चिड़ियों का हौसला देखिए
वो चाहे जहाँ आ-जा सकती है
सवर्णों के कुओं पर पानी पीती है
हरिजनों के घरों के दाने चुगती है
हम ऐसा कुछ भी तो नहीं कर सकते
ऐसा करने के लिए हममें
चिड़ियों-सा हौसला चहिए ।
- शहंशाह आलम
युवा कवि शहंशाह आलम की कविताओं का एकल काव्य-पाठ १५ मार्च ०९ को मधेपुरा के कौशिकी क्षेत्र साहित्य सम्मेलन भवन में आयोजित किया गया। जिसमें मुख्य अतिथि पूर्व सांसद एवं पूर्व कुलपति डा रमेन्द्र कुमार यादव 'रवि', साहित्यकार हरिशंकर श्रीवास्तव 'शलभ' एवं डा भूपेन्द्र ना० यादव 'मधेपुरी' थे। आयोजन में इस कविता की च्रर्चा विशेष रुप से की गयी।
11 टिप्पणियां:
बहुत पते की बात कही है। सुन्दर रचना है।
घुघूती बासूती
Arvind ji,
jab chidiyon ka honsla buland hai to 42 sthan se khone ka dar kyon...? sabhi apne apne sthan ki ydan bharte hain....!!
Saral shabdon me gehri baat kah jati hai yah kavita.
To kya aap punjabi padhna jante hain...?? pasj ji ko thoda bhot padha hai maine surjit pattar ko bhi bhot accha likhte hain...!!
छोटी किन्तु गहरे तक कचोटती कविता.
blog pr pehli baar aana hua...
bahut hi nayaab khazaana mila..
aapka intekhaab qaabil-e-zikr hai.
---MUFLIS---
jaankaari achchi lagi... blog bhi achcha laga... bas likhte rahiye
aaiye sahitya-sahitya khelen.
चिड़ियो से हौसला लेने की बात कही है आपने । चिड़ियो से सीख लेने के बाद सारा कुछ हासिल किया जा सकता है लेकिन आज के जमाने में लोग ऐसा करते कहां है । पोस्ट के लिए बधाई
वाह भाई शहंशाह , इस कविता को नेट पर पढ़कर मज़ा आ गया । और क्या हाल हैं ?
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