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शुक्रवार

बहुमुखी प्रतिभा के बेचैन कवि हैं उद्भ्रांत- शहंशाह आलम

 ‘समकालीन साहित्य मंच’ मुंगेर के तत्वावधान में स्थानीय बदरुन मंजि़ल, गुलज़ार पोखर,  में वरिष्ठ कवि उद्भ्रांत के सद्यः प्रकाशित कविता-संग्रह ‘अस्ति’ पर एक सारगर्भित विचार-गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता चर्चित शायर डा. अनिरुद्ध सिन्हा ने की तथा संचालन युवा कवि शहंशाह आलम ने किया। विषय प्रवर्तन करते हुए शहंशाह आलम ने कहा कि उद्भ्रांत बहुमुखी प्रतिभा के एक बेचैन कवि हैं। उनकी बेचैनी का मुख्य कारण समाज और उनके आस-पास की त्रासदियाँ हैं और इन त्रासदियों में उनकी रचनात्मकता छटपटाहट की शक्ल अखि़तयार करती नज़र आती है। ‘अस्ति’ की सारी कविताएँ इन्हीं त्रासदियों की अभिव्यक्ति के रूप में हमारे समक्ष प्रस्तुत होती हैं। कवि के हृदय में विद्रोह की आग है, वह आग जब पाठक आत्मसात करता है तब स्वतः ही उसके समक्ष अपने समाज और देश का एक नया क्षितिज उद्घाटित होता है। स्पष्ट है कि कवि ने अपनी कविताओं में सिर्फ़ विद्रोह के रूप में विध्वंस को ही निमंत्रित नहीं किया है, बल्कि प्रगतिशीलता की डोर पकड़कर बेहतर भविष्य की कल्पना भी की है। संगोष्ठी के अध्यक्ष डा. अनिरुद्ध सिन्हा ने कहा कि ‘अस्ति’ की कविताओं के सुर हमें ख़ामोशी की दलदल की ओर नहीं ले जाते हैं, बल्कि हमें उठ खड़े होने तथा समाज की बेहतरी के लिए कुछ कर गुज़रने को विवश करते हैं। कवि उद्भ्रांत की कविताएँ सामाजिक परिप्रेक्ष्य की कसौटी पर खरी उतरती हैं। इसके साथ ही, कविताओं की सार्थकता उस समय और अधिक हो जाती है जब वे हमें स्वयं को और गहराई से पढ़ने के लिए विवश कर देती हैं। हिन्दी कविता के समक्ष जो पठनीयता का संकट है, ‘अस्ति’ की कविताएँ उसका प्रतिवाद करती हैं। यह कवि की सफलता है जिसमें अभिव्यक्ति और पठनीयता साथ-साथ चलती है। हिन्दी ग़ज़ल के समर्थ ग़ज़लकार अशोक आलोक ने कहा कि हिन्दी कविता कथ्य और बड़े कैनवस के लिए जानी जाती है। समकालीन कोई भी समर्थ कवि घटनाओं के घटने से पूर्व ही उसका आभास पाठकों को कराते हुए अपने यथासंभव विरोध की उपस्थिति दर्ज़ करवा देता है। इस दृष्टि से ‘अस्ति’ की कविताएँ हमें उद्भ्रांत की प्रगतिशीलता से आश्वस्त करवाती हैं। 
     उर्दू के समर्थ रचनाकार प्रो. इमाम अनीस ने ‘अस्ति’ की कविताओं पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि हिन्दी और उर्दू में समकालीन विचारधाराओं का एक मज़बूत स्वर सुनाई दे रहा है। उस स्वर में हम अपने जीवन की कई झाँकियों की व्याख्या सुनते हैं। कवि उद्भ्रांत की कविताओं में आगत के स्वर तो हैं ही, साथ ही सकारात्मक वैचारिक सोच की अभिव्यक्ति भी है। युवा ग़ज़लकार विकास ने कहा कि उद्भ्रांत की कविताओं में समकालीन विद्रूपताओं का रुदन ही नहीं है, एक बेहतर भविष्य की कल्पना भी है। इससे स्पष्ट होता है कि कवि आग पर चलते हुए शीतलता की खोज में गतिमान हैं। इससे आने वाली पीढ़ी उनकी इस रचनात्मकता से लाभ उठाएगी।
इसके अतिरिक्त समाजकर्मी हबीब-उर-रहमान, युवा कवयित्री यशस्वी, युवा कवि समीर कुमार, धीरज कुमार आदि ने भी ‘अस्ति’ पर अपने-अपने विचार प्रकट किए।

                                                                            -अनिरुद्ध सिन्हा
                                                                           

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