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रविवार

आज ‘हिन्दुस्तान’ दैनिक में प्रकाशित कविता की कुछ पंक्तियाँ ब्लोगर मित्रों को सप्रेम....







आज 20 दिसम्बर’09 को हिन्दुस्तान दैनिक (रीमिक्स) पटना, मुजफ्फरपुर एवं भागलपुर संस्करण  में प्रकाशित अपनी कविता ‘अफसोस के लिए कुछ शब्द’ की कुछ पंक्तियाँ ब्लोगर मित्रों को सादर भेंट कर रहा हूँ.... प्रतिक्रिया अपेक्षित ।

...... हमें बातें करनी थी पत्तियों से 
और इकट्ठा करना था तितलियों के लिए
ढेर सारा पराग
..... ........
हमें रहना था अनार में दाने की तरह 
मेंहदी में रंग 
और गन्ने में रस बनकर


हमें यादों में बसना था लोगों के
मटरगश्ती भरे दिनों सा
और दौड़ना था लहू बनकर
  सबों की नब्ज में


अफसोस कि हम ऐसा
कुछ नहीं कर पाये...


जैसा करना था हमें..।

 -अरविन्द श्रीवास्तव,अशेष मार्ग, मधेपुरा,मो-०९४३१० ८०८६२.

‘जनपथ’ ने जारी किए पाब्लो नेरूदा, लैंग्स्टन ह्यूज, सनन्त तांती और के. सच्चिदानंदन की अनुवादित कविताओं के चार अंक




समय चेतना की मासिक पत्रिका ‘जनपथ’ ने अपने चार अंक- अगस्त से नवम्बर 09 के लिए समकालीन कविता जगत से विश्व प्रसिद्ध हस्तियों यथा पाब्लो नेरूदा की - जब मैं जडों के बीच रहता हूँ, लैंग्स्टन ह्यूज की- आँखें दुनिया की तरफ देखती हैं, सनन्त तांती की - नींद में भी कभी बारिश होती है और के.सच्चिदानंदन की- कविता का गिरना शीर्षक से अनुदित कविताओं के अंक जारी किये हैं। इन अनुदित कविताओं में समकालीन प्रखर भावधारा का जीवंत स्वरूप दृष्टिगोचर होता है। ये अंक पठनीय मननीय एवं संग्रहनीय हैं। संपादक: अनन्त कुमार सिंह,सेन्ट्रल को-आपरेटिव बैंक, मंगल पाण्डेय पथ, भोजपुर, आरा-८०२३०१ e.mail: janpathpatrika@gmail.com  मो.- 09431847568.
‘जब मैं जड़ों के बीच रहता हूँ’ पाब्लो नेरूदा की कविताएँ-

-पाब्लो नेरूदा सही माने में एक अंतर्राष्ट्रीय कवि थे। उन्होंने अपने देश और समाज के आम आदमी और उसके संघर्षों से जिस तरह से अपने को जोडा और जिस तरह से उसकी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी, उसी ने उसे दुनिया भर की मुक्तिकामी जनता की प्रेरणा का स्रोत बना दिया। उनका जन्म 1904 में चीली में हुआ था। एक कवि कके रूप में उनके महत्व को हम इस बात से भी समझ सकते हैं कि 1964 में जब सात्र्र को नोबल पुरस्कार देने की घोषणा हुई तो उन्होंने उसे ठुकरा दिया और इसके लिए जो कारण बताए, उसमें से एक यह था कि यह नेरूदा को मिलना चाहिए था। बाद में नेरूदा को 1971 में यह पुरस्कार मिला। वे दो बार भारत आये थे। प्रसिद्ध आलोचका डाॅ. नामवर सिंह ने नेरूदा को सच्चा लोकहृदय कवि कहा है और लिखा है कि उन्होंने ‘ कविता को सही मायनो में लोकहृदय और लोककंठ में प्रतिष्ठित किया’। 1973 में नेरूदा का निधन हो गया। प्रस्तुत है उनकी ‘और कुछ नहीं’ कविता-
मैंने सच के साथ यह करार किया था
कि दुनिया में फिर भर दूँगा रौशनी

मैं दूसरों की तरह बनना चाहता था
ऐसा कभी नहीं हुआ था कि संघर्षों में मैं नहीं रहा

और अब मैं वहाँ हूँ जहाँ चाहता था
अपनी खोई निर्जनता के बीच
इस पथरीले आगोश में मुझे नींद नहीं आती

मेरी नीरवता के बीच धुसता चला आता है समुद्र

- अनुवाद: राम कृष्ण पाण्डेय

'आँखें दुनिया की तरफ देखती है' - लैंग्स्टन ह्यूज 

लैग्स्टन ह्यूज का अश्वेत अमरीकी कवियों में महत्वपूर्ण स्थान है। वे कथाकार और नाटककार भी थे। अपनी रचनाओं में उन्होंने अमरीका की अश्वेत जनता के दुःखों, संघर्षों और उनकी आशाओं-आकांक्षाओं को आवाज दी और उसके जीवन की सच्ची तस्वीर पेश की। उनकी कविताओं का मुख्य विषय मेहनतकश आदमी रहा है, उनकी कविताओं में अमरीका की सारी शोषित-पीडि.त और श्रमजीवी जनता की कथा-व्यथा का अनुभव किया जा सकता है। प्रस्तुत है उनकी ‘दमन’ शीर्षक कविता-

अब सपने उपलब्ध नहीं हैं
स्वप्नदर्शियों के लिए
न ही गीत गायकों को
कहीं-कहीं अंधेरी रात
और ठंडे लोहे का ही शासन है
पर सपनों की वापसी होगी
और गीतों की भी
तोड. दो
इनके कैदखानों को

- अनुवादः राम कृष्ण पाण्डेय

’नींद में भी कभी बारिश होती है

सनन्त तांती का जन्म 4 नव.,1952 को कालीनगर, असम के एक निर्धण चाय श्रमिक परिवार में हुआ, इन्होंने शिलांग में पढ.ाई की । मूलरूप से उडि.या कवि फिर बंगला माध्ययम से शिक्षा प्राप्त की फिर असमिया भाषा में कविताई कर असमिया के लोकप्रिय कवि का सम्मान प्राप्त किया उनकी ‘वह’ शीर्षक कविता-

वह अब मेरे सीने में सोया रहता है चैबीस
घंटों मुझ पर शासन करता है। मेरे श्रम की फसल
बाँटता है।  मेरी रक्तनली से स्नायुतंत्र तक
उसका अबाध विचरण। मेरे फेफडे. के बीच-बीच में
शून्य में उछाल वह मग्न होता है खेल में। मेरा
हृदय कुरेद कुरेदकर वह एक यंत्रणा की नदी को
तरफ मुझे खदेड.कर ले जाता है।

निरंतर मेरा लहू चूस रहा वह मेरे भीतर का
प्रेम बाहर का करुण आवरण।
अनुवादः दिनकर कुमार
कविता का गिरनाः

मलयालम में यात्रा कविता लिखे जाने की परमपरा रही है।  पणिक्कर के बाद के. सच्चिदानंदन ने काफी संख्या में यात्रा कविताएँ लिखी है।  इनके दो संकलन ‘पल कोलम, पल कालम’(कई दुनिया, कई समयद्ध और ‘मुनू यात्रा’(तीन यात्राएँ) प्रकाशित हैं। ‘कवियों की भाषा’ शीर्षक कविता की बानगी देखें-

दुनिया भर में
कवियों की एक ही भाषा है
पत्ते तोते व
छिपकिलियों-सा
वे एक ही घोड़े पर सवार हैं
एक ही सपने की रोटी को बाँट रहे हैं
एक ही चषक से खट्टा पी रहे हैं
खुद की जनता को प्यार करने के कारण वह
सभी जनता से प्यार करते हैं
खुद की जमीन में जड़ें गाड.कर
सभी आकाश में पुष्पित हो रहे हैं

एक ही वेद में न टिकने के कारण
सभी का सच जानते हैं
अनुवाद-संतोष अलेक्स

मंगलवार

मैथिली कथा गोष्ठी ‘सगर राति दीप जरय’ का 68 वाँ आयोजन




 मैथिली की त्रैमासिक कथा गोष्ठी ‘सगर राति दीप जरय’ का 68 वाँ आयोजन ‘कथा विप्लव-2’ के नाम से 5 दिसम्बर 09 को सुपौल के व्यपार संध में होगा । इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्तर के मैथिली कथाकार अपनी-अपनी कहानियों का पाठ करेंगे एवं विद्वान समीक्षकों द्वारा इनकी कहानियों पर चर्चा-परिचर्चा की जायेगी।
‘विप्लव फाउण्डेशन’ एवं प्रलेस सुपौल के संयुक्त बैनर तले आयोजित यह कथा गोष्ठी रात भर चलेगी। ज्ञातव्य है कि प्रत्येक तीन माह पर आयोजित होने वाली यह गोष्ठी 1990 से प्रारम्भ हो कर पिछले 19 वर्षों से अनवरत आयोजित हो रही है और इस प्रकार यह आयोजन भारतीय भाषा साहित्य में एक इतिहास रच रही है। इस आयोजन में भारत एवं दूसरे देशों के रचनाकारों की भी सहभागिता होती है। 68 वें आयोजन के संयोजक - अरविन्द ठाकुर ने बताया कि सुपौल में इस कथा गोष्ठी का तीसरा आयोजन है इसमें सम्मलित होने वाले संभावित कथाकारों में - साहित्य अकादमी से पुरस्कृत  विभूति आनन्द एवं प्रदीप बिहारी, सहित रामानंद झा रमण , अजित कुमार आजाद, अरविन्द अक्कु राजाराम राठौर, रामाकान्त राय ‘रमा’ एवं परमानन्द प्रभाकर आदि होंगे, इस अवसर पर पुस्तक-पत्रिकाओं की प्रदर्शनी एवं लाकार्पण का भी आयोजन है। कार्यक्रम संयोजक- अरविन्द ठाकुर, सुपौल, मोबाइल- 09431091548
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