विश्वकवि गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर की एक सौ पचासवीं जयंती के अवसर पर अनेक आयोजन हुए हैं। भारत की सभी प्रमुख भाषाओं की पत्र-पत्रिकाओं में उनके जीवन और साहित्य से संबद्ध लेख आदि प्रकाशित हुए हैं। उनकी रचनाओं के अनुवाद तो उन्नीसवीं सदी क अंतिम दशक में ही प्रकाशित होने लगे थे। डॉ. देवेन्द्र कुमार देवेश की पुस्तक ‘गीतांजलि के हिन्दी अनुवाद’ को इसी परिप्रेक्ष्य में एक हिन्दी कवि-लेखक का अनोखा उपहार समझना चाहिए। इससे बेहतर विश्वकवि को दी गई कोई श्रद्धांजलि नहीं हो सकती। देवेश की यह किताब इसलिए भी खास तौर पर पठनीय है कि इससे अनेक भ्रमों को निवारण होता है। कम लोग जानते हैं कि पुरस्कृत ‘गीतांजलि’ की अंग्रेजी रचनाऍं गद्यात्मक हैं, पद्यात्मक नहीं। उनका प्रभाव भले काव्यात्मक हो। एक बड़ा भ्रम यह है कि बांग्ला ‘गीतांजलि’ के अनुवादक डब्ल्यू. बी. येट्स हैं। इस भ्रम को प्रचारित करने में कुछ पश्चिमी लेखकों की भी विवादास्पद भूमिका है। इस विडंबना से हिन्दी के लेखक भी नहीं बचे। मसलन गजानन माधव मुक्तिबोध ने अपनी प्रतिबंधित कृति ‘भारत : इतिहास और संस्कृति’ में लिखा है, ‘’आयरलैण्ड के विश्वविख्यात कवि डब्ल्यू. बी; येट्स ने उनकी (रवीन्द्रनाथ की) गीतांजलि का अंग्रेजी में अनुवाद किया।‘’ यही बात अमृतलाल नागर और त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी ने भी शब्द-भेद से कही। देवेश ने गहरी छानबीन के उपरांत स्पष्ट कर दिया है कि अंग्रेजी गीतांजलि विश्वकवि की स्व-रचित सामग्री है। उन्होंने शब्द गिनकर दिखाया है। मुश्किल से तीस-पैंतीस ऐसे शब्द हैं, जो येट्स के संशोधन के साक्ष्य देते हैं। येट्स के साथ ऐण्ड्रूज का नाम भी इस परिप्रेक्ष्य में लिया जाता है। लेकिन देवेश ने इस भ्रांति को भी निर्मूल सिद्ध किया है। प्रस्तुत शोधालोचना का मुख्य प्रतिपाद्य ‘गीतांजलि’ के हिन्दी अनुवादों से संबद्ध है। इसके लिए दो पूरे अध्याय हैं। पद्यात्मक और गद्यात्मक अनुवादों के विवेचन-विश्लेषण के लिए अलग-अलग अध्याय। भिन्न अनुवादकों की रचनाओं को आमने-सामने रखकर सतर्क और सटीक विवेचन प्रभावित करता है। ‘गीतांजलि’ का हिन्दी में पहले देवनागरी लिप्यंतरण हुआ, अगले वर्ष 1915 में काशीनाथ जी ने उसका गद्यानुवाद किया। हिन्दी से पहले डेनिश, स्वीडिश और रूसी में। देवेश ने अपने अध्ययन के लिए अनुवादों की चार कोटियॉं बनाई हैं : 1) देवनागरी लिप्यंतर, 2) गद्यानुवाद, 3) पद्यानुवाद, और 4) व्याख्यानुवाद। हिन्दी में पहला छंदोबद्ध पद्यानुवाद द्विवेदीयुग के गिरधर शर्मा ‘नवरत्न’ ने किया। इस प्रबंध-कार्य में देवेश ने कितना श्रम किया है, यह समझने के लिए इसके दो बड़े अध्याय ही पर्याप्त है—गद्यानुवाद और पद्यानुवाद के। स्रोत और लक्ष्य भाषाओं की प्रकृति को समझते हुए, हर पंक्ति का विशद विवेचन। बल्कि इसका परिशिष्ट भी अत्यंत उपयोगी है। ‘गीतांजलि’ के अनुवादकों का संक्षिप्त परिचय देकर उन्होंने अनुवाद-कर्म की गरिमा बढ़ाई है। उपलब्ध अनुवादों की मीमांसा में उनकी उपलब्धियों और सीमाओं का स्पष्ट उल्लेख हुआ है तो अगले अनुवादकों की चुनौतियॉं भी उजागर हुई हैं।
समीक्षित पुस्तक – गीतांजलि के हिन्दी अनुवाद, लेखक – देवेन्द्र कुमार देवेश प्रथम संस्करण – 2011, मूल्य – 295 रुपये, पृष्ठ – 220 (सजिल्द) प्रकाशक – विजया बुक्स, 1/10753, सुभाष पार्क, गली नं. 8, नवीन शाहदरा, दिल्ली, मोबाइल : 9910189445 (राजीव शर्मा)
(प्रख्यात आलोचक डॉ. रेवती रमण, मो. 09006885907, की विस्तृत समीक्षा ‘समकालीन भारतीय साहित्य’, मई-जून 2011 के अंक में प्रकाशित हुई है। यहॉं उसी का अंश प्रस्तुत किया गया है।)
1 टिप्पणी:
Sir font colour dark hota toh padhne mein aasani hoti.
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