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सोमवार

हिन्द-युग्म का नायाब तोहफा: सुशील कुमार का काव्य-संग्रह ‘तुम्हारे शब्दों से अलग’


सांस्कृतिक बंजरपन के विरूद्ध उम्मीद की कुछ कोमल-मुलायम पत्तियों के साथ सुशील कुमार का अद्यतन प्रकाशित कविता संग्रह ‘तुम्हारे शब्दों से अलग’ अभी-अभी ‘हिन्द युग्म’ (संपादक: शैलेश भारतवासी) द्वारा मिला। यह कवि और प्रकाशक का साहित्य के पक्ष में साझा भावनात्मक इंतसाब का प्रतीक है जो आत्मीयता व प्रेम से लबरेज़ बतौर संग्रह मूर्त्त हो उठा है। शोर-शराबे और भीड़तंत्र से अलग सुशील कुमार के शब्दों की अपनी दुनिया है जो भाषाओं की काली रात के विरूद्ध बगावती अंदाज में खड़ी है। कवि ने जीवन जगत के नये पहलुओं को नई दृष्टि से देखा है, परखा है और नये चित्रों, प्रतीकों और अलंकारों द्वारा उसे अभिव्यक्त किया है। इनकी कविताओं में विषयगत वैविध्य के साथ-साथ गहन सूक्ष्मता संजोए बिंव और चित्रों का भी बहुरंगी फलक है, कविता को सादगी युक्त एक नई भाषा देने के इनका आत्म विश्वास इनके साथ है। इनकी कविताओं का संसार हम सब का जाना पहचाना रोज व रोज का संसार है। कवि की भावधारा विशुद्ध जनोमुखी है। वरिष्ठ कवि अरुण कमल मानते हैं कि ‘उनकी कविताओं की कल्पना-शक्ति बिम्ब बहुलता एवं भावनात्मक आर्द्रता निश्चिय ही सहृदय पाठकों को अपनी ओर खींच लेगी। देखें कविताओं की एक बानगी- दुनिया में चाहे जितनी गहरी रात पसरी हो  / हमारे घरों में निरंतर आशा के दीप जलते रहते हैं  / साँसों के ढोल बजते रहते हैं / ठीक वहीं लौटना है हमें, अपने शांतिनिकेतन में । वहाँ अपने दुखों को फाँककर हम फकीर हो जाएँगे  / और अलमस्ती के गीत गाएँगे।
 इसमें तनिक भी संकोच नहीं होना चाहिए कि सुशील कुमार की कविताएं समय की आहट को पहचानती है। किसी भाषिक चमत्कार से बचते हुए सीधे-साफ लफ्जों में अपनी बात रखते हुए भी ये कविताएं काल के कुंद कपाल पर सूराख करने की कूबत रखती है।
तुम्हारे शब्दो से अलग / सुशील कुमार
1, जिया सराय, हौज खास, नई दिल्ली-16.
मोबाइल-09873734046 / 09968575908.

11 टिप्‍पणियां:

Ashok Kumar pandey ने कहा…

SHUSHIL BHAI KO BADHAI!

''अपनी माटी'' वेबपत्रिका सम्पादन मंडल ने कहा…

badhai ho

रंजना ने कहा…

वाह...बहुत बहुत बधाई सुशील जी को...

निःसंदेह बहुत ही उम्दा लेखन है उनका...

Pran Sharma ने कहा…

SUSHEEL KUMAR JI JAESE LOK KAVI KO
DHERON BADHAAEEYAN AUR SHUBH
KAMNAAYEN .

जयंत - समर शेष ने कहा…

सुशिल जी,

यह तो अति गर्व कि बात है, आपकी इस उपलब्धि पर मेरी और से हार्दिक बधाई.

इश्वर करें आप ऐसे ही लिखते रहें और हम पढते रहें.
बधाई, बधाई, बधाई!!!!

जयन्त

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

सुशील जी को हार्दिक बधाईयां।

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अंतरिक्ष में वैलेंटाइन डे।
अंधविश्‍वास:महिलाएं बदनाम क्‍यों हैं?

Shailesh Bharatwasi ने कहा…

सुशील कुमार हिन्दी के समर्थ कवि हैं। हिन्द-युग्म पर साथ ही साथ उनके ब्लॉग पर मैंने उनके कविता के कई रंग देखे। उनकी कविताओं की सजीवता हर सजग पाठक को स्पंदित करती है। मुझे उनके संग्रह को प्रकाशित करने में एक आत्मीय खुशी का एहसास हुआ। मुझे उम्मीद है कि यह संगह हिन्दी कविता-जगत में अपना विशेष स्थान बनायेगा।

अरविंद जी,

पुस्तक की चर्चा करने के लिए आपका धन्यवाद।

Unknown ने कहा…

जनशब्द का आभार, आपने सही लिखा - यह कवि और प्रकाशक का साहित्य के पक्ष में साझा भावनात्मक इंतसाब का प्रतीक है जो आत्मीयता व प्रेम से लबरेज़ बतौर संग्रह मूर्त्त हो उठा है। अत: कवि सुशील कुमार जी एवं ’हिन्द-युग्म’ को तहे दिल से शुक्रिया...। धन्यवाद!

प्रदीप कांत ने कहा…

SHUSHIL BHAI KO BADHAI

सुरेश यादव ने कहा…

सुशील कुमार के काव्य संग्रह 'तुम्हारे शब्दों से अलग 'का ह्रदय से स्वागत है .अपने समय की जिन्दा धडकनों को पूरी कलात्मकता के साथ शब्द- बद्ध करने की इस कुशलता को बधाई .सशक्त रचनाओं को सामने लेन के लिए हिन्दयुग्म को भी बधाई .

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

एक आत्‍मीय बधाई इस नाचीज व्‍यंग्‍यकार की भी। वैसे मेरे शब्‍दों से अलग ही हैं इनकी कविताएं।

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