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शुक्रवार

साहित्य से क्यों ओझल होता जा रहा ग्राम्यांचल? साहिती सारिका का ताजा अंक




साहिती सारिका का ताजा अंक (जुलाई-दिसम्बर)

यह इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि गीतकार मार्कण्डेय प्रवासी और नवगीतकार सत्यनारायण के कविता और आलोचना पर बेवाक विचार पाठकों को सोचने पर विवश कर देते हैं । सत्यनारायण ने आलोचना के दायित्वों को रेखांकित करते हुए उनकी, कवि और पाठकों को लांछित करने की मानसिकता पर प्रहार किया है। उनके विचार  हैं कि आखिर आलोचक के राजतन्त्र में पाठक का लोकतन्त्र कोई मायने रखता है या नहीं ? अंक में कथाओं का चयन अच्छा है। कविताएं सधी हुई। कृष्ण मोहन मिश्र की ‘कालिदास की पर्यावरण दृष्टि’ एवं प्रफुल्ल कुमार ‘मौन’ के लोकदेवी देवताओं का संसार’ ज्ञानवर्द्धन से पूर्ण हैं। अनिरूद्ध सिन्हा ने गजल के सौन्दर्यात्मक यथार्थ के बहाने, दुष्यंत कुमार के बाद रूप-रस की परिधि से बाहर आये गजलकारों की बानगी पेश कर समकालीन यर्थाथ से रूबरू कराया है। प्रभावपूर्ण है अशोक आलोक की दो पंक्तियां-
किसी का जिस्म किसी का लिबास रखता है
अजीब शख्स है जीने की आस रखता है

अंक में प्रकाशित रामदरश मिश्र की डायरी, कुमार विमल के संस्मरण, से. रा. यात्री एवं संतोष दीक्षित की कहानी पठनीय एवं रोचकता से पूर्ण हैं।
साहिती सारिका, सम्पादकः अजय कुमार मिश्र, समकालीन जनमत परिसर, सिन्हा लाइब्रेरी रोड, पटना-1 मोबाइल- 09431012792.

रविवार

कविता कभी मरेगी नहीं, अपनी भूमिका खुद तय करेगी- अरुण कमल



’अफसोस के लिए कुछ शब्द’ का लोकार्पण समारोह



प्रगतिशील लेखक संध, पटना इकाई द्वारा आयोजित लोकार्पण सह कवि-सम्मेलन समारोह में बहुचर्चित कवि अरुण कमल ने कहा कि पुस्तक के लेखक अरविन्द श्रीवास्तव ने इस समय हो रहे हर बुरे कार्यों की आलोचना की है । अरविन्द ने कई नए तथा अछूते विषयों पर कविताएँ लिखी हैं। इनकी कविताएँ अद्भुत, अनुठी तथा मार्मिक होती है। अरुण कमल ने आगे कहा कि अरविन्द श्रीवास्तव छोटी तथा मामूली चीजों पर लिखते हुए इन चीजों को महत्वपूर्ण बना देते हैं। संग्रह की कविता जातिवादी और साम्प्रदायिक हिंसा का जोरदार मुखालफत करती है। बाजार आज हमारे जीवन को खोखला बनाता जा रहा है । इसका विरोध भी अरविन्द श्रीवास्तव ने अपनी कविताओं मे जरिये किया है। कवि शहंशाह आलम ने कहा कि संग्रह की कविताएं हमारे जटिल और कुटिल समय का बयान है। ये कविताएं ऐसे वक्तव्य की तरह है, जो सीधे अंदर तक जाकर वार करती है।
अध्यक्षीय भाषण में डा. व्रजकुमार पाण्डेय ने कहा कि हम जो लिखते हैं राजनीति और सामाजिक विज्ञान पर  तो गद्य में लिखते हैं। कवि ने अपने विचार को कविता के जरिये ढाला है। जीवन में आ रहे बदलावों पर अरविन्द की कविताएं सार्थक बयान करती है। बिहार विधान परिषद् के सदस्य वासुदेव सिंह ने अपने विचारों को रखते हुए कहा कि ‘अफसोस के लिए कुछ शब्द’ की कविताएं हमारे जीवन की कविताएं हैं। राजेन्द्र राजन ने कहा कि अरविन्द श्रीवास्तव की कविताएं जिस तरह से हस्तक्षेप करती है, काबिले तारीफ है।इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन में कवि अरुण शीतांश, अरविन्द ठाकुर, राजकिशोर राजन, रामलोचन सिंह, मुसाफिर बैठा सहित अन्य कवियों ने कविता पाठ किया। प्रस्तुत हैं पुस्तक में प्रकाशित एक कविता के अंश
          
हमे सभी के लिए बनना था और
शामिल होना था सभी में

हमें बातें करनी थीं पत्तियों से
और तितलियों के लिए इकट्ठा करना था
ढेर सारा पराग

हमें रहना था अनार में दाने की तरह
मेंहदी में रंग
और गन्ने में रस बनकर

हमें यादों में बसना था लोगों के
मटरगश्ती भरे दिनों सा
और दौड.ना था लहू बनकर
सबों की नब्ज में

लेकिन अफसोस कि हम ऐसा
कुछ नहीं कर पाये
जैसा करना था हमें ।
              
                     - तस्वीर सह समाचार- ’प्रभात खबर’ पटना २ नव. ०९
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