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शनिवार

जनपथ के कुछ शब्द





’जनपथ’ समय-चेतना का मासिक आयोजन. संपादक- अनंत कुमार सिंह. मो.-09431847568


यीशु व
सोक्रेटेस
भले लोग थे
फिर भी मारे गये

मुझे भला नहीं बनना।
- मलयालम कविता


तुम्हारी आग के खिलाफ हमने पानी का खासा इंतजाम किया है.....
- शीन हयात, कथाकार

मुझे यह भी लगा कि दिल्ली सारी रचनाषीलता को सोख लेने वाली जगह है। आपका सारा समय दौड.-भाग में खत्म हो जाता हैं और यदि आप संपादन या पत्रिका से जु़डे हैं तो दूसरे की रचनाओं में ही खप जाते हैं । आप अपना खुद का कोई भी क्रिएटिव काम नहीं कर सकते । सभा-गोष्ठियों में मिलते हैं तो औपचारिक भेंट से आगे बात नहीं बढ. पाती। यहाँ बड़े-बड़े प्रकाशक हैं या बल्कि कहिए कि प्रकाशक-व्यवसाय ही केंद्रित है। यहाँ से ही सारे पद - पीठ, पुरस्कार, .फेलोशिप, विदेश यात्राएँ आदि तय होते हैं। लेकिन यहीं सारे घपलों की जड. है। इसलिए यहाँ के लोगों की जिन्दगी जुगाड. करने में ही जाया हो जाती है। मुझे बार-बार जाने क्यों लगता है कि सृजन -कर्म तो सुदूर अँचलों में ही संभव है।
- संजीव, कार्यकारी संपादक:’हंस’
कवि बार-बार जन्म लेता है कविता में। पुनर्जन्म पर विश्वास न करने वाले भी कविता में जन्म लेना चाहते हैं।कोई कवि सृष्टि को पूरी तरह पा न सका कभी। इसलिए हमें लौटना है उस ठिए पर,जो हर बार नया जन्म लेता है ,नए लोगों के साथ । उसके गर्भ में पलता है नित नया विचार। हमें वहाँ तक पहूँचना है। हम पहूँचेंगे साथी !
-लीलाधर मंडलोई, वरिष्ठ कवि

प्रस्तुति: अरविन्द श्रीवास्तव, अशेष मार्ग, मधेपुरा

रविवार

पश्चिम से-


लाये थे वे
पश्चिम से
एच-1, एन-1 (स्वाइन फ़्लू) वायरस

फिर लायेंगे वे ही
पश्चिम से इसकी दवा

तब
फर्क सिर्फ यही रहेगा
दवा के बदले
वसूलेगा पश्चिम
मोटी-मोटी रकम !

-अरविन्द श्रीवास्तव, मधेपुरा

सोमवार

कोसी: प्रलय के एक वर्ष-


आज ही के दिन १८ अगस्त २००८ को कोसी के कहर ने हजारों लोगों की जानें ली, लाखों बेघर, तवाह और बर्बाद हुए , क्षण भर में राजा रंक बन गए | उत्तर बिहार के मधेपुरा, अररिया, पुर्णिया, सुपौल, कटिहार, सहरसा जिले में महज एक वर्ष पहले बरबादी का जो मंजर दिखा वह किसी भी सभ्य प्राणी के लिए रूह कंपा देने वाला था। बाढ़, भूख, बेरोजगारी सहित इस वर्ष सुखाड़ से पीड़ित लाखों लोग पलायन कर दिल्ली, पंजाब और महाराष्ट्र सदृश्य राज्यों को आबाद करने में जुटे है, क्षेत्र की बदहाली पर चंद घोषणाओं के साथ हर तरफ चुप्पी है...। कोसी की यह विभीषिका मानवीय त्रासदी थी या कुदरत का कहर ...... बहरहाल केंद्र सरकार द्वारा इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जाना और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिले राहत - सहयोग पर आभार प्रकट किया जा रहा है वाबजूद इसके यह क्षेत्र सुरक्षित है इस बात की पक्की गारंटी नहीं दी जा सकती... इसमें कई पेंच है...|
आज इस खंड प्रलय के एक वर्ष बीत गए | जनशब्द इस प्रलय की वेदी पर दिवंगत हुए प्राणों को श्रद्धाश्रु निवेदित करता है | कोसी और इसके 'व्यवस्थापक' इस विशाल भूभाग को फिर से हराभरा करने में पुरजोर ताकत से जुटे रहेंगे, इसी उम्मीद के साथ .....|

-अरविन्द श्रीवास्तव, मधेपुरा

बुधवार

हबीब तनवीर के अवदान पर बिहार प्रलेस की गोष्ठी

हबीब तनवीर ने भारतीय रंगमंच का चेहरा ही बदल डाला। वह एक रंगयोद्धा की तरह जीते रहे। उन्होनें अपने नाटकों के जरिए एक नया और भिन्न परिवेश को रखा एवं प्रगतिशील सांस्कृतिक आन्दोलन को सक्रिय भी किया। ये बातें रंगकर्मी जावेद अख्तर ने पटना के मैत्री-शांति भवन में बिहार प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा २ अगस्त को ’हबीब तनवीर का अवदान’ विषयक गोष्ठी में कही। आलोचक खगेन्द्र ठाकुर, डा. ब्रज कुमार पाण्डेय एवं राजेन्द्र राजन ने भी भारतीय रंगमंच को आबाद करने में हबीब साहब के अवदान को रेखांकित किया। बिहार प्रलेस की इस मह्त्वपूर्ण बैठक मे कथाकार अभय(सासाराम) कवि शहंशाह आलम(मुंगेर) अरविन्द श्रीवास्तव(मधेपुरा), पूनम सिंह(मुजफ्फरपुर), अरुण शीतांश(आरा) दीपक कुमार राय(बक्सर)और अरविन्द ठाकुर(सुपौल) ने भी अपने-अपने विचार रखे।
तस्वीर में हबीब साहब के साथ अरविंद श्रीवास्तव
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