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सोमवार

‘देशज’ के देश में....




'देशज' पत्रिका का यह अंक शाहाबाद प्रक्षेत्र पर केन्द्रित है। शाहाबाद के अन्तर्गत चार जिले हैं जिनमें भोजपुर (आरा) बक्सर , रोहतास और कैमूर आते हैं, इन चार जिलों के रचनाकार वर्तमान समय में राष्ट्रीय फलक पर बेहद सक्रिय हैं मसलन् अरुण कमल, बद्रीनारायण, निलय उपाध्याय, विमल कुमार, कुमार मुकुल, हरे प्रकाश उपाध्याय, सुधीर सुमन, राम निहाल गुंजन, जनार्दन मिश्र, प्रेम किरण आदि कई नाम हैं जो ‘देशज’ के इस अंक में अपनी उपस्थिति दर्ज करा कर अंक की महत्ता सार्थक कर रहे हैं। अंक में प्रकाशित तमाम कविताएँ समय के खुरदरे चहरे को उजागर करती है, प्रेम और प्रतिरोध का समवेत स्वर प्रकाशित कविताओं में दिख रहा है। कोमल व कठोर अनुभूतियों का यह शाहाबादी एलबम काव्य परिदृश्य में नवीनता का अहसास कराता है। संवेदनाओं और वैचारिकता के द्वंद से बुनी गयी गायत्री सहाय, डा. आर. के. दूबे, मीरा श्रीवास्तव, संतोष श्रेयांस, जगतनन्दन सहाय, ओमप्रकाश मिश्र आदि की कविताएँ भी देशज को महत्वपूर्ण दस्तावेज की शक्ल देता है। संपादक अरुण शीतांश ‘अपनी धार’ के माध्यम से ‘देशज’ का प्रेम पाठकों में बांटते हैं हौसले और एक नए उम्मीद के साथ । देखें, अंक में प्रकाशित कविताओं की कुछ बानगी-
इस बाजार में 
मेरे पिता का खून 
और पसीना मिला हुआ है
मैं इस मकान को बेच नहीं सकता
क्योंकि मैं यह देख नहीं सकता 
इस बाजार में 
कोई खरीद ले
मेरे पिता का पसीना
और खून भी!
इस बाजार में / विमल कुमार

पहाड़ों के पीछे से 
आई बाध की हुंकार ऽ ऽ ऽ 
मैं काँप गया
डर मत
कहा रामदाना बेचने वाले बूढ़े ने
पहाड़ों के पीछे बाघ-बाघिन कर रहे हैं प्यार ।
मेरा डर / बद्री नारायण

देशज
संपादक: अरुण शीतांश
मणि भवन, संकट मोचन नगर,
आरा-802301. बिहार
मोबाइल - 09431685589.

1 टिप्पणी:

सुनील गज्जाणी ने कहा…

अरुण जी ,
प्रणाम !
देशज के अंक के लिए आप को बधाई उम्दा रचनाकारों से अंक शानदार सज रहा है , बधाई , साधुवाद

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