‘इंसान को शब्द अपने विचारों को छिपाने के लिए नहीं दिये गये थे’ (जोसे सारामागे)। बिहार में शब्द सृजन एवं रचनात्मक साहित्यिक हस्तक्षेप की सुदीर्ध-सुदृढ़ परम्परा रही है। कभी गया, मुजफ्फरपुर, मुंगेर आदि जनपदों की साहित्यिक धमक राष्ट्रीय स्तर पर महसूस की जाती थी। बिहार के ये साहित्यिक ‘हब’ अपने साहित्य सृजन से साहित्य की राष्ट्रीय धारा को दिशा प्रदान करते थे। आज यह धुरी कमोवेश राजधानी पटना में आकर अटक गयी है। बावजूद इसके समकालीन लेखन की बोरसी आज आरा-भोजपुर में सुलगती है तो उसकी गर्माहट राष्ट्रीय स्तर पर महसूस की जाती है। बिहार में पश्चिम भोजपुर से लेकर सुदूर पूर्व में पूर्णिया तक लेखन-नवलेखन की सशक्त पीढ़ी अदम्य जिजीविषा के साथ पतझड़ के प्रतिरोध में खड़ी है। भोजपुर की धरती से जहाँ मित्र, जनपथ, देशज, रू और अभी-अभी सृजन लोक सदृश्य पत्रिकाएँ राष्ट्र की साहित्यिक क्षितिज पर अपनी जोरदार उपस्थिति के साथ डटी है, वहीं पूर्णिया अंचल से प्रकाशित - कला, मुहिम, संवदिया, परती-पलार, वर्तिका, हमसब, अर्य संदेश, लक्ष्य आदि पत्रिकाओं के साथ ‘साँवली’ का आगाज शुभ संकेत है, बिहार की समकालीन रचनात्मकता के लिए। 154 पृष्ठों की यह पत्रिका स्वस्थ साहित्यिक परंपराओं को कायम रखते हुए पूर्णिया अंचल को राष्ट्रीय-अन्तराष्ट्रीय लेखन से जोड़ने की कवायद है। ‘साँवली’ का ताजा अंक कहानी, आलेख , कविता सहित सामाजिक सांस्कृतिक हलचल, पुस्तक समीक्षा व नवांकुर स्तम्भ का स्तवक है। 12 प्रकाशित कहानियों में देवेन्द्र सिंह की कहानी ‘कामरेड’ समय के जटिल होते परिवेश की अभिव्यक्ति है। डा. सरला अग्रवाल की कहानी ‘अपराधों की राजनीति’ भी छद्म दुनिया के कटु अनुभवों को व्यक्त करती है। संवेदनात्मक रिश्तों की कहानी ‘ये जीने के रास्ते’ भी पठनीय है। कहानी की सरलता पाठकों को सरस अनुभूति दे जाती है। महत्त्वपूर्ण आलेखों में ‘पूर्णिया के हिन्दी साहित्य पर बंगला साहित्य का प्रभाव’ बंगला साहित्यकारों के पूर्णिया से ऐतिहासिक रिश्तों की बानगी प्रस्तुत करता है जो पाठको को विमर्श के लिए प्रेरित भी करता है। स्मरण है कि बंगला साहित्य के मूर्धन्य रचनाकार पूर्णिया शहर के निवासी सतीनाथ भादुड़ी हिन्दी के अमर कथाशिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु के कथा-गुरु थे। कविताओं की भीड़ में चेतन वर्मा, अनुज प्रभात, किरण झा ‘किरण’ देवेन्द्र सौरभ, डा.सुवंश ठाकुर अकेला, मलय और अरुणाभ सौरभ पठनीय हैं। पत्रिका संपादन में अरुण अभिषेक के जुड़ जाने से ‘साँवली’ के लिए और बेहतरी की उम्मीद की जा सकती है, बेशक! - डा. उत्तिमा केशरी,भट्ठा दुर्गा बाड़ी, पूर्णिया- 854301. बिहार. दूरभाष - 06454 244776.
साँवली
प्रधान संपादकः जवाहर किशोर प्रसाद
माधुरी प्रकाशन, रामबाग, शिवनगर
मिल्लिया कानवेंट से पूरब
पूर्णिया-854 301. मोबाइल - 9931465695.
1 टिप्पणी:
उम्दा शब्दों का इस्तेमाल किये हैं
बहुत बहुत धन्यवाद|
----------------------
एक मजेदार कविता के लिए यहाँ आयें |
www.akashsingh307.blogspot.com
एक टिप्पणी भेजें