अंगूठे
बताओ, कहाँ मारना है ठप्पा
कहाँ लगाने हैं निशान
तुम्हारे सफेद - धवल कागज पर
हम उगेंगे बिल्कुल अंडाकार
या कोई अद्भुत कलाकृति बनकर
बगैर किसी कालिख, स्याही
और पैड के
अंगूठे गंदे हैं
मिट्टी में सने है
आग में पके हैं
पसीने की स्याही में।
- अरविन्द श्रीवास्तव
सिक्योरिटी के लिए खतरा भी हो सकती है स्मार्टवॉच, पहनने से पहले ये
सावधानियां बरतें
-
आप जहां भी जाते हैं, आपकी स्मार्टवॉच भी साथ जाती है और आपके फोन के साथ
जुड़ी होने की वजह से यह सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती है। तो क्या आपको
फिटबिट, एपल व...
4 टिप्पणियां:
Bhavpurn panktiyan. Swagat.
kafi achha likhha hai aapne
www.salaamzindadili.blogspot.com
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहिए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
www.zindagilive08.blogspot.com
आर्ट के लिए देखें
www.chitrasansar.blogspot.com
बताओ, कहाँ मारना है ठप्पा
कहाँ लगाने हैं निशान
तुम्हारे सफेद - धवल कागज पर
हम उगेंगे बिल्कुल अंडाकार
या कोई अद्भुत कलाकृति बनकर
बगैर किसी कालिख, स्याही
और पैड के
अंगूठे गंदे हैं
मिट्टी में सने है
आग में पके हैं
पसीने की स्याही में।
--कविता में जनता के दु:ख बड़े संजीदा ढंग से व्यक्त हुये हैं।
एक रंग यह भी
श्री राजेन्द्र राजन के उपन्यास “एक रंग यह भी” को कई बार पढ़ चुका हूँ। कई बार इसलिये पढ़ा क्योंकि, एक, यह सकर्मक जीवन की प्रेरणा देता है और दूसरे यह आजकल के सामान्य उपन्यासों से अलग और विशिष्ट है। श्री राजेन्द्र राजन तपे हुए मानवतावादी राष्ट्रीय विचारों के वामपंथी नेता और कार्यकर्त्ता हैं। येसे लोग साहित्य में ज्यादातर नहीं हैं। रजेन्द्र राजनजी को लेखक रूप में देखकर हमें राहुल सांकृत्यायन, यश्पाल और मन्मथनाथ गुप्त जैसे लेखकों की परंपरा की याद आ जाती है……। -विश्वनाथ त्रिपाठी
लेखक सम्पर्क:- रजेन्द्र राजन, सुचितायन, चाण्क्य नगर, बेगूसराय-851 120, मो-09430 885162
लोककथा रूपक
लोक कथायें ग्रामीण एवं सरल, स्वच्छ ह्रदय के अंदर की उपज होती है। ग्रामीण अंचलों में इसके कहने- सुनने का ढंग भी अलग-अलग और अनोखा होता है कहानी कह्ते-सुनते समय कथावाचक और श्रोताओं के मन मस्तिष्क में उसका दृश्य चलचित्र की भाँति चलता रहता है। लोक कलाओं के लिए एक अनिवार्य शर्त होती है, उसका अमुद्रित और अनालेखित होना, क्योंकि वे जनश्रुति के आधार पर ही आगे बढ़ा करती थी।– अनिल पतंग, सम्पर्क- नाट्य विधालय, बाघा, पो- एस नगर, बेग़ूसराय (बिहार)- 851 218
अंग लिपि का इतिहास
बौद्ध ग्रंथ “ ललित विस्तर “ में वर्णित चौसठ लिपियों में अंग लिपि का चौथा स्थान है। ब्राह्मी और खरोष्ठी के बाद अंग लिपि भारत की सर्वाधिक प्राचीन लिपि है। तत्कालीन सभी प्रचलित लिपियों में यह अधिक गतिशील रही है। इसने कई देशों की लिपियों को संवर्द्धित किया। इसमें श्रीलंका, पूर्व मध्य एशिया, तिब्बत, वर्मा, स्याम, जावा, मलय द्वीप, सुमत्रा, हिन्द चीन,कम्बोज आदि प्रमुख है। अंग लिपि को ही यह महान गौरव प्राप्त है कि उसके दुःसाहसिक नाविक, व्यापारी एवं राजवशियों ने उसे विभिन्न देशों की यात्रा ही नहीं करायी, बल्कि उसे कई देशों में स्थापित भी कर दिया। यह पुरा भारतीय इतिहास का गौरवोज्जवल पृष्ठ है। गुप्त लिपि, कुटिल लिपि, सिद्ध मातृका लिपि आदि को अंग लिपि की विकास यात्रा का पड़ाव कहना अधिक उपयुक्त है। कैथी लिपि में इनकी विकास यात्रा पूर्ण हो जाती है। लेखक – हरिशंकर श्रीवास्तव "शलभ", कला कुटीर, मधेपुरा, फोन – 06478 229674
पर 9:52 PM 1 टिप्पणियाँ
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रंग अभियान
अंक-13/14रंग अभियान लोककला के प्रति समर्पित नाट्य पत्रिका है। अबतक इसके चौदह अंक निकल चुके हैं, यह अंक सुप्रसिद्ध नाटककार डा सिद्धनाथ कुमार पर केन्द्रित है। संपादक- अनिल पतंग, बेगूसराय, मो- 09430416408
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डोमकछ
लोक नाटक “डोमकछ” बिहार में लगभग हर जगह करने की परंपरा थी, जो अब अपने उस स्थिति में नहीं है, कहीं-कहीं आज भी अवशेष के रूप में अंतिम सांस गिन रही है। इसकी मह्त्ता को भी स्वीकारने में लोगोंको कठिनाई होती है। डोम, जो समाज में सबसे नीचे के तपके में गिना जाता है, लेकिन जीवन का हर मत्वपूर्ण कार्य इनके बिना सभव नहीं है। धार्मिक और विभिन्न सस्कारों में इनकी उपादेयता और भी बढ़ जाती है। इस नाटक में वर्ण व्यवस्था का धज्जी उड़ाते हुए डोमिन को राजमहल में रानी के रूप में भी रहने की बात की जाती है। डा अनिल पतंग, मो- 09430416408
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दोआबा#links#links#links#links#links#links#links#links मेरे बारे में
अरविन्द श्रीवास्तव
इतिहास एवं राजनीति विज्ञान में स्नात्कोत्तर, पी-एच डी, सहित्यिक पत्रिकाओं में नियमित लेखन - वागर्थ, दोआबा, परिकथा, हंस, साक्ष्य आदि में कविताएं आलेख एवं रेखांकन प्रकाशित ।
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