द
जिसे तुम्हीं ने दिया था कभी
बनाये रखने को वजूद
तुम्हारे नाम का एक-एक अक्षर
बोने लगा राग-बीज
बदलने लगे जीने का अर्थ
समय पर अंकित हो गया इंतज़ार
अच्छी लगने लगीं
किताबों की बातें
बेमतलब की बातें
दुनिया जहान की बातें
आत्मा में गहरे उतर आया
मेरे नाम में निहित तुम्हारा नाम
सीढि़याँ
सीढि़यों पर चढ़ते हुए
हमने कब जाना
सीढि़याँ सिर्फ चढ़ने के लिए नहीं
उतरने के लिए भी होती है
इतनी जद्दोजहद के बाद
चढ़ सके जितनी
हर बार उससे कहीं ज़्यादा उतरनी पड़ी सीढि़याँ
बचपन की यादों में
शामिल है साँप-सीढ़ी का खेल
फ़ासले तय करेंगे हौसले एक दिन
बस इसी इंतजार में
बिछी रहती है सीढि़याँ
पाँवों के नीचे सख़्त जमीन की तरह
....
संपर्कः निराला निकेतन के पीछे, झुनी साह लेन,
रामबाग रोड, मुजफ्फरपुर-842001. बिहार
मोबाइल- 09430051824
रश्मिरेखा की अन्य कविताएँ यहाँ भी
2 टिप्पणियां:
सीढि़याँबचपन की यादों में शामिल है साँप-सीढ़ी का खेलफ़ासले तय करेंगे हौसले एक दिनबस
बहुत सुंदर प्रेममयी , सारगर्भित , शब्दों का चयन बहुत सटीक , आभार
रश्मिरेखा की कविताएं ‘राग-बीज’ और ‘सीढ़ियां’ सुबह-सुबह ( 06 जून ) पढ़ीं। गहन काव्यानुभूति, किंतु अभिव्यक्ति प्रतिध्वन्य! विशेष यह कि रचनाकार के अनुभव तमाम प्रचलित-परिचित शब्दों को भी अपने नये रंग में ढालकर भिन्न अर्थ-सत्ता के साथ प्रस्तुत करते दिख रहे हैं। सचमुच प्रभावशाली रचनाएं! रचनाकार व प्रस्तुति के लिए ‘जनशब्द’ को बधाई... काव्यांश ....
बदलने लगे जीने का अर्थ
समय पर अंकित हो गया इंतज़ार...
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फ़ासले तय करेंगे हौसले एक दिन
बस इसी इंतजार में
बिछी रहती है सीढि़याँ
पाँवों के नीचे सख़्त जमीन की तरह...
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