संकट टला नहीं है
सटोरियों ने दाँव लगाने छोड़ दिये हैं
चौखट के बाहर
अप्रिय घटनाओं का बाजार गर्म है
खिचड़ी नहीं पक रही आज घर में
बंदूक के टोटे
सड़कों पर बिखरे पड़े हैं
धुआँधार बमबारी चल रही है बाहर
समय नहीं है प्यार की बातें करने का
कविता लिखने, आँखे चार करने का
यमदूत थके नहीं हैं
यहीं कहीं घर के बाहर खड़े
प्रतीक्षा कर रहे हैं
किसी चुनाव-परिणाम की !
-अरविन्द श्रीवास्तव, मधेपुरा
सटोरियों ने दाँव लगाने छोड़ दिये हैं
चौखट के बाहर
अप्रिय घटनाओं का बाजार गर्म है
खिचड़ी नहीं पक रही आज घर में
बंदूक के टोटे
सड़कों पर बिखरे पड़े हैं
धुआँधार बमबारी चल रही है बाहर
समय नहीं है प्यार की बातें करने का
कविता लिखने, आँखे चार करने का
यमदूत थके नहीं हैं
यहीं कहीं घर के बाहर खड़े
प्रतीक्षा कर रहे हैं
किसी चुनाव-परिणाम की !
-अरविन्द श्रीवास्तव, मधेपुरा
10 टिप्पणियां:
नमस्कार
आपका ये जन शब्द अच्छा लगा
आप से अनुरोध है कि अपनी रचनाओ के एक प्रती हमारे मंच में भी दे दे
manch ka pata hai
http://manchsamay.blogspot.com/
बिल्कुल आज की और सच्ची कविता,यथार्थ-दंश को झेलता समय प्रकट है कविता में। बधाई, अरविन्द बाबू! -सुशील।
आपका जनशब्द अच्छा लगा और प्रस्तुत की गयी कविता वेहद सुन्दर और सारगर्भित है ......
पहले भी आपकी कविताओं को बांचने के बाद संवेदनाओं के गहरे सागर में उतरने को मजबूर हो जाता था , बहुत दिनों के बाद फिर आपकी अभिव्यक्ति से रूबरू होने का अवसर मिला है ...बधाईयाँ !
जहां सौ सौ कमेन्ट होते हैं वहाँ भी भीड़ में कोई नहीं खोता ...आप ऐसा क्यों कहते हैं ....?? आप तो खुद इतना अच्छा लिख रहे हैं ...देखिये.......
संकट टला नहीं है
सटोरियों ने दाँव लगाने छोड़ दिये हैं
चौखट के बाहर
अप्रिय घटनाओं का बाजार गर्म है
खिचड़ी नहीं पक रही आज घर में
बंदूक के टोटे
सड़कों पर बिखरे पड़े हैं
वाह....कितनी गंभीर बात कह दी आपने ....!!
सादर अरविंद भाई जी,
"दो पाटन के बीच' आने के लिए धन्यवाद। लेकिन मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं ? आप तो कोशी में लगातार रह रहे हैं, इसलिए पाटों के बीच घिर जाने की पीड़ा को अच्छी तरह समझ ही रहे होंगे।
अपने बारे में क्या बताऊं ? अगर बताऊं तो इतना बोल जाऊं कि सुनने और सुनाने वाले के नियमित काम पीछे रह जाये। सुपौल के राघोपुर के नजदीक के एक गांव से हूं। गाय-भैंस चराते, खेती करते, कुदाली चलाते , पोखर-नदी तैरते-तैरते बगल के एक हाइ स्कूल से मैट्रिक किया। लोग कहने लगे कि बहुत तेज लड़का है, इंजीयर, डागडर, कलस्टर बनाओ। फिर देश के प्रतिष्ठित कॉलेजों- विश्वविद्यालयों में विचरने लगा। अधिकारी बनाने वाली परीक्षाओं में पास किया, लेकिन काम नहीं कर सका। पिछले आठ वर्षों से पत्रकारिता कर रहा हूं और अभी रांची में हूं।
मुझे लगता है कि कोशी इलाके के साथ सबने अन्याय किया है। प्रकृति, अंग्रेज और स्वदेशी शासकों ने भी कोशी केि लए कुछ नहीं किया, जबकि मेरी मान्यता है कि यहां की धरती दुनिया के श्रेष्ठ मानवीय-संसाधन पैदा करती है। इसलिए कोशी क्षेत्र के लिए कुछ करना चाहता हूं। सम्प्रति कलम से ही सही...
अपने गांव-इलाके आते-जाते रहता हूं। सबसे भेंट होती है, आपसे भी अवश्य मुलाकात होगी।
सप्रेम
रंजीत
रांची
बधाई… शुभकामनाएं…
Gehra asar chodti hai aapki yah rachna.Badhai.
अरविन्द जी,
"संकट टला नहीं है" वाह क्या खूबसूरत कविता लिखी है, आपकी कलम में वाकई असर है ये भी एक समाज सेवा है.
आप ही की तरह गिरीन्द्र नाथ झा भी लिखते है.
कृपया लिखते रहिये, कभी तो सुधार की बयार आयेगी. वरना आज के इस मारा-मारी के जम्माने में किसे फुर्सत है इस तरह सोचने की.
बधाई हो, साथ ही साथ आपको साधुवाद !
श्रीकृष्ण वर्मा
देहरादून (उत्तराखंड)
team-skv.blogspot.com
Kaafi accha lagaa.Apne pragatiseel lekhan ko jaari rakhen.
KUMAR SHEELVARDHAN.
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