- कवि शहंशाह आलम के साथ अरविन्द श्रीवास्तव. |
मित्रों, इधर तीन दिनों तक पटना प्रवास पर था। वरिष्ठ कवि अरुण कमल और शहंशाह आलम का सानिध्य मिला। अरुण दा ने भेंट की ढ़ेर सारी पत्रिकाएँ तो शहंशाह आलम ने सुनायी अपनी बिल्कुल ताजा कविताएं ! उनकी अप्रकाशित कविताएं ‘जनशब्द’ पर मित्रों के लिए-
औचक हुई उसकी हत्या
औचक हुई उसकी हत्या
भोजनावकाश का समय रहा होगा
जब वह देख रहा था
इधर रिलीज हुई फिल्मों के पोस्टर
क्या मालूम उस बेचारे को
कि हत्यारे को भी लगती थी भूख।
बहुत कुछ गुजरता है
मूंगफली बेचता वह अभी-अभी
शहर से समुद्र तक गया
जैसी गयी चिड़िया पृथ्वी से आकाश तक
ध्वनि से तेज बहुत कुछ गुजरता है
हमारी आपकी बगल से
इन घटनाओं से विस्मित यह समय
जैसे अचानक बारिश से बिस्मित-चकित
सारे ग्रह सारे नक्षत्र सारे यात्री
सूट-बूट पहने अद्भुत हत्यारा भी
गुजरा अभी-अभी इसी काल-अकाल से।
2 टिप्पणियां:
यर्थाथवादी यह रचना आहिस्ते से सच बयां कर जाती है, इस रचना को हम तक पहूंचाने के आपका आभार। और पटना प्रवास सुखद रहा जान कर खुशी हुई। इन महान कवियों का सानिध्य भी मिला यह अति प्रसन्नता की बात है।
अरविन्द जी !
आलम साब !
प्रणाम !
बेहद ही सुंदर है अभिव्यक्ति . बेहद गहरे भाव लिए .
साधुवाद ,
सादर !
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