हिन्दी के वरिष्ठ कवि उद्भ्रांत ने विभूति नारायण राय और रवीन्द्र कालिया प्रकरण के संदर्भ’ में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि इन दोनों व्यक्तियों की मानसिकता अपने लेखन और व्यवहार में प्रारम्भ से ही स्त्री विरोधी रही है और इन दोनों की मिलीभगत ने मौजूदा समय में एक ऐसा गर्हित उदाहरण प्रस्तुत कर दिया है जिसकी मिसाल सौ साल मे इतिहास में नहीं मिलेगी । और पहली बार ऐसा हुआ है कि समूचा हिन्दी समाज इनकी अश्लील जुगलबंदी के खिलाफ उठ खड़ा हुआ है। अगर ज्ञानपीठ के प्रबंधकों ने कालिया को तत्काल प्रभाव से वर्खास्त नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं जब ज्ञानपीठ को हिन्दी के एक भी सुरूचि सम्पन्न पाठक की कमी महसूस होगी । जहाँ तक विभूति नारायण की बात है उनका तो मूल चरित्र पुलिसिया मानसिकता वाला ही है, भले ही सरकारी दवाब में अपनी नौकरी बचाने के लिए उन्होंने माफी अभी मांगी हो लेकिन उनका जाना भी निश्चित है। यह भी विश्वास है कि भविष्य में कोई भी हीन मानसिकता से ग्रस्त रचनाकार या व्यक्ति इस तरह के अश्लील शब्द को सार्वजनिक मंच से प्रयोग करने से पहले हजार बार सोचेंगे । मैं विष्णु खरे के जनसत्ता में दो अंको में प्रकाशित लेख का शत प्रतिशत समर्थन करता हूँ अगर कालिया को ज्ञानपीठ से तुरत बाहर नहीं किया गया तो भारतीय ज्ञानपीठ जिसका गौरवशाली इतिहास है आनेवाले पीढियों की नजरों में एक पतनशील संस्था के रूप में पहचानी जायेगी।
- उद्भ्रांत
वरिष्ट कवि, दूरदर्शन के पूर्व उप महानिदेशक
मो- 09818854678.
1 टिप्पणी:
विल्कुल सही....आभार. !
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