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बुधवार

तानाशाह

सुनता है तानाशाह
टैंकों की गरगराहट में
संगीत की धुन
फेफड़े को तरोताजा कर जाती है
बारुदी धुएँ
उन्हें नींद लाती है
धमाकों की आवाज

तानाशाह खाता है
गाता है
और मुस्कुराता है

तानाशाह जब मुस्कुराता है
लोग जुट जाते है
मानचित्रों पर
किसी तिब्बत की तलाश में !


-
अरविन्द श्रीवास्तव , मधेपुरा

5 टिप्‍पणियां:

कुन्नू सिंह ने कहा…

क्या कर सकते हैं तानासाह के लिये

बढिया ढंग से लिखे हैं

कविता हो जैसे

Udan Tashtari ने कहा…

ये कहाँ जोड़ दिया तानाशाह को..या विस्तार दो, कविता को!

अरविन्द श्रीवास्तव ने कहा…

भाई साहब, तानाशाह व्यक्ति के साथ-साथ राष्ट्र भी हो सकता है या समुच्य भी........

Pradeep Kumar ने कहा…

arvind ji, mere blog par aane ke liye shukriya. aayaa to tha sirf blog per aane ke liye dhanyavaad dene magar yahaan aakar aur aapki rachnaa padhkar mann khush ho gayaa. itni sundar rachna ke liye bahut bahut badhaaie !!

डा राजीव कुमार ने कहा…

vah bhai, gajab ki kavita likhi hai aapne, any kavitayen bhi lajabab hai....

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