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मंगलवार

शांति यादव की दो ग़ज़लें





हंडी में फिर पत्थर खदका
बच्चा थोड़ी देर को चहका। 
मां ने ली झूठी अंगड़ाई
मानो घर खुश्बू से महका।
सोये बच्चे सुबक-सुबक जब
ज़ख़्म पुराना धीरे टहका।
आंखों के तूफां से डरकर
आंचल चुप-चाप नीचे ढलका।
कहती है सरकार बेधड़क
यहाँ न कोई भूखा मरता।

झुलसी फसलें, खलिहानों में रेत लिखेंगे
लिखने वाले सोच रहे हैं खेत लिखेंगे।
नेता जनता के बूते की बात नहीं 
ठेठ हकीकत, संविधान अब सेठ लिखेंगे।
संरक्षण है वन्य प्राणियों को कानूनन
आदम की बस्ती में अब आखेट लिखेंगे।
मंडी में कागज के ऐसे भाव लगे हैं
छोड़ कहानी-कविता बस हम ‘रेट’ लिखेंगे।
आंखों में बस एक तिरंगा औ होंठों पर
जन-गण-मन कबतक खाली पेट लिखेंगे।

शांति यादव - 'चुप रहेंगे कब तलक’ एवं ‘उदास शहर में’ नाम से ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित।
सम्पर्क- इन्द्रधनुष, बायपास रोड, मधेपुरा, बिहार।
मोबाइल:- 09431091815.

5 टिप्‍पणियां:

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

samsamaik achchha prayas.
hardik badhai.

chandra mohan gupta

''अपनी माटी'' वेबपत्रिका सम्पादन मंडल ने कहा…

जन्शब्द पर जो छपता है कुछ न कुछ तरीके से ख़ास होता है. शान्ति जी आपको पढ़ा.मेरी रूचि ग़ज़ल में कम ही है मगर आपने जो लिखा वो मुझे पसंद आया.मैं भी आपकी इस रचना की जात का ही लिखना पसंद करता हूँ. क्योंकि जो लिखा कुछ अर्थों में आज भी सार्थक हो. जरुरी हों. तो ठीक लगता है.आपके संग्रह की और रचनाए यहाँ प्रकाशित हों तो पाठकों को एक विचार मिलेगा.कृपया जनशब्द वाले ये काम करेंगे ना?

सुनील गज्जाणी ने कहा…

aadarniya arvind bhai saab pranam !
sammniya shanti mem ! namaskar ! ek achchi rachana ke liye sadhuwad !
saadar !

बेनामी ने कहा…

nalfcfosyepsadoyxxdd, justin bieber baby, tfdxmau.

शरद कोकास ने कहा…

बढ़िया गज़ले हैं ।

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